भगवान राम ने लक्ष्मण का त्याग क्यों किया?

श्रीराम द्वारा लक्ष्मण का त्याग


श्रीराम द्वारा लक्ष्मण का त्याग भरत तथा लक्ष्मण के पुत्रों का भिन्न - भिन्न देशों के राज्य पर अभिषेक करने के बाद जब श्रीराम धर्मपूर्वक अयोध्या में राज्य कर रहे थे तब साक्षात ' काल ' एक तपस्वी के रूप में अयोध्या के राजभवन के द्वार पर आया । 

उस समय वहाँ लक्ष्मण को उपस्थित देख वह बोला " मैं महर्षि अतिबल का दूत हूँ , मेरा नाम महाबल है । मैं कुछ कारणवश भगवान श्रीराम से मिलने आये है । उस  तपस्वी की बातो को जानकर लक्ष्मण तत्काल श्रीराम के सम्मुख पहुंचे और तपस्वी के आने की उनको सूचना दी । 

श्रीराम ने उस तपस्वी को सादर राजभवन में लाने हेतु लक्ष्मण से कहा । तपस्वी के आगमन पर श्रीराम ने उनसे कहा- " आपका स्वागत है । आप जिसके दूत होकर यहाँ पधारे हैं , कृपया उनका संदेश सुनाइये । " तपस्वी ने कहा- " यदि आप हमारे हित पर दृष्टि रखें तो जहाँ में और आप रहें , वहीं उस संदेश को बताना उचित होगा । "

 तपस्वी ने आगे कहा- “ यदि आप मुनि श्रेष्ठ अतिबल के वचनों पर ध्यान दें तो आपको यह भी प्रतिज्ञा करनी होगी कि जो कोई मनुष्य हम दोनों की बातचीत सुन ले अथवा हमें वार्तालाप करते देख ले , वह आपके द्वारा . मारा जायेगा । " श्रीराम ने तपस्वी के वचन सुनकर " तथास्तु " कहकर प्रतिज्ञा की और लक्ष्मण से कहा- " महाबाहो , द्वारपाल को तदानुसार विदा कर दो और स्वयं भी द्वार पर उपस्थित रहकर पहरा दो । " 

श्रीराम के आदेश के पश्चात् द्वारपाल की जगह पर लक्ष्मण द्वार पर आकर पहरा देने लगे । तब श्रीराम ने तपस्वी से निसंकोच अपनी बात कहने के लिए निवेदन किया । तपस्वी ने बोला- “ महाराज , हमे ब्रह्मा ने आपको इत्तला करने आया हु। मै ' काल ' हु । 

संपूर्ण लोकों के स्वामी भगवान् ब्रह्मा जी ने आपको यह संदेश दिया है - ' सौम्य , आपने लोगों की रक्षा के लिए रावण वध की इच्छा से मनुष्य शरीर में अवतार लेने का निश्चय किया था । अब वह कार्य पूरा हो गया है अतः यदि और अधिक समय तक यहाँ रहकर प्रजा जन का पालन करने की इच्छा हो तो आप यहाँ रह सकते हैं अथवा यदि परमधाम में पधारने का विचार हो तो आप पुनः विष्णुरूप में प्रतिष्ठित होकर संपूर्ण देवताओं को सनाथ करें । "

काल के मुँह से ब्रह्माजी का संदेश सुनकर श्रीराम मुस्कुराते हुए बोले- “ काल , तुम्हारे द्वारा देवाधिदेव ब्रह्माजी का संदेश पाकर मुझे प्रसन्नता हुई । पृथ्वी पर अवतार का उद्देश्य पूरा हो गया है अतः मैं विष्णु लोक चलूँगा .... काल तथा श्रीराम की बातचीत चल ही रही थी कि तभी महर्षि दुर्वासा राजभवन के द्वार पर आ पहुँचे और लक्ष्मण से बोले- " मुझे शीघ्र श्रीराम से मिलवाओ , देर होने पर मेरे कार्य में बाधा पड़ेगी । " 

दुर्वासा के वचन सुनकर लक्ष्मण ने उन्हें प्रणाम किया तथा विनयपूर्वक बोले- " मुनिवर , इस समय श्रीराम को अवकाश नहीं है अतः तनिक प्रतीक्षा कीजिए अथवा मुझे अपने आगमन का कारण बताते हुए सेवा का अवसर प्रदान कीजिए । " लक्ष्मण के वचन सुनकर दुर्वासा क्रोध से तमतमा उठे और बोले- “ लक्ष्मण , तुम इसी क्षण श्रीराम को मेरे आगमन की सूचना दो ,नहीं तो मै इस राज्य , नगर , तुमको और श्रीराम को श्राप दे दूँगा । "

दुर्वासा के भयंकर वचन सुनकर लक्ष्मण ने सोचा- " श्रीराम की प्रतिज्ञा के अनुसार अकेले मेरी मृत्यु हो यह अच्छा है । सबका विनाश नहीं होना चाहिए । ” अतः वे तुरन्त श्रीराम को दुर्वासा के आग की सूचना देने उनके पास चले गए । अन्दर श्रीराम काल से बातचीत कर रहे थे । उसी समय लक्ष्मण वहाँ पहुँचे और विनयपूर्वक महर्षि दुर्वासा के आगमन की सूचना उन्हें दी । 

श्रीराम ने काल को विदा किया और दुर्वासा मुनि की सेवा में उपस्थित हो गए । - दुर्वासा ने श्रीराम से कहा- " धर्मवत्स , मैंने अनेकों वर्ष तक उपवास किया है , आज उसकी समाप्ति का दिन है अतः आपके यहाँ जो भी भोजन तैयार हो , उसमें से मैं अपने साथ आए ऋषियों के साथ भोजन करना चाहूँगा । " श्रीराम ने दुर्वासा तथा उनके साथ आए मुनियों को सादर भोजन करवाया ।

भोजन ग्रहण कर श्रीराम को साधुवाद दे मुनिवर अपने गंतव्य स्थान की ओर चले गए । इसके पश्चात् काल के वचन स्मरण कर श्रीराम दुखी हो गए । चिंतातुर श्रीराम ने महर्षि वशिष्ठ तथा मंत्रिगण के साथ पुरोहितों को बुलाया और काल के समक्ष की गई प्रतिज्ञा तथा दुर्वासा मुनि के आगमन का सारा वृत्तांत सुना दिया । तब महर्षि वशिष्ठ ने कहा- " महाबाहो , काल बड़ा प्रबल है । अतः त्रिभुवन की रक्षा पर दृष्टि रखते हुए , आप लक्ष्मण का परित्याग कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी कीजिए । " 

महर्षि वशिष्ठ के धर्मानुकूल सुझाव से उपस्थित सभी लोग सहमत हुए । तब श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा- “ सुमित्रा कुमार , धर्म का नाश न हो , इसके लिए मैं तुम्हारा परित्याग करता हूँ । साधु पुरुष का त्याग किया जाना या वध दोनों एक से ही होते हैं । इस प्रकार मैं काल के समक्ष की प्रतिज्ञा पूरी कर सकूँगा । " 

श्रीराम के वचन सुनकर लक्ष्मण के नेत्रों में आँसू उमड़ आए । वे तुरन्त वहाँ से चल दिए , अपने घर भी नहीं गए । सरयू किनारे पहुँचकर उन्होंने आचमन किया तथा हाथ जोड़कर संपूर्ण इंद्रियों को वश में करके प्राणवायु को स्थिर कर लिया । सबके देखते - देखते महाबाहो लक्ष्मण ओझल हो गए । यह दृश्य देख इंद्रादि देवता , ऋषिगण तथा अप्सराओं ने उन पर पुष्प वर्षा की ।






और नया पुराने