पंडित कमलाकर भट्ट जिन्होने बचाया नगर का लाज | Murkh Pandit Ki kahani

हार की जीत महाराष्ट्र की एक नगरी में पंडित रुद्रेश्वर भट्ट रहते थे । वह संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे । उनके सहयोगी विद्वानों में सोमयाजी , प्रहलादाचार्य तथा नरहर शास्त्री भी प्रसिद्ध थे । पंडित रुद्रेश्वर भट्ट के एक शिष्य थे कमलाकर भट्ट । वह बहुत विद्वान थे किन्तु स्वच्छंद स्वभाव के थे । उनके गुरु रुद्रेश्वर पसंद नहीं करते थे । 

फिर भी लोग कमलाकर भट्ट का बहुत आदर सम्मान करते थे । उन्हें एक दिन पंडित रुद्रेश्वर भट्ट के सेवक ने आकर बताया - ' आचार्य जी , काशी के विद्वान और संस्कृत के प्रकांड पंडित शीतिकंठ मिश्र आपसे शास्त्रार्थ करने आए हैं । ' पंडित रुद्रेश्वर भट्ट ने वसंत उत्सव पर शास्त्रार्थ करने का निश्चय किया । उसी की सूचना पंडित शीतिकंठ मिश्र को भिजवा दी । काशी के पंडित उस नगरी में ठहर गए । 

निश्चित दिन पंडित शीतिकंठ मिश्र अपनी शिष्य मंडली को लेकर आए । पंडित रुद्रेश्वर भट्ट तथा अन्य विद्वानों ने पंडित शीतिकंठ मिश्र का बहुत आदर - सम्मान किया । शास्त्रार्थ के समय एक ओर पंडित रुद्रेश्वर भट्ट अपने सहयोगियों तथा शिष्यों के साथ बैठे थे । दूसरी ओर पंडित शीतिकंठ मिश्र अपनी शिष्य मंडली के साथ बैठ गए । 

देश के कोने - कोने से विद्वान् तथा जिज्ञासु लोग इस शास्त्रार्थ को देखने के लिए आए हुए थे ।  शास्त्रार्थ आरंभ हुआ । संस्कृत के महान ग्रंथों तथा अन्य दुर्लभ भाष्यों पर पंडित रुद्रेश्वर भट्ट ने श्लोक पाठ आरंभ किया । श्लोक पाठ  काफी समय तक चलता रहा । उत्तर में पंडित शीतिकंठ मिश्र ने वेद पाठ और श्लोक पाठ किया ।

दोनों विद्वानों के तर्कों और पाठों में अद्भुत शक्ति और आकर्षण था । लोग मंत्रमुग्ध होकर शास्त्रार्थ सुन रहे थे और देख रहे थे उनके हाव - भाव । इस तरह दिन ढल गया । रात्रि आ गई , दीप जलाकर प्रकाश किया गया । शास्त्रार्थ चल रहा था । दोनों ओर अपार उत्साह था । वहाँ रात - दिन की किसी को कोई चिंता नहीं थी । इसी तरह दो दिन बीत गए । शास्त्रार्थ चलता रहा । पंडित रुद्रेश्वर भट्ट श्लोक पाठ कर रहे थे । 



अचानक उनकी वाणी में दोष उत्पन्न हो गया । वह त्रुटिपूर्ण उच्चारण के साथ श्लोक पढ़ने लगे । कुछ देर बाद बोलते - बोलते रुक गए । उनकी वाणी ने जवाब दे दिया था । उन्होंने मस्तक झुकाकर अपनी पराजय स्वीकार कर ली पराजय के आंसू पंडित रुद्रेश्वर भट्ट की आँखों में झलकने लगे थे । यह देख , पंडित शीतिकंठ मिश्र ने अपनी लम्बी और घनी मूंछों पर ताव फेरते हुए गर्व से कहा- " बहुत नाम सुना था ।, इस नगरी के विद्वान वेद पाठ में देश में सबसे आगे हैं , किन्तु अपनी आँखों से देखकर और परखकर कुछ और लगा । ठीक है - ठीक है , ' विजयफल ' हमें दे दीजिए । कल सूर्योदय होने से पहले ही हम अपनी काशी नगरी लौट जायेंगे । 

तभी पंडित रुद्रेश्वर भट्ट के सहयोगी विद्वान प्रहलादाचार्य पाठक ने धीरे से कान में कहा- ' - " पंडित जी , पंडित कमलाकर भट्ट को बुलवाइए शास्त्रार्थ के लिए । वह बाजी मार ले जायेंगे । " यह सुन , पंडित रुद्रेश्वर भट्ट की आँखें क्रोध से लाल हो उठीं ' क्या कहा , कमलाकर भट्ट को ! ऐसे आवारा व्यक्ति को शास्त्रार्थ के लिए बुलाना हमारी नगरी का अपमान होगा । 

वह क्या शास्त्रार्थ कर सकेगा ? उसे तो इधर - उधर घूमने से ही फुर्सत नहीं । " पंडित प्रहलादाचार्य जिद करने लगे , तो पंडित रुद्रेश्वर ने कमलाकर भट्ट को  बुलवा लिया । पंडित कमलाकर भट्ट लम्बा तिलक लगाए , कंधे पर रेशम का शाल ओढ़े , शास्त्रार्थ करने वहाँ पहुँच गए । 

पंडित शीतिकंठ मिश्र ने उपहास करते हुए कमलाकर भट्ट से कहा- " आओ , पंडित जी । देखें , तुममें कितना दम है ? कितनी शक्ति है ? यहाँ तो सब पराजय स्वीकार कर अश्रु बहा रहे हैं । सावधान ! कहीं तुम्हें भी अश्रु न बहाने पड़ें । " पंडित कमलाकर भट्ट केवल मंद - मंद मुसकाए । फिर शास्त्रार्थ करने के लिए आसन पर बैठ गए । 

उनके पास में पंडित रुद्रेश्वर भट्ट के अतिरिक्त अन्य विद्वान मंडली भी थी , जो सोच रही थी - देखें , आज इस नगरी की प्रतिष्ठा बचेगी अथवा धूल में मिल जाएगी ? शास्त्रार्थ शुरू हुआ । इस बार आरंभ पंडित शीतिकंठ मिश्र ने किया था । दोनों विद्वानों की वाणी में अद्भुत क्षमता और आकर्षण था । लोग ध्यान लगाए उनकी वाणी का रस ले रहे थे । 

मगर यह क्या ! शाम ढलते - ढलते पंडित शीतिकंठ मिश्र निढाल हो गए । उन्होंने मस्तक झुका लिया । लोग पंडित कमलाकर भट्ट का जयघोष करने लगे । पंडित रुद्रेश्वर भट्ट भी अपने विद्वान शिष्य की विजय से गद गद हो उठे । उनकी आँखों में खुशी के आँसू आ गए । 

उन्होंने कमलाकर भट्ट दौड़कर गले से लगा लिया । कहा- " कमलाकर , मैंने तुम्हारे बारे में जो को सोचा , गलत था । स्वच्छंद होने का मतलब मैंने समझा कि तुम विमुख भी हो , पर ऐसा नहीं है । " विद्या का पंडित कमलाकर भट्ट चुपचाप आसन से उठे । उन्होंने अपने कंधे रेशमी शाल पराजित पंडित शीतिकंठ मिश्र के कंधे पर डाल दिया । फिर चुपचाप वहाँ से चले गए थे । सभी आश्चर्य चकित देखते रह गए । पंडित कमलाकर भट्ट ने नगरी की प्रतिष्ठा को बचा लिया था ।


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