एक दिन का जिक्र है कि गंगाराम पटेल अपनी प्राण प्यारी से कहने लगा - हे प्रिये ! दुनियाँ में आकर सारे दुख - सुख भोग चुके और सन्तान भी हो गई । अब मेरी इच्छा है कि समय तो बुढ़ापे का आ गया किसी दिन साँसे निकल कर अलग होंगी और मिट्टी पड़ी रह जायेगी । बद्रीनाथ की यात्रा कर आवें , घर का काम लड़के सम्हाल लेंगे , तब प्राण प्यारी कहने लगी दोहा- संग पिया हमहूँ चले , बद्रीनाथ के काज । जन्म सफल है जायगौ , सुनों श्री महाराज ॥ पटेल- संग हमारे ना चलौ , घर में बहुऐं नादान । ब्रजबल्लभ मोहन मेरे , दोनों कुमर सुजान ॥
इतनी बात सुनकर वह खामोश हो गई , थोड़ी देर बाद बुलाखीदास नाई ने दरवाजे से . आवाज दी तब गंगाराम पटेल बोले , कौन ! बुलाखीदास कहने लगा दोहा- सेवक दरवाजे खड़ा , बहुत जरूरी काम । सांकर दीजे खोलकर , कहे बुलाखीदास ॥ तब गंगाराम पटेल ने उठकर सांकर खोल बुलाखी को साथ ले ऊपर आए और बुलाखी से पूछा- कहो बाल - बच्चे खुश हैं । हाँ महाराज खुश हैं मगर सुरेश की माँ कष्टवन्ती है , कई रोज हो चुके बच्चा पैदा नहीं होता । मैं आपको तकलीफ देना चाहता हूँ ।
महाराज चक्काव लिख दीजिए , तब महाराज ने चक्काब लिख दिया । बुलाखीदास उसको लेकर अपने घर गया जाकर वो अपनी पत्नी को दिखाया सोई वह शान्तिमयी हो गई । थोड़े समय बाद बच्चा पैदा हो गया सारे घर को आनन्द प्राप्त हुआ । नेगा जोगा होने लगा और चन्द दिन बाद तगा भी बंध गया ।
कुछ दिन पीछे गंगाराम पटेल ने बुलाखी नाई को बुलाकर कहा - चलो बद्रीनाथ की यात्रा कर आवें , तब बुलाखी बोला - महाराज तीसरापन आ गया चलने में रुकावट होगी । अगर मैं चलूँ भी तो जो कुछ अजूबा चरित्र देखूँगा उसका जवाब पूछँगा , मगर आपसे जवाब न बनेगा तो वहीं से वापिस लौट आऊँगा , तब गंगाराम पटेल कहने लगे - हाँ बेशक वहीं से लौट आना ।
इतनी सुन बुलाखी नाई बोला अपनी पत्नी को पूछकर ठीक जवाब दूंगा । इतना कहकर अपने घर को आया अपनी स्त्री से कहने लगा - हे प्रिये ! पटेल बद्रीनाथ की यात्रा के लिए मजबूर कर रहे हैं , बता इसमें तेरी क्या राय है । तब बुलाखीदास की स्त्री कहने लगी दोहा- मनें करूँ ना मैं बलम , संग ले चलौ मोय । मन मेरे में लगि रही , राम करे सो होय ॥ दर्शन करि बद्रीनाथ के , सब कुनबा तरि जाय । पाप छूट सब जायेंगे , सुन पति कान लगाय ॥ बुलाखी - मनें करूँ ना पिया , बालक गोद अजान । धूप पड़े कुम्हिलायगौ , मति कहूँ कढ़ जांय प्रान ॥
। जगह -2 घूमत फिरे , मिलें बहुत शमशान । कठिन पंथ बद्रीनाथ है , क्यों हो रही कमखान ॥ पैदल चलना होयगा , तापर चला न जाय । पद काँटे चुभ जायेंगे , चले न कोई उपाय ॥ बद्रीनाथ अति दूर हैं , नहीं बीस दस कोस । एक दिन की मंजिल में , बिगड़ जाय बस होश ॥
तीरथ बद्रीनाथ ते , और न दूजौ कोय लेकिन मैं मजबूर हूँ , मानि हमारी जोय ॥ इतनी बात बुलाखी की सुन स्त्री खामोश हो गई और बुलाखी नाई गंगाराम पटेल के पास जा कहने लगा - महाराज ! मैं तैयार हूँ , कहो कब चलने की तैयारी है । मेरे बाल बच्चे भी तीरथ करने की हठ पकड़ रहे हैं । जैसे तैसे पीछा छुड़ाकर आपके पास खर्चा लेने के लिए आया हूँ । तब गंगाराम पटेल ने 100 रु 0 बुलाखी नाई को दिए और कहा - कल की दिशा अच्छी है । शाम के चार बजे बाद चलेंगे , घर का इन्तजाम कर तैयार होकर आ जाना बुलाखी इतनी बात सुनकर अपने घर गया और रुपये अपनी स्त्री को जाकर दे दिए और कहा - कल चार बजे बाद बद्रीनाथ को रवाना हो जायेंगे ।
तब बुलाखी की स्त्री कहने लगी - हे प्राणनाथ ! एक कहना मेरा अवश्य मानो जिससे जल्दी घर को वापिस आओगे । महाराज से नित्य प्रति अजूबा चरित्र कहना , अगर जवाब न दे सकें तो वहीं से वापिस आ जाना । तब बुलाखी ने कहा अच्छा ? इतना कह भोजन पा रात को आराम किया । दूसरे दिन बिस्तर बाँध , खाना खा अपनी स्त्री को समझाकर बुलाखी . नाई गंगाराम पटेल के पास गया और कहा - महाराज चलिए , चार बजे का समय हो गया ।
तब गंगाराम पटेल ने बुलाखी नाई से कहा कि घोड़े पर जीन कसो मैं खुरजी में सारा सामान रख लूँ । बुलाखी ने घोड़े पर जीन कस - दिया । गंगाराम पटेल झट कोढ़ा हाथ ले खुरजी घोड़े पर डाल सवार हो लिए । आगे - आगे बुलाखी चल दिया । जब चलते - चलते शाम होने को आई तो बुलाखी नाई कहने लगा महाराज ! हम तो थक गए कहीं पर विश्राम कीजिए ।
तब गंगाराम पटेल कहने लगे - सुनो आगे वाले बाग में विश्राम करेंगे । ऐसा कहते - कहते बाग भी आन पहुँचा और दोनों जने बाग के अन्दर गए और घोड़े को एक वृक्ष से बाँध दिया और एक पेड़ तले अपना बिस्तर डाल बाग की हवा खाने लगे । बाग में अनेक प्रकार की फुलवारियाँ फूल रही थीं । पक्षी किलोल कर रहे थे ।
एक तरफ गोल कुंआ बन रहा था । दोनों बाग की हवा खा अपने बिस्तर पर आए तब गंगाराम पटेल बुलाखी नाई से कहने लगे कि तुम बीकानेर शहर को जाओ और सामान लेकर आओ बुलाखी नाई बोला बहुत अच्छा दाम लाओ और सामान बताओ । गंगाराम पटेल कहने लगे कि घोड़े को दाना , घास , गुड़ , मसाला और अपने लिए आटा दाल घी लकड़ी वगैरहा लेकर जल्दी आओ ये लो दस रुपये देरी न करना ।
बुलाखी नाई रुपये लेकर शहर गया और एक वैश्य की दुकान पर जाकर आटा , दाल , घी व दाना घास लकड़ी लेकर चल दिया । आगे चलकर क्या देखा कि एक लड़का मरा हुआ पड़ा है चौतरफा आदमी खड़े हैं कुछ देर बाद बच्चा जिन्दा हो गया । बुलाखी नाई ने पूछा कि यह बच्चा कब मरा था । बेटा वाला बोला कल सुबह मरा था
यह सुन बुलाखीदास गंगाराम पटेल के पास सामान लेकर आ गया और कहने लगा महाराज यह लो सामान मैं तो घर को वापिस जाता हूँ । महाराज बोले क्यों जाता है , तब बुलाखी नाई कहने लगा - मैं एक अनौखा चरित्र देख आया हूँ उसका जवाब चाहता हूँ ।
तब महाराज कहने लगे कि तुम चौका बर्तन करो मैं भोजन बना लूँ । जिसके बाद हम तुम भोजन पा चुके तब अपने देखे हुए अजूबा चरित्र को कहना । मैं जवाब दूँगा तब बुलाखी ने चौका बर्तन किया गंगाराम पटेल ने भोजन बना आनन्द पूर्वक भोजन पाये । बुलाखी नाई ने बर्तन साफ किए और घोड़े को दाना - घास खिलाकर फारिग हो महाराज का बिस्तर जमा दिया ।
जिसके बाद हुक्का भरकर रख दिया वह हुक्का पीने लगे और बुलाखी पैर दबाने लगा तब गंगाराम पटेल कहने लगे - हे बुलाखी ! अब अपने देखे हुए अजूबा चरित्र को कहो । तब नाई कहने लगा महाराज ! मैं जब सारा सामान खरीदकर चला आ रहा था तो क्या देखता हूँ कि एक बच्चा मरा हुआ
जिंदा हो गया और चौतरफा आदमियों की भीड़ लगी थी और उसके बाप ने मरे बच्चे पर 3000 रुपये गिना लिए गए महाराज यह क्या मामला था । तब गंगाराम कहने लगे कि हे बुलाखी नाई फौज में नक्कारा बात हुँकारा , बन्द हो गया तो बात भी वहीं बन्द हो जावेगी ।