खुनी जल हुआ निर्मल | Shabri's biography

खून की नदी हुआ निर्मल जल


 एक थी लड़की , करीब छह - सात साल उम् , सांवली - सी भोली भाली , सीधी - सादी । उसके पिता ने उस नन्हीं - सी उम्र में उसके ब्याह की तैयारी की । घर में धूम - धाम , बाजा - गाजा , त्यौहार - मेले सा वातावरण उसे खूब अच्छा लग रहा था । 

वह नन्हीं गौरैया - सी चहक चहक कर डोल रही थी । इतने में कुछ हिरन , कुछ खरगोश , कुछ मेमने , कुछ बछड़े घर में लाये गये । लड़की ने पिता से पूछा “ पिताजी , इतने ढेर सारे जानवर क्यों इकट्ठे किये जा रहे हैं ? " बेटी , तू मामूली बाप की बेटी तो है नहीं । तेरा बाप कबीले का सरदार है । तेरी शादी है , सारी बिरादरी को दावत दी गयी है । 

इन जानवरों की बलि दी जायेगी । इनका माँस पकाया जायेगा और बिरादरी वालों को खिलाया जायेगा । पिता की बात सुनकर बालिका का कोमल मन चीत्कार कर उठा - ' हाय , यह कैसी शादी है ? जिसमें इतने बेगुनाह - बेजुबान पशुओं की हत्या की जायेगी ? ' बेचैनी के मारे वह सारी रात सो नहीं पायी । 

यह छोटी - सी निरीह आँखें , यह खरगोश की लाल चमकदार आँखें , यह बछड़े की रोती आँखें । सभी बारी - बारी से उसे दिखलाई पड़ती थीं । सबके एक ही सवाल थे , हमारा क्या कसूर है , जो तुम्हारी खुशी के लिए हमारी हत्या की जा रही है ? सुबह होते ही पुरे बसकीत में शोर मच जाता है ।

नन्हीं - सी बिटिया आखिर गयी तो कहाँ गयी ? बहुत खोज - खबर हुई , परन्तु उसका पता नहीं लगा । लोगों ने यह मान लिया कि कोई जंगली जानवर उसे उठा ले गया होगा । दूसरी तरफ जंगल में महर्षि सुतीक्ष्ण संध्यावंदन से लौट रहे थे । उनका रास्ता रोक कर एक लड़की खड़ी हो गयी । मुनिवर ने पूछा " कौन हो तुम ? यहाँ कैसे आ गयी ? कहाँ रहती हो ? " उसने शुरू से लेकर अंतिम तक अपने भगवान् श्री राम कहानी सुनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा। 

उसने बोला - “ ऐसे जगह पर जाने की जरूरत नहीं जहा पर निर्दोष, जीव जंतु मारके खा लेते हो , ऐसे जगह पर हम घूम कर नहीं जाने वाली, उसके बाद उन्होंने बोला तुम यहीं पर रह जाओ मत जा अपने घर ! तुझे तेरी इच्छा के विरुद्ध जबरन घर नहीं भेजा जायेगा । जब भगवान श्रीराम अवतरित होंगे , अपने बनवास के दिनों में वे इधर जरूर आयेंगे । तब तुम्हें भगवान श्रीराम के दर्शन होंगे । ' 

मुनिवर सुतीक्ष्ण ने कहा । बालिका ने ऋषि की बात गाँठ बाँध ली । वह रोज तड़के बड़े हौसले से उठती । आश्रम में झाडू - बहार करती । नहा - धोकर अपनी चोटी गूंथती । ताजे सुरंधित फूल चुनकर लाती । उनकी माला बनाती । मीठे स्वादिष्ट फल चुन - चुन कर लाती । चख - चख कर देखती , जो सबसे अच्छा मीठा होता उसे श्रीराम के लिए सहेज कर रख लेती कि न जाने कब श्रीराम आ जायें ।

छह - सात वर्ष की उम्र से उसके इंतजार का सिलसिला शुरू हुआ । सूर्योदय से पहले ही उसका इंतजार उगता और सूर्यास्त के बाद ही सारी रात करवट बदलती रहती और अपने से कहती , आज श्रीराम नहीं आये । ' उम्मीद की एक महीन - मुलायम डोर थी , जो बहुत मजबूत थी । कभी - न - कभी श्रीराम आयेंगे ही । मुनिवर का वचन झूठा नहीं हो सकता । 

बालिका से किशोरी , किशोरी से युवती और युवती से वह बूढ़ी हो चली थी । बुढ़ापे का भी आखिरी दौर था । आखिर एक दिन राम लक्ष्मण और सीता सहित वहाँ आये । शबरी निहाल हो गयी । आज उसका इंतजार फला । उसने भगवान् श्रीराम को चखे हुए , जूठे परन्तु मीठे बेर दिये । 

भगवान राम ने भी उन बेरों की सराहना की । आश्रमवासी ऋषियों ने भगवान श्रीराम को पयंसर दिखलाया । उन्होंने कहा- “ भगवन् , उस पंप सरोवर को देखें । यह बहुत सुंदर हैं फिर भी इसके जल का कोई उपयोग नहीं कर  पाता । इसका जल रक्त की तरह लाल हो गया है । इसमें कीड़े पड़ गये हैं । "

क्या तुम लोगों ने इसमें स्नान करने से शबरी को मना किया था ? " श्रीराम ने प्रश्न किया । " जी हाँ , वह शूद्र है , इसलिए मना किया था । " ऋषियों ने जवाब दिया । " इसी कारण इसका जल रक्त की तरह लाल हो गया है और इसमें कीड़े पड़ गये हैं । प्रार्थना करके आदरपूर्वक शबरी को इसमें स्नान करने के लिए निमंत्रण किया जाये । उसका चरण छूते ही इस पंप सरोवर का जल निर्मल हो जायेगा । " 

श्रीराम ने उपाय सुझाया । श्रीराम के आदेश के अनुसार ऋषियों - मुनियों ने शबरी से प्रार्थना की । वह आयी और जैसे ही उसने सरोवर में पाँव रखा , पंप सरोवर का सारा जल स्वच्छ हो गया ।

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