नौकर और सेठ की कहानी | Dhani manushya aur naukar ki kahani
"नौकर और सेठ की कहानी" एक कहानी है जो नैतिक मूल्यों और संबंधों के बारे में बताती है। यह कहानी दो व्यक्तियों के बीच के संबंध के बारे में है जो एक नौकर होता है और दूसरा एक सेठ होता है।
इस कहानी का मुख्य किरदार रामदीन था जो एक साधारण नौकर था। वह अपने परिवार के लिए मेहनत करता था और सेठ जी के घर में नौकरी करता था। रामदीन की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी और उसे अपनी परेशानियों का सामना करना पड़ता था।
सेठ जी अपने बच्चों की शादी के लिए एक भव्य और बड़ी जगह ढूंढ रहे थे। एक दिन, सेठ जी रामदीन से जाकर पूछा कि वह अगले महीने कुछ दिनों के लिए छुट्टी पर जाना चाहते हैं और क्या वह शादी के लिए एक जगह ढूंढ सकता है। रामदीन ने उसे बताया कि उसके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत ही कमजोर है और वह अपने सपनों के लिए भी बचत कर रहा है।
सेठ जी ने उसे एक जगह ढूंढने का काम दिया और रामदीन उसे एक बहुत ही बढ़िया जगह ढूढ लिया...
नौकर के पीछे की कहानी क्या है (What is the story behind the servant)
"नौकर के पीछे की कहानी" एक कहानी है जो मानव जीवन की कमजोरियों को दिखाती है। यह कहानी उन लोगों के लिए हो सकती है, जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए लगातार मेहनत करते हुए आराम की जगह परिश्रम का रास्ता अपनाते हैं।
इस कहानी के मुख्य किरदार हैं रामू, जो एक नौकर हैं। रामू ने कभी अपने सपनों को त्याग नहीं किया था। उन्हें एक अच्छी नौकरी मिल गई थी, लेकिन वह अपने अधिकारी के पीछे पढ़ाई नहीं कर सकता था। वह रोजाना दो घंटे आधी रात को जागते थे और अपने सपनों को पूरा करने के लिए मेहनत करते रहते थे।
रामू का एक सपना था कि वह अपनी बेटी को अच्छी शिक्षा दे सके। उनकी बेटी बहुत होशियार थी और उसे अच्छी शिक्षा मिलने की जरूरत थी। रामू ने उसकी पढ़ाई के लिए सारी बचत कर ली थी, लेकिन उनकी मांग बढ़ रही थी।
एक दिन, रामू अपने अधिकारी के पास जा रहा था, जब उसने एक उद्यमी आदमी से मिला। उद्यमी ने उनसे कहा सोच कर बताएंगे.
सेठ के बारे में कौन सी कहानियां हैं (What are the stories about Seth)
सेठ" शब्द हमारी संस्कृति में एक महत्वपूर्ण शब्द है जो व्यवसायिक संसार में बड़ी प्रसिद्धि प्राप्त लोगों को दर्शाता है। सेठ के बारे में कई कहानियां हैं, जो उनकी सफलता, दयालुता और अनुशासन पर आधारित हैं। यहां कुछ उन कहानियों के बारे में बताया जाएगा जो अत्यंत शिक्षाप्रद हैं।
सेठ जी की शादी: यह कहानी सेठ जी के बाल विवाह के बारे में है। उनके पिता ने उनकी शादी एक बड़े संपत्ति वाले कुलीन घराने की लड़की से कर दी, जिससे सेठ जी नाराज थे। वे अपनी शादी के लिए लड़की से मिलने गए और उसे पता चला कि उसे भी उनकी शादी से कोई रुचि नहीं थी। इस पर वे दोनों मिलकर एक अलग संसार बनाने का फैसला किया। उन्होंने एक छोटे से व्यापार का आरंभ किया और उनका व्यापार सफल हुआ।
सेठ जी की अनुशासन और सफलता: यह कहानी सेठ जी के व्यवसायिक जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना के बारे में है। उनके व्यवसाय में अचानक बड़ी समस्या आ जाती है...
नौकर से लीन एक चुड़ैल है (Is a witch obsessed with the servant)
नौकर से लीन एक चुड़ैल थी। वह एक भयानक शक्ति का संचार करती थी जो उसे दूसरों के साथ खेलने में मज़ा आता था। वह नौकर के साथ एक कमरे में रहती थी और उसकी आवाज़ में उसे अपने भयानक वश में कर लेने की शक्ति होती थी। नौकर को उसकी ओर खींच लिया जाता था और उसे अपने सामने से गुजरने नहीं दिया जाता था। चुड़ैल का लक्ष्य नौकर को डराना था जिससे वह अपनी मज़ा ले सकती थी।
नौकर ने इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए बहुत सोचा लेकिन वह कुछ भी नहीं कर पाया। उसे चुड़ैल के भयानक प्रभाव से बाहर निकलने में असफलता मिली। नौकर के मन में चुड़ैल के खिलाफ उसे कुछ करना चाहिए था। उसने अपने दोस्त से सलाह ली जो उसे बताए कि कैसे वह चुड़ैल के वश से मुक्त हो सकता है। दोस्त ने उसे बताया कि चुड़ैल का प्रभाव तब होता है जब उसकी आवाज़ सुनाई देती है। इसलिए, नौकर को चुड़ैल की आवाज़ से दूर जाना चाहिए था
![]() |
Seth ki Kahani |
जाड़े के दिन थे । कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी । शीत लहर चल रही थी सो अलग । नगर के पहाड़ी इलाके पर बनी सेठ दीवानचंद की हवेली में भी ठण्ड और हवा पूरी ताकत के साथ प्रवेश कर रही थी । सुबह - सुबह सेठजी को अचानक ठण्ड लगी । उन्हें कंपकंपी चढ़ी और तेज बुखार हो गया ।
सेठानी ने अपने बड़े लड़के ज्ञानचंद से कहा- " बेटा , ऐसा लगता है , तुम्हारे पिताजी को भारी ठण्ड के कारण बुखार चढ़ गया है । तुम पड़ोस के वैद्य रामनाथ से उनके लिए दवा ले आओ । "
ज्ञानचंद खुद सर्दी से परेशान होकर अपने को कम्बल से ढके हुए बैठा था । वह पिछले दिनों छुट्टी लेकर गए , घर के दोनों नौकरों को कोसने लगा । कुछ ही क्षण में वह कम्बल से बाहर निकलकर आया । उसने दरवाजा खोलकर घर के बाहर झांका । वह सर्दी , शीत लहर और कुहरे का प्रकोप देखकर घबरा उठा । उसकी हिम्मत नहीं हुई कि वह बाहर निकल जाए ।
अचानक एक आदमी द्वार पर आकर भीख माँगने लगा । बोला- “ मैं बहुत भूखा हूँ सेठजी । मुझे खाने को कुछ दे दो तो बहुत मेहरबानी होगी । ” ज्ञानचंद ने देखा - भिखारी के बदन पर केवल तौलिया है । फिर भी उसे ठण्ड नहीं लग रही है । उसने सोचा - ' मुझे इसकी मजबूरी का लाभ उठाना चाहिए । ' उसने कहा- “ देखो भाई , मैं तुमको भरपेट भोजन खिला देंगा ।
लेकिन तुम पड़ोस में जाकर वैद्य रामनाथ से मेरे पिता जी के लिए बुखार की दवा ले आओ । उनहें जाड़ा लगकर बुखार चढ़ आया है ।
एक कागज पर वैद्य से दवा का नुस्खा भी लिखकर लाना । " " लेकिन मैं तो बहुत भूखा हूँ । वहाँ तक चल भी नहीं पाऊँगा । मेरा पेट दो दिन से खाली है । पहले कुछ खिला दो तो जाऊँ । " -भिखारी बोला । ज्ञानचंद ने कहा- " सोच लो । अगर भरपेट भोजन करना चाहते हो , तो दवा ले आओ । " भिखारी को भूख सता रही थी ।
अतः उसने जैसे - तैसे दवा लाना ही ठीक समझा । वह पता पूछकर वैद्य के घर पहुँच गया । वह कुछ देर बाद दवा लेकर लौट आया । सेठ के घर वालों को उस आदमी की ठण्ड सहन करने की शक्ति पर आश्चर्य हुआ । सेठ ने सोचा - ' क्यों न हम इसे अपने यहाँ नौकर रख लें । ताकि कड़ाके की सर्दी में भी वह घर - बाहर के सभी काम कर दे । '
ज्ञानचंद ने उस आदमी का नाम - पता पूछकर अपने यहाँ नौकरी रख लिया । उसका नाम गोपाल था और पड़ोस के गाँव का रहने वाला था । वह शहर में काम ढूँढ़ने आया था । इसलिए वह नकरी करने को राजी हो गया ।
शाम हुई तो ठण्ड और भी बढ़ गई । पास के घारी में सेठजी की गाय - भैंसें बंधी थीं । सेठानी ने गोपाल से कहा- " तुम घारी में जाकर गाय का दूध दुह लाओ । ” कड़ाके की ठण्ड के बावजूद गोपाल ने दूध का बाल्टी अपने हाथ में लिया और दूध दुह लाया । रात हुई , तो सेठानी ने गोपाल से कहा कि वह बरामदे में खटिया डालकर सो जाए । गोपाल ने कहा- “ सेठानी जी ! बाहर तो बहुत सर्दी है ।
अगर अंदर के किसी कमरे में मेरे लिए सोने की जगह न हो , तो कृपा करके मुझे एक कम्बल ही दे दीजिए । " तब ज्ञानचंद सेठ के लड़के ने बोल पड़ा- " अरे ! तुमको कम्बल की क्या जरूरत है ? तुम्हारा शरीर तो वज्र के समान कठोर है । तुम कड़ाके की सर्दी में भी दौड़ - दौड़ कर काम कर सकते हो ।
मालिक , मेरा शरीर वज्र के समान कठोर नहीं है और न मेरे अंदर बहुत अधिक सर्दी सहन करने की शक्ति है । मैं साधारण इंसान हूँ । " -ज्ञानचंद बोला । ' तो फिर इतनी कड़ाके की सर्दी में तुम पिताजी के लिए दवा कैसे ले आए ? घारी में जाकर गाय का दूध कैसे दुह लाए ? " ज्ञानचंद बोला । - गोपाल ने कहा- " असल में जिस समय मैं आपके पिताजी की दवाई लाया था , उस समय मैं भूख से तड़प रहा था । तब मुझे केवल अपने पेट की भूख का ख्याल था ।
मुझे दो दिन से कोई काम नहीं मिला था , इसलिए मैं भीख माँगने को तैयार हो गया था । अगर मैं सर्दी का ख्याल करता तो बैठ जाता तो अपनी भूख कैसे मिटाता ? " और जब गाय भैस का दूध दुहने तबेले में गए हुए थे तब ? " - ज्ञानचंद ने दूसरा सवाल किया । " तब मेरे मन में कृतज्ञता का भाव था । मालकिन ने भरपेट भोजन खिलाकर मेरी भूख मिटाई थी ।
उस समय मैं यह सोच रहा था कि मैं भूख मिटाने वालों का क्या इतना छोटा - सा काम भी नहीं कर सकता ? यह सोच में दूध दुह लाया । लेकिन अब मुझे पूरी तरह से जाड़ा लग रहा है । इसलिए कम्बल के बिना नहीं रह सकता । " - गोपाल बोला । ज्ञानचंद और उसकी माँ को सारी बात सहज समझ में आ गई ।
ज्ञानचंद ने कहा- “ गोपाल , तुम बहुत बुद्धिमान हो । आज से तुम भी कमरे में सोया करोगे । " - कहते हुए ज्ञानचंद ने एक कमरे की तरफ इशारा कर दिया । तभी सेठानी ने गोपाल को एक कम्बल थमा दिया । गोपाल बहुत खुश हुआ फिर वही ठाट बाट से रहने लगा वह वहा से जो पैसे पाता अपने परिवार को दे आया करता था अब उसके घर वाले बहुत खुसहाली आ गयी है ।