एक था राजा । बड़ी सेना थी उसके पास । शत्रु उसके नाम से थति थे । एक बार रानी का कीमती हार चोरी हो गया । राजा ने घोषणा करवाई - ' जो चोर का पता लगाएगा , उसे मुंहमागा इनाम मिलेगा । पाँच हजार स्वर्ण मुद्राएँ राजा अपनी तरफ से देंगे । '
यह घोषणा सुन , एक दिन एक दुबला - पतला आदमी फटे - पुराने कपड़े पहने दरबार में आया । उसने राजा से कहा कि वह चोर को जानता है । राजा ने बोला पहले आप ये बताइये की अपने राज्य में कौन-कौन ब्यक्ति चोरी चमारी करते है ? चोर ने बोला मै हूँ सरकार । यह रहा आपका हार । " कहते हुए उसने जेब से हार निकाल कर वहाँ रख दिया । राजा हैरान था । चोरी करने वाला कहा - " महाराज, पहले आप मुझे इनाम देंने का कष्ट करे। उसके बाद जो मर्जी वह सब करें हमें मंजूर है । "
राजा को एहसास हो चुका था कि ये काफी चतुर चोर है । राजा ने बताया- " तुमको इनाम अवश्य मिलेगा । लेकिन तुम्हे यह बताना ही होगा कि तुमने चोरी चमारी क्यों की ? " क्या करता राजन ? घर में दाना - पानी न था । खेत का लगान अधिक था । उसे न चुका पाने के कारण राज कर्मचारियों ने खेत ले लिए थे । "
राजा ने बोल पड़े- " तुम्हे तुम्हारे खेत वापस मिल जायेंगे । परन्तु तुमने राज भवन के अंदर में चोरी चमारी का काम क्यों की ? " उसने हिंदी में बोला- " महाराज , हमको गरीब परिवार के घर में चोरी चमारी करने से भला क्या मिल सकता था ? निर्धन होने पर भी वे सावधान और चौकन्ने रहकर अपने घरों की देखभाल करते हैं । फिर वहाँ मैं पकड़ा भी जा सकता था ।
महल के लापरवाह पहरेदार सोचते हैं कि यहाँ किसकी हिम्मत पड़ेगी चोरी करने की । यह सब देख मैंने महल में चोरी की । " यह सुनते ही राजा ने पहरेदार और द्वारपालों की एक सभा बुलाकर । उन सभी को आगे से सचेत रहने का सख्त आदेश दे देते है ।
राजा ने मंत्री से कहा- " गरीब असहाय सभी किसानों के खेत उन्हें लौटा दिया जाय। और साथ में उनकी लगान और कम कर दी जाय । लगान के रकम वसूलने के तौर - तरीके भी अब से अलग होनी चाहिए । " यह सुन , सभी वाह - वाह कर उठे । गरीब ने घर की राह ली ।