शीतला माता की कहानी | What is the story of Sheetla Mata

10 interesting facts about Sheetla Mata | शीतला माता के बारे में 10 रोचक तथ्य
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शीतला माता की कहानी माँ का सृष्टि में सबसे अधिक  धैर्यवान रहता है... गणेश जी की सबसे प्रिय दूब मां शीतला माँ को खूब पसंद आती है। माता शीतला सात बहने हैं-जिनका नाम कुछ इस प्रकार है शीतला, सेठला दुर्गा, ऋणिका, घृर्णिका, महला और मंगला।


 चैत्र कृष्ण अष्टमी से आषाढ़ कृष्ण अष्टमी तक होने वाली 90 दिन के व्रत को ही गौरी शीतला व्रत कहा जाता है। चैत्र, वैशाख और ज्येष्ठ एवं आषाढ़ के कृष्ण पक्ष के अष्टमी को शीतला महा देवी की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित रहती है। इन महीनों में गर्मी बहुत तेज शुरू हो जाती है। जिससे चेचक आदि की आशंका काफी हद तक बढ़ जाती है। प्रकृति के हिसाब से शरीर निरोगी हो, इस नाते शीतला अष्टमी व्रत करना चाहिए। 


शीतला माता के बारे में 10 रोचक तथ्य


  शीतलाष्टमी पूरे देश में अलग-अलग जगहों पर शुक्ल और कृष्ण पक्ष की तिथियों को मनाई जाती है।  इस त्योहार को बसेरा भी कहा जाता है।  बसोरा का मतलब होता है बासी खाना।  शीतला माता की पूजा के दिन घर में चूल्हा नहीं जलता।  इसलिए बाजी खाने की परंपरा है।  आइए जानते हैं माता शीतला के बारे में 10 रोचक बातें।



  1. स्कंद पुराण के अनुसार देवी शीतला चेचक जैसे रोगों की देवी हैं, उनके हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाड़ू) और नीम के पत्ते हैं और वे गर्भाभा की सवारी पर अभय मुद्रा में विराजमान हैं।



  2. ज्वरसुर, ज्वर का दानव, हैजा की देवी, चौंसठ रोगों के देवता, घेंटुकर्ण, चर्मरोग और देवी रक्तावती शीतला माता के साथ विराजमान हैं, उनके कलश में विषाणु या सर्दी, निरोगी और रोगाणुनाशक है  दाल के रूप में पानी।


  3. कहा जाता है कि यह शक्ति अवतार है और यही भगवान शिव के जीवन साथी हैं.


  4. पौराणिक कथा के अनुसार माता शीतला की उत्पत्ति ब्रह्मा जी से हुई थी।



  5. स्कंद पुराण में शीतलाष्टक के नाम से उनका अर्चना स्तोत्र व्यक्त किया गया है।  ऐसा माना जाता है कि शीतलाष्टक स्तोत्र की रचना स्वयं भगवान शिव ने लोगों के कल्याण के लिए की थी।



  6. गुड़गांव शीतला माता का प्राचीन मंदिर गुरुग्राम में स्थित है।  देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां मन्नत मांगने आते हैं।  यहां के शीतला माता मंदिर की कहानी महाभारत काल से जुड़ी हुई है।  महाभारत के समय में शीतला माता की पूजा गुरु द्रोण की नगरी गुड़गांव में महर्षि शारदवान की पुत्री कृपाचार्य की बहन शीतला देवी (गुरु मां) के नाम से की जाती है।  लोगों का मानना ​​है कि यहां पूजा करने से शरीर पर जो दाना निकलता है, जिसे स्थानीय बोलचाल की भाषा में (मां) कहते हैं, वह बाहर नहीं आता है।



  7. देवलोक से धरती पर माता शीतला अपने साथी के रूप में भगवान शिव के पसीने से बने ज्वारासुर को साथ लेकर आई थीं।  तब उनके हाथों में भी दाल थी।  जब उस समय के राजा विराट ने माता शीतला को अपने राज्य में रहने के लिए स्थान नहीं दिया तो माता क्रोधित हो उठीं।  उस क्रोध की ज्वाला से राजा की प्रजा पर लाल दाने निकल आए और लोग गर्मी से मरने लगे।  तब राजा विराट ने माता के क्रोध को शांत करने के लिए उन्हें ठंडा दूध और कच्ची लस्सी अर्पित की।  तब से हर साल शीला अष्टमी के दिन लोग मां का आशीर्वाद पाने के लिए उन्हें ठंडा भोजन देने लगे।



  8. शीतला पूजा में शुद्धता का पूरा ध्यान रखा जाता है।  इस विशेष पूजा में शीतलाष्टमी से एक दिन पहले बासी भोजन का भोग देवी बसोदा को अर्पित करने के लिए प्रयोग किया जाता है।


  9. हिंदू व्रतों में केवल शीतलाष्टमी व्रत ही ऐसा होता है जिसमें बासी भोजन किया जाता है।  इसका विस्तृत उल्लेख पुराणों में मिलता है।  बरगद के पेड़ के पास शीतला माता का मंदिर स्थित है।  शीतला माता की पूजा के बाद वट की पूजा भी की जाती है।  यह एक प्राचीन मान्यता है कि जिस घर में महिलाएं इस व्रत को शुद्ध मन से करती हैं, शीतला देवी उस परिवार को धन से भरकर प्राकृतिक विपदाओं से दूर रखती हैं।



  10. इस दिन घर में ताजा खाना नहीं बनाया जाता है।  एक दिन पहले ही खाना बना लें।  फिर दूसरे दिन सुबह महिलाओं द्वारा शीतला माता की पूजा करके घर के सभी लोग बासी भोजन करते हैं।  जिस घर में चेचक की बीमारी हो उस घर में यह व्रत नहीं करना चाहिए।


शीतल पानी में स्नान करके- ‘मम गेहे शीतलारोग जनितोपद्रव प्रशमनपूर्वकायुरोग्यैश्वर्याभिवृद्धये शीतलाष्टमी व्रत करे’ मंत्र का संकल्प व्रती को कर लेना  चाहिए। 


नैवेद्य में पिछले तिथि के बने हुए शीतल पदार्थ- मेवे, मिठाई, रोटी-तरकारी, पूआ, पूरी, दाल-भात, लपसी और कच्ची-पक्की आदि चीजें मां को चढ़ानी चाहिए। रात में जागरण एवं ठंडे दीप जरूर जलाने चाहिए।


नाभिकमल और हृदयस्थल के बीचो-बीच विराजमान शीतला भवानी अपने वाहन गर्दभ (गधे) पर सवार रहा करती हैं। स्कन्द पुराण में शीतलाष्टक स्तोत्र बताया गया है। मान्यता यह भी है कि शीतला माता की रचना भगवान सिव ने किया था ।


‘वन्देहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम।


 मार्जनीकलशोपेतां-शूर्पालंकृतमस्तकाम॥’ 


अर्थात गर्दभ पर विराजमान, होकर दिगम्बरा, हाथ में झाड़ और कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली शीतला भवानी की मैं वंदना करता रहूंगा । ये स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवीओ में से एक हैं। इनके हाथ में झाड़ होने का अर्थ यह है कि माता को वे लोग ही अधिक पसंद आते हैं, जो साफ-सफाई के प्रति जागरूक रहा करते हैं। कलश में भरे हुए जल से हमारा तात्पर्य होता है कि स्वच्छ रहने से ही हमारी सेहत अच्छी रहती है। 


जो ब्यक्ति इस व्रत को निरंतर किया करता है तो उसपर  शीतला देवी खूब प्रसन्न होती हैं। इससे परिवार के पीतज्वर, दाहज्वर, पीड़ा, नेत्रों के सारी रोग दुःख तथा शीतला जनित दोष ख़त्म होने लगती हैं। उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिला में सिराथू के समीप स्थित कड़ा धाम शीतला भवानी का बुहत प्रसिद्ध तीर्थ है। 



उत्तराखंड के काठगोदाम, हरियाणा के गुरुग्राम और गुजरात के पोरबंदर में भी शीतला भवानी के भव्य मंदिर  खूब मशहूर गौरतलब है कि गुप्त मनौती माँ  को बताते वक्त और भक्तगण इस मंत्र का जाप बराबर करते रहते हैं- शीतला: तू जगतमाता, शीतला: तू जगतपिता, शीतला: तू जगदात्री, शीतलायै नमो नम:॥’


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