जापान के किसी कस्बे में एक गरीब चित्रकार रहता था । एक दिन उसकी पत्नी खाने - पीने का सामान लेने बाजार गई । जैसे ही उसने पत्नी को आते देखा , वह खुशी से झूम उठा । उसके हाथ में टोकरी थी । " इस टोकरी में क्या है ? उसने पूछ लिया । बीबी ने बताया - " हे रंजू के पापा ! पिछले काफी दिनों से हम घर में अकेलापन महसूस कर रहे थे , इसलिए { " - " अकेलापन तो आने - जाने वाले अतिथियों से दूर होता है ।
सोचो , क्या है हमारे पास ? हम उन्हें खिलाएँगे क्या ? बीबी चुप सी रह गयी । वह सोच में डूबा रहा कही चाल का केक होता । और मैं मित्रों के साथ बैठा गर्म - गर्म चाय की चुस्कियाँ ले रहा होता । पर कोई एक छोटी - सी तस्वीर भी मुझसे नहीं खरीदता । ' · पत्नी बोली- “ सुनो , मैं रात में चूहों के डर से सो नहीं पाती , इसलिए .... " चित्रकार ने हंसते हुए कहा- " चूहे हमारे जैसे लोगो के घर में रहकर क्या करेंगे ? क्या तुम खाने के लिए कुछ भी नहीं लाई हो ? " -
हाँ , मैं कुछ नहीं लाई । " - " क्या तुम बिल्ली लाई हो ? " चित्रकार चीखते हुए बोला- " यहाँ भूख से जान निकल रही है और तुम उठा लाईं बिल्ली । यह हमारी नींद हराम कर देगी । " " पर कुछ बिल्लियाँ सचमुच बहुत अच्छी होती हैं । याद है , एक बार एक बच्चे ने उजाड़ मंदिर की दीवारों पर बिल्लियों के चित्र बनाए थे । फिर बगल वाली कोठरी में सोने चला गया था ।
सुबह उसने वहाँ एक चूहे को मरा देखा । बनाओ , उस चूहे को किसने मारा ? लोगों का कहना है कि उसकी बनाई चित्र - बिल्ली ने । जानते हो , तभी तो वह नन्हा चित्रकार तुम्हारी ही तरह महान चित्रकार बन गया था । " -कहते हुए उसकी आँखें सजल हो उठीं । चित्रकार का सारा क्रोध दूर हो गया । " तुम नाराज न होओ । तुम्हारी बिल्ली अब कुछ खाना चाहती है । घर में कुछ है , तो उसे खाने को दे दो । "
पत्नी ने टोकरी खोली । उसमें से एक बिल्ली निकली । वह उछल - कूद करने लगी । चित्रकार ने ध्यान से बिल्ली को देखा । उसने कहा- " ओह ! तीन रंग की बिल्ली । ऐसी बिल्ली तो सचमुच बड़ी भाग्यवान होती है । " बिल्ली उठी और चित्रकार के पास आकर बैठ गई । उसके सिर पर हाथ फेरते हुए चित्रकार ने कहा- " अब इसका एक प्यारा - सा नाम भी तो होना चाहिए । "
तभी उसे लगा कि रसोई में कुछ उबल - सा रहा है । उसने कहा " आश्चर्य ! यह तो चावलों से भी अच्छी खुशबू है । पर रसोई में है कौन ? " पत्नी ने कहा- " इस बिल्ली का नाम ' सौभाग्या ' होना चाहिए । " - " सोभाग्या ! अच्छा नाम है । बिल्ली को रसोईघर में ले जाओ । "
यह सुनते ही वह बिल्ली के साथ रसोई की ओर चल पड़ी । अगले दिन चित्रकार ने बिल्ली को गद्दे पर गेंद की तरह गोल होकर सोते देखा । उसकी आवाज सुनते ही , बिल्ली झटपट उठ बैठी । भूख से उसकी मूंछों के बाल कुछ ऊपर - नीचे हो रहे थे । उसकी आँखें चोरी छिपे भोजन को देख रही थीं । पत्नी ने चित्रकार के सामने खूप का प्याला रखा , तो बिल्ली दूसरी ओर ताकने लगी ।
चित्रकार धीरे - धीरे सूप पीता रहा । पर बिल्ली का मुँह दीवार की ओर ही रहा । उसने भूलकर भी सूप पीते चित्रकार को ललचाई निगाहों से नहीं देखा । " सुनो ! सौभाग्या के लिए भी कुछ ले आओ , बेचारी भूखी होगी । " -चित्रकार ने पत्नी से कहा ।
थोड़ी देर बाद बिल्ली के लिए भोजन आया । चित्रकार की आवाज सुन , बिल्ली ने धीरे से उसकी ओर मुँह मोड़ा । फिर उसके पास जाकर बैठ गई । भूखी होने पर भी , उसने इस तरीके से खाना खाया कि न तो उसका मुँह गंदा हुआ और न फर्श पर ही कुछ गिरा ।
उसने आधे चावल अगले दिन के लिए बचा लिए । वह अपने मालिक पर इससे ज्यादा भार नहीं डालना चाहती थी । इसी प्रकार दिन बीत रहें थे । चित्रकार चित्र बनाने में व्यस्त रहता । पत्नी बाजार से खाने - पीने का सामान जुटाने या घर के फटे पुराने कपड़े सीने में लगी रहती । बिल्ली दोनों को काम करते देखती , पर स्वयं कुछ सहायता न कर पाती थी । चुपचाप धूप में बैठी रहती । कम से कम भोजन खाती ।
वह सिर नीचा किए घंटों महात्मा बुद्ध की मूर्ति के सामने बैठती लगता कि प्रार्थना कर रही है । बिल्ली को ऐसा करते देखकर पत्नी चित्रकार से कहती " सौभाग्या महात्मा बुद्ध की पूजा कर रही है । " " अरे नहीं , यह तो चिड़िया पकड़ने की ताक में बैठी है । क्या तुम बिल्ली से ऐसे काम की भी आशा करती हो ? "
एक दिन बिल्ली ने एक चिड़िया को पकड़ लिया । बेचारी चिड़िया बिल्ली के पंजों में दबी थी । तुरंत बिल्ली ने अपना एक पंजा उठाया , फिर दूसरा भी उठा लिया । चिड़िया फुर्र से उड़ गई । चित्रकार यह सब देख रहा था ।
' अरे ! यह बिल्ली तो बहुत दयालु निकली ।'- उसने सोचा । चित्रकार की आँखें पश्चाताप से गीली हो उठीं । इतने में उसकी पत्नी हांफती हुई आई । बोली- " स्वामी मंदिर के प्रमुख संत उधर ! कमरे में बैठे हैं । वह आपसे मिलना चाहते हैं । "
उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था । पत्नी ने कहा " जल्दी करो , गुलदस्ता बेचकर बाजार से कुछ खाने - पीने का सामान ले आओ । उसके बाद बीबी ने उसको गुलदस्ता पकड़ा दिया । वह चित्रकार पास के दूकान से जल्दी में खाने - पीने का सामग्री लेकर चित्रकार घर के कमरे में आ पहुँचा । वही पर योगी बाबा ध्यान मग्न में बैठे हुए थे ।
चित्रकार चुपके से उनके चरणों के पास जाकर बैठ गया । कुछ देर बाद संत ने आँखें खोलीं , तो उन्होंने चित्रकार से कहा " हम अपने मंदिर के लिए बुद्ध के अंतिम समय का चित्र तुमसे बनवाना चाहते हैं । चित्रकार के चुनाव के लिए सभी चित्रकारों के नामों की पर्चियाँ बनाई थीं । उन्हें बड़े कमरे में रख दिया था ।
सुबह देखा कि तुम्हारे नाम की पर्ची के अलावा सभी पर्चियाँ उड़ गई थीं । इससे हमें भगवान बुद्ध की इच्छा का पता लग गया है । हमें तुम्हारे घर के बारे में सब पता है । चित्र हाथ के हाथ बिकेंगे और तुम मालामाल हो जाओगे । "
कहते हुए संत ने महात्मा बुद्ध के कई चित्र उसके सामने रख दिए । फिर वह चले गए । ' भगवान बुद्ध ने मुझे ही क्यों चुना ? मैंने उनकी कभी प्रार्थना तक नहीं की थी । हो सकता है कि भगवान ने बिल्ली की प्रार्थना सुन ली हो । ' वह तरह - तरह की बातें सोच रहा था । तभी चित्रकार रसोईघर से उठती आवाजों से चौंक उठा । उसने रसोई में झांका , तो देखा कि पत्नी और सौभाग्य खुशी से झूम रही हैं ।
उसका हृदय भी अनजानी खुशी से भर उठा । स्वर में स्वर मिलाकर वह भी बालकों - सा चीख उठा । वह रसोईघर में पहुँचा । हंसते - हंसते उसने उन दोनों को अपनी भुजाओं में भर लिया । आज रसोईघर में तीन नई उमंग भरी आवाजें चहक रही थीं ।