आकर्षक झील और सोने के पंख वाली परी | Queen's Lust

 

सोने के पंख वाली परी

नन्दू बेचारा अभी पाँच वर्ष का ही था जब उसकी माँ का देहांत हो गया था । पिता बेचारे तो पत्नी की मृत्यु के पश्चात् अपने मन की शांति खो बैठे थे । अपने छोटे बच्चे को माँ के बिना तड़पते देखकर उनका मन और भी डूबने लगता । सूना घर काटने को दौड़ता। 

रामलाल की बूढ़ी माँ से अपने बेटे का दुःख देखा नहीं जा रहा था । एक ओर बेटा एकांत में बैठा पत्नी की याद में रोता रहता तो दूसरी ओर पोता था जो बेचारा माँ को याद करके रोता रहता था ।

बूढ़ी माँ शारदा के शरीर में अब ऐसे दुःख सहन करने की शक्ति भी कहाँ थी । वह तो अपने टूटे हुए बुढ़ापे को घसीट रही थी । बेटे और पोते के गम को देखकर वह अपने सारे गम भूल गई थी । अब तो वह केवल इतना ही जानती थी कि वह माँ का फर्ज पूरा करेगी । इस बच्चे को पाल - पोसकर बड़ा करेगी फिर इसकी शादी करके बहू को घर में लाएगी । 

बहू के घर में आते ही इस घर में फिर से वही रौनक आ जाएगी । वही खुशियाँ , वही हँसी मज़ाक , वही शोर - शराबा होगा । ऐसी ही झूठी आशाओं के सहारे बूढ़ी शारदा अपना समय काट रही थी । भारतीय नारी अपने परिवार के लिए कितना त्याग कर सकती है , यह बात तो शारदा देवी को देखकर पता चलती थी । जिसने अपने हर सुख को भुला दिया था । 

नंदू की एक पुरानी आदत थी कि वह सोते समय एक कहानी जरूर सुनता था । बिना कहानी सुने उसे नींद नहीं आती थी । उसे सबसे अधिक भूतों और परियों की कहानी अच्छी लगती थी । दादी माँ के पास भी कहानियों का खजाना था । वह हर रोज एक नई कहानी सुनाती । कई बार तो नन्दू कहानी सुनते - सुनते ही सो जाता । दादी माँ की कहानी बीच में ही रह जाती फिर दूसरे दिन नन्दू उसी कहानी को दोबारा से सुनता था । 

नन्दू को सबसे अधिक पसंद थी सोने के पंख वाली परी की कहानी । वह जितनी बार भी उसे सुनता था उसे यह कहानी नई सी लगती । हालाँकि दादी माँ ने उसे कई बार कहा था कि तुम कोई नई कहानी क्यों नहीं सुनते । पुरानी कहानी रोज़ सुनने का क्या लाभ ? दादी माँ ! मेरे को सोने के पंख वाली परी की कहानी ही अच्छी लगती है । 

कितनी अच्छी थी वह परी जो हर रोज़ सोने का पंख दे जाती थी । कुछ ऐसी ही बातें करते - करते नन्दू दादी माँ से सोने के पंख वाली परी की कहानी सुनने की जिद्द करता तो दादी माँ भी मजबूर हो जाती थी , कहानी सुनाने के लिए आज भी कुछ ऐसा ही हुआ था । 

नन्दू ने दादी माँ से सोने के पंख वाली परी की कहानी सुनाने के लिए कहा तो दादी माँ ने ज़रा बिगड़कर कहा- " भाड़ में गई तुम्हारी सोने के पंख वाली परी । कभी कोई और भी कहानी सुन लिया करो । " - नन्दू को भी बड़ा क्रोध आया उसने भी कहा " दादी माँ ! मैं तो सोने के पंख वाली परी की ही कहानी सुनूँगा । मुझे तो और कोई कहानी सुननी ही नहीं । यदि तुम मुझको परी की कहानी नहीं सुनाओगी तो मैं कल से खाना भी नहीं खाऊँगा और स्कूल भी नहीं जाऊँगा । 

दादी माँ समझ गईं थी कि नन्दू बिन माँ का बच्चा है । इसीलिए अपनी हर जिद्द को पूरा करना चाहता है । जिन बच्चों को माता - पिता का प्यार नहीं मिलता वे ऐसे ही जिद्दी हो जाते हैं । यही सोचकर उसने अपनी कहानी सुनानी शुरू कर दी । 

बेटा ! यह प्राचीन युग की बात है जब परियाँ धरती पर घूमने आया करती थीं । हर प्राणी के मन में नए - नए देश देखने की भावना होती है । यही हाल इन परियों का होता था । जब देवलोक से उनका मन ऊब जाता तो वे धरती पर आकर आनन्द लेने लगतीं । 

इनमें से अधिकतर परियाँ तालाबों और झीलों में स्नान करने के लिए आती थीं । इनमें से कभी भी कोई परी अकेली नहाने के लिए नहीं आती थी । सदा ही वे झुंड के रूप में आती थीं और सारी की सारी एक साथ ही पानी में डुबकियाँ लगाती । आपस में छेड़छाड़ भी खूब करती थीं । 

किसी ने ठीक ही कहा है कि " जवानी मस्तानी होती है । " सच्च तो यही था कि अपनी जवानी , सुन्दरता और आकाश पर रहने के कारण उनको अपने आप पर बहुत गर्व भी हो गया था कि हमसे बढ़कर इस धरती पर कोई सुन्दर नहीं है , किन्तु सुन्दरता से आगे बढ़कर इन परियों में से एक ऐसी भी थी जिसके पंख बिलकुल मोर जैसे थे किन्तु प्रकृति ने उसे एक ऐसा उपहार दिया था जो किसी और परी के पास नहीं था । 

उन पंखों में से नहाने के पश्चात् एक सोने का पंख निकलता था । राजा विक्रम सिंह का राज्य बड़ा विशाल था । उनके राज्य में अनेक बड़ी - बड़ी झीलें थीं । इनमें से एक झील सबसे बड़ी थी जिसे रानी झील कहते थे । राजा हर सुबह रानी झील के किनारे घूमने जाया करता था । उसी झील में रानी भी स्नान करने आती थीं । 

आम जनता को उस झील के पास आने की अनुमति नहीं थी । केवल राजा - रानी तथा कुछ बड़े मंत्रीगण ही वहाँ आ जा सकते थे । एक बार परियों की टोली इस झील के तट पर उतरी । उसके सुन्दर दृश्य को देखकर उन का मन आ गया कि अब हम इस झील पर नहाने आया करेंगी ।

 यह झील बहुत ही सुन्दर और आकर्षक है । इसके चारों ओर रंग - बिरंगे फूल खिले हुए थे । ऊँचे - ऊँचे नारियल के पेड़ थे । जिनके ऊपर अनेक पक्षी बैठे अपने - अपने राग अलापते रहते । इस सुन्दर दृश्य ने परियों का मन मोह लिया था ।

किनारे पर लगी हरी घास पर नृत्य करने का कितना आनन्द आता था । जब मस्त पव के झोंके उनके थके हुए शरीर को आनन्दमय बना देते तो नृत्य का और भी आनन्द आता । परियों ने जैसे ही झील पर आकर स्नान करना नाचना गाना शुरू किया तो सोने के पंख वाली परी ने झील के किनारे सोने का पंख छोड़ना शुरू कर दिया ।

ऐसी ही उसका नियम था कि जिस झील या तालाब में वह नहाती थी वहीं पर एक सोने का पंख छोड़ जाती थी ।  ' दादी माँ ! क्या वह नहाने का किराया देती थी । नन्दू ने दादी माँ को टोकते हुए कहा । ". बेटा ! यह किराए , भाड़े , चाँदी , धन धरती के बटवारे तो अब ही चले हैं । 

पहले इन बातों को कौन जानता था । भले लोग थे । भली बातें करते थे । बुरे कम थे , भले अधिक । अब तो सारा मामला ही उलट चुका है । अब भले कम , बुरे ज्यादा होते जा रहे हैं । धन के लोभ ने लोगों को अंधा कर दिया है । 

तो फिर उस परी का क्या हुआ दादी माँ ? " बेटा ! जैसे ही उन परियों ने झील पर आना शुरू किया तो सोने के पंख वाली परी अपना एक पंख झील के किनारे छोड़कर चली जाती । सुबह के समय जैसे ही राजा वहाँ पर सैर करने आता तो उसे वहाँ पर एक सोने का पंख मिल जाता । राजा हर रोज़ यह पंख उठाकर अपनी रानी को दे देता । रानी तो बहुत खुश होती । 

सोने का पंख । औरतों के पास भले ही कितना ही सोना हो उनकी यह हवस कभी भी पूरी नहीं होती कि उनके पास और सोना आए । यही हाल उस रानी को था । जैसे ही उसे हर दिन सोने का पंख मिलने लगा तो उसकी हवस और भी बढ़ गई । वह मन ही मन में सोचने लगी कि- " अगर हमें सुनहरी परी के सारे पंख एक दिन मिल जाता तो कैसा मजा आता ? 

सोना ही सोना । " " उसके पास सबसे अधिक सोना होगा । " ' नारी अपने मन की बात को पूरा करने के लिए जब तैयार हो जाए तो उसे रोक पाना कहाँ संभव है ? " कि वही रात रानी ने राजा विक्रम से कहा ' आप हमे उस झील में नहाने वाली सोनपरी के पुरे सोने के पंख निकलवाकर हमें दे दें । इससे मेरा मन बड़ा प्रसन्न होगा । मैं उसके सारे पंख लेकर अपने पास रखना चाहती हूँ । 

इस धरती पर सोना तो बहुत लोगों के पास होगा लेकिन सोने के पंख किसी के पास नहीं होंगे । राजा ने अपनी रानी को बहुत समझाया कि ऐसा करने से कोई लाभ नहीं होगा । जब हमें एक पंख रोज़ घर बैठे - बिठाए अपने आप मिल जाता है फिर जल्दबाज़ी करने से क्या लाभ है । 

हो सकता है वह इन पंखों को आने वाले समय में किसी और को दे डाले । इन हालत में हम क्या करेंगे ? " ऐसा नहीं होगा , रानी । " " हो सकता है ! रानी ने फिर जिद्द की । " राजा जान चुका था कि त्रिया हठ के सामने  हठ कुछ नहीं हो पाएगा । 

मजबूर होकर राजा को रानी की बात माननी पड़ी । उसने उसी दिन से झील के चारों ओर पहरे लगवा दिया । उन सैनिकों को यह आदेश दे दिए कि जैसे ही सोने के पंख देने वाली परी झील में नहाने के लिए आए तो उसे पकड़कर उसके सारे पंख निकाल लो । झील के चारों ओर सैनिक पहरा दे रहे थे । 

अंधेरे में छुपे सैनिक मौके की तलाश में थे कि जैसे ही परियाँ झील में स्नान करने आएँ तो उनमें से सोने का पंख देने वाली परी को पकड़ लिया जाए । आधी रात का समय था । पूर्णिमा का चाँद नीले आकाश पर खूब चमक रहा था । 

चाँद का प्रकाश और झील का पानी दोनों के मिलन से बड़ा ही आनन्दमय दृश्य नज़र आ रहा था । चाँद के पुजारी चकोर दूर आकाश की ओर उड़ते हुए कभी झील में छुपे चाँद को देखकर पानी में डुबकी लगा जाते । 

मधुर चाँदनी में परियों का काफला आकाश से उतरा और झील में स्नान करके जैसे ही जाने लगा तो सोने के पंखो वाली सोनपरी ने अपना एक पंख निकालकर झील के किनारे रखा ही था कि उसी समय राजा के सैनिक दौड़े आए ।

 परी ने जैसे ही अपने चारों ओर सैनिकों को घेरा डाले देखा तो वह झट से हवा में उड़ गई । सैनिक हाथ मलते ही रह गए । जाती हुई परी ने ऊँची आवाज़ में कहा- " हम परी लोक में रहने वाली परियाँ , अच्छे बुरे , पाप - पुण्य की भाषा को भली - भाँति जानती हैं ।

तुम लोग सोने के पंखों को छीनने के लिए आए थे । तुम एक ही रात में सारे पंख लेना चाहते थे । अब तो तुम्हें एक पंख जो रोज़ मिलता था वह भी नहीं मिलेगा । लोभ करके तुम लोगों ने अपना ही कुछ गँवाया है । अब हम इस झील में कभी नहीं आएँगी ।

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