राजकुमारी का अनोखा शादी करने का शर्त | 6 The Story Of The Prince

 

राजकुमारी और परियों की कहानी

छठवी मंजिल मुकाम बरेली छठवें दिन चार बजे गंगाराम पटेल व बुलाखी नाई उठकर दिशा मैदान हो कुल्ला दाँतुन कर नित्य कर्म व सभी काम से फारिग हुए । गंगाराम चाबुक हाथ ले घोड़े पर सवार हो लिए और पीछे - पीछे बुलाखी चल दिया । जब चलते चलते दोनों थक गए और जब शाम होने को आई तब एक बाग नजर आया तो दोनों जने बाग में घुस पड़े और घोड़े को थान से लगा दिया ।

 बुलाखी नाई पैसे लेकर शहर को चल दिया और आटा , दाल , धी , दाना घास लेकर लौटकर जो वापिस चला तो क्या देखता है कि एक बड़ा भारी मैदान के कुछ भाग में अथाह जल है , उस जल में एक खम्भ खड़ा है और उस खम्भे के ऊपर एक सुन्दर पलंग बिछा है । उस पर एक नौजवान कन्या बैठी हुई है । उसके हाथ में तलवार लगी है ।

उसके आस पास बहुत से डेरा लगे हुए हैं । ऐसा अजूबा चरित्र देखकर बुलाखी नाई गंगाराम पटेल के पास आया और सारा सामान रखकर हाथ जोड़कर कहने लगा कि महाराज ! आज मैं एक अजूबा चरित्र देख आया हूँ , उसका जबाब दीजिएगा । तब गंगाराम पटेल कहने लगे कि मैं भोजन बना लूं और तू घोड़े को रातब , दाना , घास खिला , उसके बाद हम तुम भोजन जीम लें , तब तुम अपना अजूबा चरित्र को कहना में जवाब दूंगा । 

तब बुलाखी नाई घोड़े को घास खिलाकर उधर गंगाराम पटेल भी भोजन बनाकर दोनों खाने लगे । जब भोजन पाकर फारिग हुए तब गंगाराम कहने लगे कि बुलाखी अब तू अपने देखे हुए अजूबा चरित्र को कह । तब बुलाखी ने देखे हुए अजूबे चरित्र को कहा जिसे सुन गंगाराम पटेल कहने लगे दोहा- जो चरित्र देखा तैने , उसका सुनो जवाब | ध्यान लगा सुन लीजियो , सोना मती जनाव ॥ कंकरपुर का एक राजा था , जिसका नाम भयदीप था । वह राजा बहुत न्यायकारी धर्मात्मा था उसकी रानी भी अति सुन्दर थी , लेकिन देवयोग से सन्तान नहीं थी उसकी वजह से राजा और रानी अति मलीन रहते थे । 

एक दिन कचहरी में जाकर राजा ने बड़े बड़े विद्वानों पंडितों बुलाया और हाथ जोड़कर कहने लगा कि हे महाराज ! मेरे सन्तान क्यों नहीं होती ? तब पंडितजन राजा की जन्म पत्री को देखने लगे और एक बुढ्डा पंडित राजा से कहने लगा - हे महाराज ! चिन्ता न कीजिए आपके सन्तान तो अवश्य होगी , सात पुत्री होंगी । आप पुत्रेष्ठ यज्ञ कीजिए , तो पुत्र होंगे । 

राजा ने पंडितों के कहने के मुताबिक यज्ञ करना शुरू कर दिया और पूर्ण यज्ञ कर पंडितों को दक्षिणा दी । देवयोग से राजा के पुत्री पैदा हुई , रानी व राजा को बड़ा आनन्द हुआ और बड़ा उत्सव किया । अब तो राजा के सात पुत्र पैदा हुये । फिर तो वह सारी फिकर भूल गया तथा एक बाग बहुत अच्छा चौराहे पर मैदान में लगवाया । कुछ समय बाद वहाँ आकर वह सारे बाग में घूमने लगा । फिर माली से कहा - अभी फूल फल नहीं आये । तब माली कहने लगा कि श्री राजन , फूल तो कई तरह के आ रहे हैं पर अभी फल नहीं आये , आने वाले हैं । 

तब राजा कहने लगा दोहा- रखबारी करो बाग की , मन को खूब लगाय । 7 मनें करो मति काहू से , जो कोई फल खाय ॥ राजा ने दीवान को हुक्म दिया कि मेरे बाग में पक्की प्याऊ बारहमासी कर दी जावे ताकि राहगीर आनन्द पावें । एक धर्मशाला जिसमें चारपाईयाँ और बिछौने लगे रहें और सदावर्त जारी किया जावे । राजा के कहने के मुताबिक सब काम तैयार करवा दिए और सदावर्त बंटने लगा । सैकड़ों भिखारी आने लगे और राजा की जय जयकार होने लगी । 

थोड़े दिन बाद बाग में फल आने लगे परन्तु जो फल दिन में लगते थे उनको परियाँ रात में आकर खा जाती थीं । आखिर को माली राजा के पास आ हाथ जोड़कर कहने लगा दोहा विनय करूँ कर जोड़कर , सुनो श्री महाराज । चक्कर कोई बाग में , कहते आवे लाज ॥ जो फल लागत वृक्ष पर , खा जाता कोई चोर । सारी निश जगता रहूँ , बिन सोये होय भोर ॥ 

इतनी बात माली की सुनकर राजा बहुत गुस्सा होकर कहने लगा । माली तू बड़ा मक्कार है । तू रात को पैर पसार कर सोता है । अच्छा हम आज दो पहरेदार भेजेंगे और वे चोर को पकड़कर लायेंगे । इस वक्त तू बाग में जा , माली बन्दगी करके बाग में आया । इधर राजा ने दो चपरासी जिनका नाम चुन्नी , मुन्नी था बुलवाये और उनसे कहा कि तुम दोनों आदमी आज बाग का पहरा दोगे बाग में कोई चोर रात को आता है और सारे फल खा जाता है । तुम मय हथियार के जाओ , जगकर चोर को पकड़कर लाओगे तो तुम्हें 1000 रुपया इनाम मिलेगा । 

इतनी बात राजा की सुनकर दो चपरासी बाग में जा पहुँचे और पहरा देने लगे । जब करीब दस बजे का वक्त हुआ तो बाग के चारों तरफ दोनों टहलने लगे और चोर की तलाश में नजर फेंकने लगे । करीब बारह बजे पहरेदारों को नींद आ गई । इधर परियाँ जो आसमान से आई और खटोला से उतरकर वृक्षों के सारे फल खा चम्पत हुई । पहरेदार सोते से आये तो वृक्षों पर कोई फल नहीं मिला । पहरेदार विचारे सूख गये और आपस में कहने लगे कि ऐसा कोन चोर है जिसको हमारा डर नहीं लगा और किधर होकर घुस आया और किधर होकर निकल गया । आज राजा हमको नौकरी से निकाल देगा । 

इधर से राजा घोड़े पर सवार हो बाग में आया और फल देखने लगा । वृक्षों पर एक भी फल नहीं मिला तब पहरेदार राजा से कहने लगे  दोहा- दुशियारी की बहुत सी , रहे रात भर जाग । ना मालूम कब ले गये , तोड़ -2 कर पात ॥ यह सुनकर राजा दरबार में आया और कोतवाल से कहने लगा कि अब तुम होशियारी करो और चोर को पकड़ो तुम्हें 5000 रुपया इनाम दिये जायेंगे । कोतवाल दो चार सिपाहियों को साथ लेकर मय हथियार के बाग के चारों तरफ पहरा देने लगे । 

जब रात के बारह बजे का वक्त हुआ , परियाँ आई और फल तोड़कर खा चम्पत हो गई सवेरा होते ही कोतवाल ने फल देखे तो कोई फल नहीं मिला । लाचार हो राजा के पास आया और कहने लगा कि महाराज कोई चोर बड़ा चालाक है जो फल तोड़कर ले जाता है और हाथ नहीं जाता है । बहुत होशियारी की लेकिन हाथ न आया । राजा कुछ खामोश होकर कहने लगा कि जो कोई चोर को पकड़ेगा उसको आधा राज दिया जायेगा । 

ऐसा वचन सुन राजा के सातों लड़कों ने विचार किया अगर किसी ने चोर को पकड़ लिया तो आधा राज ले लेगा तो बड़ी मुसीबत अटक जाएगी । इसलिए हम - तुम ही क्यों न पकड़ें । ऐसा मसबरा कर सबसे बड़ा लड़का राजा से बोला कि हे पिताजी ! चोर को हम पकड़ेंगे । तब शाम को राजा का सबसे बड़ा लड़का दस बीस सिपाहियों को मय हथियार के ले बाग में जा पहरा देने लगा । बाग के चारों तरफ तरह की आवाज देने लगे कि भाई जागते रहो , 

जब बारह बजे का समय हुआ । आसमान से परियाँ आईं और फल खा चम्पत हो गईं । जब सबेरा हुआ तो राजकुमार ने फल देखे तो कोई फल नजर न आया और दरबार में आकर अपने पिता से सारा हाल कह सुनाया । दूसरे दिन दूसरा लड़का चोर पकड़ने के लिए तैयार हुआ और चालीस सिपाही साथ ले मय हथियारों के बाग में पहुंचे और पहरा देने लगे । जब बारह बजे का वक्त हुआ परियाँ आईं और सारे फल तोड़कर खा गईं । सुबह का वक्त हुआ राजकुमार की निगाह पेड़ों पर गई तो फल किसी पेड़ पर दिखाई न दिए । लाचार हो अपने पिता से सारा हाल कह सुनाया । 

तीसरे दिन तीसरा लड़का तैयार हुआ । शाम हुई तब 100 नवजवान चपरासी साथ ले मय हथियारों के बाग जा पहरा देने लगे और सारी रात जागते रहे लेकिन परियाँ अपने समय पर फल तोड़ खाकर चली गईं । लाचार हो उसने भी अपने पिता से सारा हाल कह सुनाया । ऐसे ही राजा के छः पुत्र रखवारी कर चुके लेकिन चोर किसी से पकड़ा न गया । 

तब सबसे छोटा राजकुमार चोर पकड़ने को तैयार हुआ । तब राजा कहने लगा दोहा - बालक बुद्धि अजान तू , सुनि बेटा घर ध्यान । चोर न पकड़ा जायेगा , कही हमारी मान ॥ लड़का - पकड़ चोर मैं लाऊंगा , रोको मत तुम मोय । अकेला ही मैं जाऊंगा , राम करे सो होय ॥ 

इतना वचन सुनकर राजा खामोश हो गया और राजकुमार एक चाकू तमंचा फर्सा हाथ में लेकर बाग को चल दिया और बाग में जा अपनी उंगली चीर नीबू का रस डाल ऊपर नमक डाल एक पेड़ की खपाल में चुपचाप बैठ गया । जब बारह बजे का समय हुआ , आसमान से परियाँ नीचे आई और खटोले से उतरकर जो पेड़ों पर गई तो फौरन राजकुमार खपाल से निकल कर खटोले में रस्सा एक पेड़ से बाँधकर उसी खपाल में जा बैठा । 

परियां आपस में कहने लगीं कि बहनों आज दाल में कुछ काला है । जल्दी करो आज इस बाग में कोई आवाज तक नहीं देता । ऐसा कह जो खटोले में बैठी और उड़ाया तो खटोला नहीं उड़ा । लाचार हो कहने लगीं दोहा- कौन कहाँ तू छिप रहा , ये नेक बोल सुनाव देरी हमको है रही , क्यों तू रह्यो दुखाय ॥ है या देवता , सन्मुख करियो बात । जो माँगेगा सो वेगा , क्यों करना अपघात ॥ तब राजा का लड़का कहने लगा कि ना में भूत हूँ न बलाय हूँ मैं मानुष हूँ । 

तुमने बहुत दिनों से चोरी की हम सब परेशान हो गए , लेकिन तुम हाथ न आई । आज हमारे हाथ पड़ी हो तुमने सारा बाग उजाड़ डाला है । हमने बाग लगाया , सो एक भी फल ना खाया । तुम रोजाना तोड़कर खा जाती हो । आज मैं तुमको राजा के पास ले चलूँगा । तब परियाँ कहने लगी कि हे राजकुमार ! आज हमारे कसूर को माफ कर , आइन्दा हम इस बाग में न आयेंगे , अपनी समझ हमको छोड़ दें । तब राजकुमार कहने लगा कि मैं अपने पिता को किस तरह मुँह दिखलाऊंगा । अगर मुझे पूछेगा कि चोर को पकड़ कर लाए तो मैं क्या कहूँगा ? मैं तुमको इस तरह छोड़ नहीं सकता । 

तो परियाँ कहने लगीं कि तुमको हम सात जनीं सात बाल देती हैं जिस समय तुमको जरूरत पड़े उस समय हम सातों तेरे पास आ जावेंगी और तू कहेगा वही काम तेरा हम सब पूरा करेंगी । तब राजकुमार ने परियों से कहा कि मुझको धोखा तो नहीं देती हो । तब परियाँ कहने लगीं कि हम धोखा नहीं देती तू हमको याद करेगा , हम हाजिर होंगी । 

तो राजकुमार ने खटोला से रस्सा खोल दिया और परियाँ खटोले में बैठकर रवाना हुई । इधर राजकुमार माली से फल तुझ्याकर अपने पिता के पास लाया और कहने लगा कि पिताजी चोर पकड़ लिया और कल बदकसूर बाग में लगे हुए हैं कुछ फल में तोड़कर ले आया हूँ सो यह लीजिए । राजा ने फल हाथ में रख और कुछ आदमी साथ में ले बाग को गया तो सारे बाग में फल पाये । राजा बहुत खुश हुआ और अपनी कचहरी में आ कहने लगे - हे राजकुमार ! तुममें सबसे छोटा राजकुमार होशियार निकला , जिसने चोर पकड़ लिया । अब आधा राज छोटे को मिलेगा । 

तब छोटा राज नार कहने लगा हे पिता ! मै राज्य नहीं लूँगा । सब भाइयों को रहने दो । तब राजा कहने लगे कि हक तो तेरा है , तू ही आधे राज का मालिक हुआ । इतना कह राजा ने बड़े लड़के से कहा कि तुमको शर्म नहीं मालूम होती है , तुम्हारे सबसे छोटे भाई ने चोर पकड़ लिया , तुम सब लोग थोड़े  सिपाही भी ले गये थे वह फड़कदम अकेला ही गया । ऐसा वचन अपने पिता का सुनकर छः जो बड़े लड़के थे वह अपने -2 घोड़े ले और थोड़ा खर्च ले कुछ नौकर ले परदेश को चल दिए । 

जब छोटे लड़के ने सुना , तो वह भी एक छोटा सा बक्सा थोड़ा खर्च और जो परियों ने बाल दिए थे वह भी खुर्जी में रख घोड़े पर सवार हो चल दिया । अब चलते -2 अपने भाइयों को खोज लिया ।

तब छहों भाई कहने लगे कि पिता ने तुझे राज दिया है तुम राज करो । हम अब लौटकर नहीं चलेंगे । इतना कह आगे को चल दिये और पीछे -2 छोटा चल दिया । तब बड़े भाई कहने लगे कि हमारे साथ मत चल , घर को वापिस जा , राज करना । 

लेकिन छोटे ने न मानी और उनके पीछे -2 चल दिया । आखिरकार चलते 2 फतेहपुर में पहुँचे और एक सराय में भटियारी से कहने लगे कि हे भटियारी ! हम सराय में ठहरना चाहते हैं । भटियारी कहने लगी , आप दो चार दस दिन रहो । किराया रोजाना दे दिया करो और वह ठहर गये । 

अपने - अपने घोड़ों को बाँध दाना व घास खिला पिलाकर भोजन कर आराम के साथ सो गये । रास्ता के मारे तो थे ही सोते -2 सुबह हो गयी । दूसरे दिन शहर में घूमने के लिए जा रहे थे कि भटियारी कहने लगी कि हे मुसाफिर ! तुमको आज एक नया तमाशा दिखाऊंगी , वह तमाशा रात का है । इस वक्त खाना खा आराम करो । भटियारी के कहने के मुताबिक खाना खा आराम करने लगे । 

सो हे बुलाखी नाई ! फतेहपुर के राजा के एक राजकुमारी थी जिसका नाम लक्ष्मी था वह जब शादी योग्य हुई तब राजा ने वर की तलाश करवाई पर राजकुमारी के तप तेज के मारे कोई उससे शादी नहीं करता । एक दिन राजकुमारी ने अपने पिता से कहा किहे पिताजी ! मैं उसके साथ शादी करूँगी जो मेरे प्रण को पूरा करेगा । तब पिता कहने लगा कि है बेटी तेरा प्रण क्या है ? 

तब राजकुमारी कहने लगी कि जो आपका तालाब है । जिसमें अथाह जल है और बीच में खम्भ गढ़ा हुआ है उस खंभे पर पलंग बिछा हुआ है , मैं उस पलंग पर हाथ में तलवार लेकर बैठ जाऊंगी , उस वक्त जो मेरे उर में सात दफा गेंद मार देगा वह मुझको ब्याह ले जावेगा । राजा ने ऐसा वचन सुन सारे देशों में मुनादी करा दी कि जो मेरी बेटी का प्रण पूरा करेगा उसी के साथ शादी होगी । 

अब तो सारे देशों में हलचल मच गई । राजा लोग और वीर बहादुर सोचने लगे कि इतने ऊंचे पर गेंद सात दफा कैसे मारी जावेगी जिसके नीचे अथाह जल भरा हुआ है । यह प्रण उधर सातों भाइयों ने भी भटियारी से पूछा कि तुम्हारे शहर में क्या हलचल मच रही है । तब भटियारी बोली दोहा - माधवपाल की सुता , विद्या में हुशियार । प्रण ठाना है ब्याह का , कहती खड़ी पुकार ॥ 

उसका यह प्रण है कि जो कोई सात बार मेरे उर में गेंद मारेगा , उसके साथ शादी करूंगी । गेंद मारना सरल काम नहीं । तब भटियारी ने कुमारों को उसका प्रण सुना दिया । तब बड़े छः भाई छोटे भाई से कहने लगे कि तू चलकर क्या करेगा यहीं सराय में रह । तब छोटा भाई कहने लगा , तुम्हारा कुछ नुकसान नहीं है मै भी तमाशा देख आऊंगा । लेकिन भाइयों ने उसे जाने नहीं दिया और आप चल दिये । छिप छिपकर छोटा भाई भी पीछे से चल दिया । 

घोड़े पर सवार होकर वहाँ पहुॅचे जहाँ राजकुमारी का स्वयंवर था वहाँ जा पहुंचे । बहुत से राजा योद्धा लोग जमघट में थे किसी की हिम्मत न पड़े कि राजकुमारी के उर में गेंद मार दें , क्योंकि चारों तरफ खम्भे के अथाह जल था , रास्ता कहीं होकर न था , दूर से उस कुमारी को देख देखकर ललचाते थे । 

सो हे बुलाखी ! जो ये सात भाई आये थे उनमें जो छोटा भाई था उसने झोला से परियों के दिए हुए बाल निकालकर मुझ धूप दीप से कहा कि हे परियों , इस वक्त हाजिर हो , पर बड़ी तबाही है । इतना कहना हुआ कि आसमान से परियाँ आईं और कहने लगीं कि हमको क्यों याद किया । उसने सारा हाल बता दिया । 

तब उन्होंने एक काला उड़ता घोड़ा व काले वस्त्र राजकुमार को फौरन लाकर दे दिये । उस घोड़े पर छोटा लड़का उन पाँचों कपड़ों को पहन कर सवार हो नाचता हुआ स्वयंवर में गया तो सब राजाओं की निगाह उस छोटे राजकुमार पर गई । वह घोड़े को नचा - नचाकर राजकुमारी के बराबर जाकर गेंद और उसके उर में मारने लगा फौरन वहाँ से रवाना हुआ सराय में सबसे पहले आ गया और आराम करने लगा । 

जिसके बाद उसके छः भाई वहाँ से आकर सराय में आराम करने लगे और आपस में कहने लगे कि जिसने कुमारी के उर में गेंद मारी थी वह कोई राजकुमार मालूम होता है । देखो कैसा स्वरूपवान व चतुर था । घोड़ा भी सुन्दर और चंचल उड़ने वाला था । उसने उड़कर कुमारी के बराबर ले जाकर गेंद मार दी । घोड़ा काला था और काले ही असवार पर कपड़े थे फिर उस घोड़ा और असवार का पता न चला वह किधर को गया । ऐसा कह सबके सब सो गए । सोते -2 सबेरा हो गया और सब जाग पड़े । 

दिशा मैदान हो स्नान कर नित्य कर्म से फारिग हो जब शाम हुई तब दूसरी रात को छेऊ भाई तैयार हुए तब छोटा भाई कहने लगा हम भी तुम्हारे साथ चलेंगे । तब बड़े भाईयों ने उसको फटकार दिया और छोड़कर चल दिए । पीछे - पीछे छोटा कुमर चल दिया  छाटे कुमार ने एक सफेद घोड़ा और कर घोड़ा पर सवार हो बाजार को गया और तमोली की दुकान से पान खाकर घोड़े पर सवार हो नाचता हुआ रवाना हुआ । 

कुछ देर बाद घोड़े में ऍड़ लगाकर उड़ा दिया और कुमारी के बराबर आ उसकी छाती में गेंद मार फौरन वापिस हुआ और अपने सादे रूप में ही सराय में आकर चारपाई पर लेट गया । वस्त्र सबेरा हुआ तो नित्य कर्म कर भोजन पा शाम को हवा खाने गये । जब रात हुई तब छहों भाई उस कुमारी का तमाशा देखने चल दिए । पीछे - पीछे छोटा भाई भी चल दिया और एकान्त में जा बालों को धूप दे हरा घोड़ा और हरे वस्त्र मंगाकर पहन लिये और घोड़े को नचाता हुआ सभा में पहुँचा तो चारों तरफ की निगाह उसी कुमर पर गई तो उसने घोड़ा को कुछ देर नचा कुदा कर ऐड़ लगा दी घोड़ा फौरन उड़ा और कुमारी के बराबर जा उसकी छाती में गेंद मार फौरन वापिस आ गया राजकुमारी ने बहुत पहचाना लेकिन ठीक तौर से पहचान न सकी । 

अब चौथे दिन का जिक्र है कि शाम हुई और छः भाई सराय से चल दिए तब छोटा भाई भी चल दिया । एकान्त में जा पीला घोड़ा और पीले वस्त्र पहिन बाजार में नाचता हुआ राजकुमारी के बराबर जा घोड़े में ऐड लगा दी और राजकुमारी की छाती में गेंद मारी तब राजकुमारी ने कहा - तुम कल सुबह मेरे मकान पर आओ मैं तुम्हारी स्त्री हो चुकी । 

लेकिन उसने उसके कहने का कुछ ख्याल न किया और सराय सब आ गए और दिन शाम हुई तब चल दिया बातचीत कर सब सो गए ; · छहों चल दि  छोटा भाई अब फासता रह गया तब उसने बादामी घोड़ा और बादामी वस्त्र मंगाकर पहन लिये और घोड़े को नचाता हुआ शहर में पहुँचा और कुमारी की तरफ घोड़ा बढ़ाया । राजकुमारी होशियार हो गई और जान लिया कि रोज आने वाला पुरुष है भेष और घोड़ा बदला करता है । 

दिन में न जाने कहाँ रहता है , इतना मन में सोचती थी कि राजकुमार ने घोड़े में ऐड़ लगादी और राजकुमारी की छाती में गेंद मारकर रवाना हुआ और सराय में आ सोया । जिसके बाद उसके छहों भाई आये और आपस में कहते हैं कि जो गेंद मारता है वह कोई राजा का लड़का है रोजाना भेष बदलता है और दिन में नहीं मिलता जाने कहां रहता है । इतना कहकर सब सो गये । छठवें दिन जब शाम का समय हुआ तो छहों भाई चल दिये । छोटा भाई पीछे से एक आसमानी घोड़ा व आसमानी वस्त्र मंगा सज धजकर घोड़े को नचाता हुआ उस खम्भे के पास गया और घोड़े में ऐड लगा दी । 

इसी तरह राजकुमारी की छाती में गेंद मारकर सराय को वापिस आया । राजकुमारी झुंझला -2 कर रह गई और विचार करने लगी कि इसकी पहचान किस तरह हो । सातवें दिन शाम को सातों भाई सराय से शहर को चल दिये । छोटा भाई पीछे रह गया और पचरंग घोड़ा तथा पचरंग कपड़ा पहन घोड़े पर सवार हो शहर में पहुँचा और पान छालियाँ खट्ठा मिट्ठा ले अपने भाइयों को दिए और घोड़े को नचाता हुआ खम्भे के पास पहुँच घोड़े में ऐड लगाकर उड़ा दिया और कुमारी के बराबर जा गेंद मारी तो उसी वक्त कुमारी ने तलवार की नोंक उसके पैर में छेद दी तो खून निकल आया । 

तो उसने सराय में आकर घाव में पट्टी बाँध ली । उधर कुमारी ने तलवार से खून लगा देख बड़ी खुश हुई कि अब पहचान तो हो जायेगी उसके पैर में तलवार का घाव होगा । सो हे बुलाखी ! तू उस कुमारी को देख आया है वह माधवपाल की कन्या है । तब बुलाखी नाई ने कहा - महाराज ! इस किस्से को मुझे पूरा सुना दीजिए । 

तब पटेल कहने लगे - हे बुलाखी नाई राजकुमारी ने उसकी पहचान करने को सारे नगर में भोजन का निमंत्रण दिया । पंगत बैठती गई परन्तु कोई जख्मी लंगड़ाता हुआ नजर न आया राजकुमारी सिपाहियों से कहने लगी अब कोई बाकी तो नहीं रहा । तब सिपाही कहने लगे कि सात ज्वान सराय में रह गये हैं । तब कुमारी ने कहा - अभी जाओ और अपने संग लिवाकर लाओ व भोजन कराओ । 

तब शहजादे कहने लगे । तब दोहा- कहा भूप से काम है , सुनों सवार सुजान । हरगिज हम नहीं जायेंगे , हम परदेशी ज्वान ॥ सिपाहियों के कड़े आदेश को सुन सातों भाई पोशाक पहनकर चल दिए । छोटा भाई जख्म की वजह से धीरे धीरे चलने लगा । तब बड़े भाई कहने लगे अरे तू लंगड़ाता क्यों है ? छोटा भाई हंसकर बोला - जब रात तमाशे से वापिस आया तो पैर में लकड़ी चुभ गई , इसके दर्द से लरखरा रहा हूँ । इतनी सुनकर सब भाई धीरे -2 चलने लगे और शहर को देखते हुए राजा के महल में जा पहुँचे । 

राजकुमारी गौख से देख रही थी कि कहीं गेंद मारने वाला नजर पड़े । इतने ही में उस पर नजर पड़ी तो वह जिगर में समा गया और पहचान लिया । कुमारी ने अपने पिता को बुलाकर कहा - पिताजी ये परदेशी सात ज्वान आये हैं उनको में स्वयं अपने हाथों से भोजन जिमाऊंगी । इनको आगे वाले चौक में बुलवा लीजिये । राजा ने फौरन ही सातों ज्वान चौक में बुलवाये और उनको कार्य अनुसार बिठलाया और कहा कि आप भोजन पा लीजिये । 

हमारे यहाँ सारे नगर को निमंत्रण था , सब लोग भोजन पा चुके सिर्फ आप लोग ही बाकी रहे हैं । तब राजकुमारी ने उन सातों को भोजन कराये जब जीमकर उठे तो सबसे छोटा लंगड़ाता हुआ उठा तो फौरन शहजादी ने हाथ पकड़कर कहा - प्राणपति आप कहाँ जाते हो , आपने मुझको 7 दिन धोखा दिया है । 

तब शहजादा कहने लगा दोहा- किसको रही तू पकड़ कर , किसने दई बहकाय । क्या हो गई तू बावरी , सुनले कान लगाय ॥ तू तब शहजादी कहने लगी - में बावरी नहीं हूँ , आपने ही सात बार मेरी छाती में गेंद मारी है । मैंने अच्छी तरह पहचान लिया है । आप पैर की पट्टी खोलिये तलवार का जख्म होगा , यह सुनकर छहों भाई बाहर आए और पट्टी शहजादी ने खुलवाई तो घाव बदस्तूर मिला यह खबर राजा को मिली तो उसके साथ शादी कर दी । हे बुलाखी नाई ! तू उस राजकुमारी को देखकर आया है । वह सब वृतान्त मैंने तुझे सुना दिया है ।


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