राजकुमार ने ली राज - काज शिक्षा | Shandilya and the giant temple in the forest

 

राजकुमार ने लिया राजा बनने का  शिक्षा

आज से लगभग तेईस सौ साल पहले की बात है । आर्यव्रत में एक राज्य था कंचन प्रदेश । काफी सुखी - सम्पन्न लोग थे वहाँ । इसकी मुख्य वजह यह थी कि वहाँ के राजा किंशुक बहुत अच्छी तरह राज - काज चलाते थे । राजा किंशुक न्यायप्रिय और प्रजा के हितैषी थे । 

उनका एक पुत्र था , राजकुमार अंशुमन । राजकुमार अंशुमन जब गुरुकुल की शिक्षा प्राप्त कर चुका , तो राजा किंशुक ने उसे राज - काज संभालने के लिए शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से महान गुरु शांडिल्य के पास भेज दिया ।

शांडिल्य जंगलों में बने एक विशालकाय मंदिर में रहते थे । दो साल तक राज - काज की शिक्षा देने के बाद , एक दिन गुरु शांडिल्य ने राजकुमार को बुलाया । कहा- " पुत्र , अब तुम्हारी यहाँ की शिक्षा पूर्ण हुई । लेकिन राज्य का कार्यभार संभालने के लिए , तुम्हें एक अंतिम परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी । " 

ऐसा कहकर गुरु ने राजकुमार को घने जंगलों में अकेले एक वर्ष रहने के लिए भेज दिया एक वर्ष के बाद जब राजकुमार वापस गुरु के पास पहुँचा , तब गुरु ने उससे पूछा- " तुमने जंगल में क्या सुना और समझा ? " राजकुमार ने कहा- “ मैंने चिड़िया के गाने की आवाज सुनी । पत्तों के खड़खड़ाने की आवाजें सुनीं । मधुमक्खियों के गुनगुनाने की धुन सुनी । झरनों के गिरने की आवाज सुनी और हवा के सरसराने की आहट सुनी । " 

राजकुमार जब बोल चुका , तो गुरु ने कहा- " वत्स , तुम फिर सं जंगल में जाओ । जाकर सुनो कि और क्या - क्या आवाजें सुनी जा सकती हैं । राजकुमार कुछ देर हैरान  हुआ आखिर कार अब क्या छूट गया और क्या सुनने को बाकी बच गया फिरहाल गुरु जी की बातो को तो मानना  ही पडेगा । दुबारा फिर से जंगल में पहुंच गया । महीनों तक दिन - रात वह जंगल में आवाजों को सुनने का प्रयास करता रहा । 

लेकिन उसे कुछ नया नहीं सुनाई पड़ा । फिर एक दिन वह चुपचाप एक वृक्ष के नीचे ध्यान पूर्वक बैठकर , कुछ सुनने का प्रयास कर रहा था । तभी उसे बहुत धीमी आवाजें सुनाई देने लगीं । ऐसी आवाजें जो उसने पहले नहीं सुनी थीं । जैसे - जैसे उसने और अधिक ध्यान देना शुरू किया , वैसे - वैसे वे आवाजें स्पष्ट होने लगीं । ' 

शायद यही वे आवाजें हैं , जिन्हें गुरुवर ने सुनने को कहा था ।' उसने सोचा । जब वह वापस मंदिर में लौटा , तो गुरु ने प्रश्न किया- " वत्स , तुमने और क्या - क्या सुना ? " " गुरुवर ! " राजकुमार ने आदर पूर्वक कहा- " जैसे - जैसे मैंने ध्यान देना शुरू किया , मैंने बहुत - सी अनसुनी आवाजें सुनीं । मैंने फूलों के खिलने की आवाज सुनी । पत्तों पर ओस के गिरने की ध्वनि सुनी और भोर होने की आवाज सुनी । "

गुरु ने प्रसन्न होकर सिर हिलाते हुए कहा- " वत्स , अनसुनी को सुनना एक सफल राजा का आवश्यक गुण है । जब राजा लोगों के हृदय को पास से सुनने लगता है , उनकी अनकही पीड़ा समझने लगता है , तभी वह उनका विश्वास जीत सकता है । ऐसा कहकर गुरु ने आशीर्वाद देकर , के उसके पिता के पास भेज दिया ।

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