बहुत दिन हुए , विपुला राज्य में व्यापारी सोमधर रहता था । वह बड़ा कंजूस और चालाक था । राज्य के कर्मचारियों से सांठ - गांठ कर , उसने बहुत धन कमाया था । एक बार पड़ोसी राजा ने विपुल पर आक्रमण कर दिया । अब सोमधर की पांचों अंगुलियां घी में थीं ।
सेना की रसद में गोलमाल करके उसने धन बटोरना शुरू कर दिया । जैसे - जैसे उसकी तिजोरियां भरती गई , वैसे - वैसे उसे एक चिंता सताने लगा - ' यदि विपुला का राजा हार गया , तो शत्रु के सैनिक उसकी सारी सम्पत्ति लूट लेंगे । '
बहुत सोच - विचार के बाद उसने अपने धन को सुरक्षित रखने के लिए एक उपाय सोचा । नगर के बाहर रुद्र देवता का एक टूटा - फूटा मंदिर था । कोई भी वहां पूजा करने नहीं जाता था । सोमधर एक रात अपनी सारी सम्पत्ति लेकर गया । मंदिर के पीछे उसने एक गड्ढा खोदा । अपनी सम्पत्ति उसमें दबाकर चुपके से वापस आ गया ।
अब वह निश्चित था । जब भी उसके पास कुछ धन इकट्ठा होता , उसी गड्ढे में दबा आता । वह सोचता - ' अब चाहे राजा हारे या जीते , मेरा धन सुरक्षित रहेगा । जब जरूरत होगी , तब खोदकर निकाल लूंगा । ' संयोग की बात । युद्ध में विपुला का राजा जीत गया । सारे राज्य में उल्लास छा गया ।
राजा ने अपने सामंतों की एक बैठक बुलाई । प्रस्ताव रखा- " इस विजय के उपलक्ष्य में एक ऐसा स्मारक बनाया जाए ,जो सदियों तक विजय की याद दिलाता रहे । " सभी सामंत राजा की बात से सहमत थे । निश्चय हुआ , नगर के समीप स्थित रुद्र देवता के मंदिर का उद्धार किया जाए । राजा ने तुरंत सहमति दे दी ।
मंदिर के चारों ओर दो - दो सौ गज भूमि पर तार खिंचवा दिए । राज्य के श्रेष्ठ कारीगरों को मंदिर के निर्माण का कार्य सौंपा गया । प्रजा का प्रवेश मंदिर की सीमा में वर्जित कर दिया गया । सोमघर ने जब यह समाचार सुना , तो वह सकते में आ गया ।
उसकी जीवन भर की सारी जमा - पूंजी मंदिर के पीछे गड़ी थी । उसे निकालना तो दूर , अब वह वहाँ जा भी नहीं सकता था । सारा धन इस प्रकार हाथ से निकलते देख , वह पागल - सा हो गया । उसके शरीर में घुन लग गया । वह रोज सबेरे मंदिर से दूर , एक पेड़ पर चढ़कर बैठ जाता । पुराने मंदिर की जगह नया मंदिर बनता देखता रहता । पेड़ पर उदास बैठा , आँसू बहाता रहता था ।
एक दिन सोमघर पेड़ पर बैठकर रो रहा था । नीचे से एक साधु गुजरा । साधु ने सिर उठाकर देखा , तो रोते - कलपते सोमधर पर दृष्टि पड़ी । उसने सोमधर को पुकारकर पूछा- " तुम मंदिर की ओर मुँह करके क्यों रोते हो भाई ? " सोमधर पेड़ से उतर आता है । साधु के जिक्र पर सोमधर ने आपबीती बता दी ।
वह बोला- " यदि मेरा धन मुझे न मिला , तो में पागल हो जाऊँगा । " सोमधर की राम कहानी सुनकर साधु गम्भीर हो गया । कुछ सोचकर बोला- अगर तुम कमाकर स्वर्ण कलश बनवाके रुद्र देवता पर चढ़ा दोगे , तब तुम्हारा सम्पत्ति तुमको मिल सकता है । " तबतो यह मै निश्चित ही करूंगा । सोमथर ने कहा और अपने घर वापस आ गया । जो कुछ धन था , उसे बेचकर उसने स्वर्ण कलश बनवाना चाहा , किंतु वह धन पर्याप्त न था ।
घर में अब ऐसी कोई मूल्यवान वस्तु न थी , जिसे बेचकर वह स्वर्ण कलश बनवा सकता । इस स्थिति में वह बौखला गया । साधु की खोज में करने लगा । एक दिन उसे साधु फिर दिखाई पड़ा । सोमधर के भाग - दौड़ में आँसू भर , सारी बात बताई । सहायता करने की प्रार्थना की । तो एक ही उपाय है । तुम राजा के पास जाओ । उसे सारी बात बताकर सहायता के लिए कहो । " -
साधु ने कहा । अब " नहीं , नहीं । राजा को यदि पता लग गया कि मेरे पास इतना धन है , तो वह संदेह करेगा । पूछताछ भी करेगा । में कहीं का न रहूँगा । " -सोमघर बोला । सोमधर की बात सुनकर साधु मुसकराने लगा । बोला- " तो फिर इस धन से लाभ क्या , जब तुम इसके बारे में किसी को बता भी नहीं सकते ? "
सोमधर चुप रहा । साधु बोला- “ खैर , तुम , राजा से कुछ धन माँग तो सकते ही हो । " राजा से धन माँगने की बात सुनकर सोमधर खुश हो गया । साधु की बात मानकर वह राजा के पास गया । " मैं बड़ी मुसीबत में हूँ । " कहकर राजा से कुछ धन माँगा । मेरे पास कुछ नहीं है , सोमधर की बात सुनकर राजा ने कहा सब प्रजा का है । उसे मैं तुम्हें कैसे दे दूँ ? "
सोमधर हताश हो गया । फिर सोचकर बोला- " महाराज , आप रुद्रदेव का विशाल मंदिर बनवा रहे हैं । मुझे वहाँ कुछ काम सौंप दें । सैकड़ों मजदूर वहाँ काम कर रहे हैं । मैं उस काम की देखभाल कर सकता हूँ । पुण्य के साथ - साथ मुझे कुछ पैसा भी मिल जाएगा । "
सोमधर ने सोचा था- " मंदिर में काम की देखभाल करते समय , मौका मिलने पर अपना धन निकाल लूँगा । " राजा ने उसे मजदूरों की देखभाल का काम सौंप दिया । सोमधर दूसरे दिन से मंदिर में जाने लगा । वह हमेशा अपने धन की टोह में लगा रहता । सुबह सबसे पहले पहुँचने की कोशिश करता और शाम को -बाद में आने की , मगर चोकीदार वहाँ चौबीसों घंटे रहते , इसी कारण वह धन नहीं निकाल पा रहा था ।
एक दिन शाम को उसने मन में सोचा - ' इस तरह तो कुछ न बनेगा । आज साहस करके अपना छिपा धन ले ही लूँ । देखा जाएगा । ' बस , वह कुदाल लेकर खोदने लगा । चौकीदार ने उसे रोका , तो उसने कुदाल उठाकर चौकीदार को डरा दिया । चौकीदार चिल्लाया । दूसरे चौकीदार आ गए । समय की बात , उस शाम राजा भी मंदिर का काम देखने के लिए चले आए ।
वहाँ हो - हल्ला सुना , तो राजा ने सिपाही भेजकर पूरी बात जाननी चाही । सिपाही तुरन्त सोमधर को पकड़ लाए । राजा ने कहा - " तुम कुदाल से क्या खोद रहे थे ? ठीक बताओ , वर्ना कड़ा दंड मिलेगा । " सोमधर डर गया । उसने सारी बात ठीक - ठीक बता दी । सुनकर राजा को आश्चर्य हुआ । सही बात जानने के लिए उन्होंने स्वयं वहाँ जाकर उस स्थान को खुदवाया । सचमुच वहाँ सोमधर ने धन छिपाकर रखा था ।
राजा ने कहा- " सोमधर , मेहनत की कमाई छिपाकर नहीं रखी जाती । बताओ , इतना धन कहाँ से आया ? " अब सोमधर क्या बोलता । उसने माफी माँगते हुए राजा सब कुछ सच्ची-सच्ची बता दिया कि इतना धन कैसे और कहा से आया राजा ने कहा इस्वर के मंदिर में जो कुछ चढ़ाया जाता है , उसे वापस नहीं लीया जाता । तुमने खुद ही यह धन इस जगह छिपाया है इसे रूद्र को सौंप दिया है । बोलो , क्या इसे वापस लोगे ? "
नहीं , महाराज ! मंदिर के नव - निर्माण में ही इसे लगा दीजिए । मैं मंदिर पर स्वर्ण कलश चढ़ाना चाहता था । " राजा ने उसकी बात मान , उसे छोड़ दिया । फिर कहा- " सोमधर , जो काम तुम्हें सौंपा है , लगन से पूरा करो । "सोमधर का मन बदल गया । अब वह धन का लालच छोड़ मंदिर के नव - निर्माण में तन - मन - धन से जुट गया ।