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भूतों की डरावनी कहानियां |
आज रात को दादा जी के चार पोते - पोतियों ने दादा जी को कहानी सुनाने के लिए घेर लिया था । मीशू और नीति बोलीं
" दादाजी , आज भूत की कहानी सुनाइए । " सिकंदर और विशी ने भी साथ दिया और कहा- " हाँ दादाजी ! आज हम भूत की ही कहानी सुनेंगे और वह भी एकदम सच्ची । " दादाजी ने कहानी शुरू की- “ बहुत साल पहले दिल्ली में एक बस्ती थी । उस बस्ती का नाम था दर्शनपुरा । बस्ती के बीचों - बीच एकदम खाली और वीरान जगह थी ।
वहाँ केवल पथरीली जमीन थी और घने पेड़ों के झुरमुट थे । उन पेड़ों में बहुत बड़ा पीपल का पेड़ था । उस पीपल के पेड़ पर तीन भूत रहते थे । बस्तीवालों को भी मालूम था कि उस पीपल के पेड़ पर तीन भूनत रहते थे । वे भूत बहुत खतरनाक थे । लेकिन उनमें एक बात अच्छी थी ।
वे कभी बस्ती में नहीं आते थे । उनकी सीमा में कोई मनुष्य या जानवर पहुँच जाता तो वे उसको नहीं छोड़ते थे । बस्ती के लोगों को भी यह बात पता थी । । " एक दिन की बात है कि एक बकरी घास की तलाश में चलते - चलते वीरान जंगल में भूतों के इलाके में पहुँच गई । उसके पीछे - पीछे एक छोटा बालक भी बकरी के साथ खेलने के लालच में भूतों के इलाके में चला गया ।
" भूतों ने जब बकरी और बालक को देखा तो बहुत खुश हुए । उनमें से बड़ा भूत और मंझला भूत आपस में बातें करने लगे । छोटे भूत को बालक पर तरस आ गया । वह अपने दोनों साथियों से बोला- " यहाँ आने में बालक का कोई कुसूर नहीं है । उसे तो मालूम ही नहीं था कि यह भूतों का इलाका है । कसूर इसके माँ - बाप का है ।
उन्होंने इस बालक को क्यों नहीं रोका ? " भूतों ने सोचा कि छोटा भूत ठीक कह रहा है । तीनों भूतों ने तय किया कि बालक को छोड़ दिया जाए और इसके माता - पिता को सजा देना होगा । " बात यह भी है की भूत इसके पहले कभी उस बस्ती में नहीं गए हुए थे , इसनाते उन्हें उस बच्चे के घर का कोई खबर नहीं था । तब सबने मिलकर सलाह किया कि जिस वक्त बालक वापस लौटे , तो इसके पीछे - पीछे जाकर उसका घर देख लिया जाए ।
फिर रात में जाकर इसके माता - पिता को मारकर खा लिया जाए । " " इस बीच बकरी गायब हो गई । उसकी आवाज सुनाई देती रही । इस पर बालक बेहद डर गया और अपने घर की ओर भागा । उसके पीछे - पीछे आ गए और घर देख गए । " बालक जब घर पहुँचा तो बेहद डरा हुआ था ।
उसने अपने माता - पिता को सारी बात बताई , तो वे भी बहुत डर गए । वे समझ गए कि उनका बेटा भूतों के इलाके में पहुँच गया था । ' उसे रात को जब माता - पिता सोने चले तो बहुत ज्यादा डरे हुए थे । उन्होंने बच्चे को पलंग पर बीच में सुलाया और खुद दाएँ और बाएँ सोए । लेकिन उन्हें नींद नहीं आ रही थी ।
जब वे ऐसा सोच ही रहे थे कि अचानक छत का रोशनंदान हिला और जोर की आवाज हुई । उन्होंने देखा कि रोशनदान में चिंगारियाँ चमक रही थीं । वे उन भूतों की आँखें थीं , जो केवल रात में चमकती थीं । वे समझ गए कि भूत आ गए हैं और अब बचना मुश्किल है । " दादाजी कहानी को जारी रखते हुए आगे बोले- “ भूत बिस्तर पर लेटे हुए या सोते हुए व्यक्ति पर हमला नहीं करते । इसलिए उन्होंने रोशनदान से नीचे उतरकर उनके पलंग को तेजी से हिलाना शुरू कर दिया और उन्हें पलंग से नीचे गिरा दिया ।
जब दोनों बड़े भूत यह सब करने में लगे थे , तो छोटा भूत घर में लकड़ी का टुकड़ा , मिट्टी का तेल और माचिस ढूँढ़ने में लगा था । जैसे ही दोनों बड़े भूत बालक के माता - पिता को मारने के लिए झपटे , छोटे भूत ने लकड़ी पर मिट्टी का तेल डालकर लकड़ी में आग लगा दी । भूत आग से बहुत डरते हैं और उसके धुएँ से उनका दम घुटने लगता है । दरअसल छोटा भूत नहीं चाहता था कि बालक के माता - पिता को मारा जाए और बालक अनाथ हो जाए ।
इसीलिए वह आग जलाने के लिए लकड़ी और मिट्टी का तेल ढूँढ़ने में लगा था । आग देखकर तीनों भूत बच्चे के माता - पिता को छोड़कर अपनी जान बचाकर भागे । ' भूत भागकर जब अपने इलाके में पहुँचे तो उन्हें शक हो रहा था कि वह आग छोटे भूत ने जलाई थी । दोनों बड़े भूत छोटे भूत से लड़ने लगे । बोले - ' मनुष्य जाति को तो यह पता ही नहीं है कि भूत आग और धुएँ से डरते हैं । फिर वहाँ पर आग किसने जलाई थी ?
छोटे भूत के मना करने पर तीनों भूतों में झगड़ा होने लगा । जब छोटे भूत को लगा कि दोनों भूत उसे जिंदा नहीं छोड़ेंगे , तो उसने उन दोनों भूतों पर मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी । छोटा भूत बालक के घर से भागते समय मिट्टी के तेल का पीपा और माचिस साथ ले आया था । दोनों भूतों का दम घुट गया और वहीं ढेर हो गये । छोटा भूत भी चल बसा । " दादाजी आगे बोले- “ बच्चो , दर्शनपुरा की वह वीरान जगह आज भी वीरान है ।
भूतों की डरावनी चीत्कार आज भी उस वीरान जगह में सुनाई पड़ती है । पीपल का पेड़ आज भी वहीं है । किसी भी आदमी में उस जमीन को खोदने का . या वहाँ रहने का साहस नहीं होता । "मीशू , नीति , सिकंदर और विशी बहुत ध्यान से तीनों भूतों और बालक की कहानी सुन रहे थे ।
वे सब भी बेहद डर गए थे । सिकंदर पूछने लगा- “ दादा जी , इस बात को कितने वर्ष हो गए होंगे ? ' दादाजी बताया - " बेटवा यह बात करीबन साठ साल पुरानी हो चुकी है । और क्या तुम्हें मालूम है कि वह बालक कौन था ? " सारे बच्चे एक साथ बोले- " बताओ दादाजी , वह बालक कौन था ?
" दादाजी बोले- " प्यारे बच्चो , वह बालक कोई और नहीं था , मैं ही था । " यह सुनते ही बच्चों के होश उड़ गए । तब सभी एक साथ बोले- “ दादाजी , तो क्या पीपल के भूत आपके माता और पिता को जान से मारने के लिए आए हुए थे ? क्या सचमुच ऐसा हुआ था ? " दादा जी हंसी दबाए हुए थे उनकी हंसी दवाएं नहीं दब रही थी वे खिलखिला कर हंसने लगे फिर बोले- “ बच्चो , यह कहानी एकदम मनगढ़ंत है । तुम बार - बार "Bhoot ki kahani in Hindi, सुनने की जिद कर रहे थे , इसलिए मुझे सुनानी पड़ी । ”