विभीषण की बात सुनकर भगवान श्रीराम क्यों मुस्कराये | it is important to have confidence

भगवान राम और रावण की कहानी


 कुम्भकर्ण के भी मारे जाने के बाद रावण क्रोधित हो उठा । वह वायु के समान चलने वाले रथ , चतुरंगिणी सेना , विविध रथ और वाहन तथा यानों की विचित्र सेना को सजाकर जब श्रीराम से युद्ध करने युद्ध स्थल की ओर चला , तब पृथ्वी डोलने लगी और समुद्र खलबलाने लगा । युद्ध प्रारंभ होने वाला था । दोनों सेनाएँ आमने - सामने थीं । 

विभीषण के चेहरे पर चिंता की लकीर साफ दिखाई दे रही थी क्योंकि रावण की सेना श्रीराम जी की उस वानरी सेना से लड़ने जा रही थी , जिसके पास अस्त्र - शस्त्र के नाम पर सिर्फ उनके नख और दाँत थे । विभीषण मन ही मन यह सोचकर डर रहे थे कि श्रीराम की सेना सुविधा विहीन होकर रावण की सेना से मुकाबला कैसे करेगी ।

आखिरकार जब उनसे नहीं रहा गया तो तब उन्होंने श्रीरामजी से पूछा- “ प्रभु ! आप इस रावण से युद्ध कैसे करेंगे । क्योंकि रावण के पास पर्याप्त साधन हैं और सुविधा सम्पन्नता भी है । जबकि हमारी सेना सुविधा विहीन है । हमारे समझ में कुछ नहीं आ रहे है । 

विभीषण की बात सुनकर श्रीरामजी मुस्कराये और बोले “ विभीषण , तुम्हारी बात सही है । लेकिन घमंड मनुष्य के विवेक को नष्ट कर देता है । रावण घमंड में चूर है । इसके अलावा वह अपना आत्मविश्वास भी खो बैठा है । इस समय उसमें शौर्य और धैर्य की कमी मुझे साफ दिखाई दे रही है । 

साधन और सुविधा सम्पन्नता के ही बल पर विजय नहीं मिल सकती है । इसे श्रेष्ठतम समझना मनुष्य की भूल है । और इस समय रावण भी यही भूल कर रहा है । और तुम्हारी आँखें भी यही भूल कर रही हैं । दरअसल विजय का आधार होता है मनुष्य का आत्मविश्वास । जिस रथ पर चढ़कर मनुष्य शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है वह रथ दूसरा ही है । 

उस रथ के पहिए शौर्य और धैर्य होते हैं । सत्य और शील उसकी ध्वजा पताका होती है । ये सब साधन सम्पन्नता मुझे रावण की सेना में कहीं भी दिखाई नहीं दे रही है । सबसे महत्वपूर्ण है आत्मविश्वास का होना । धैर्य का होना । " , इतना कहकर श्रीरामजी विभीषण की ओर गौर से देखने लगे ।-विभीषण ने कहा- " प्रभु ! आपने मेरी आँखें खोल दीं । आपकी बातों ने मेरे गिरते हुए आत्मविश्वास को पुनः बैठा दिया है । सचमुच में मनुष्य में आत्मविश्वास का होना अति आवश्यक है । "

और नया पुराने