दोहा- अजब नगर एक शहर था , तहाँ के मोतीलाल । माया में भरपूर थे , पुण्य करें नित पाल ॥ मोतीलाल कौम के जाट थे , इनकी स्त्री बड़ी सुशील थी । पति की सेवा में खड़ी रहती थी , एक दिन एक पंडित परदेशी आ निकला , मोतीलाल ने और उनकी स्त्रो प्रेमवती ने उनकी बड़ी खातिर की । प्रेमवती ने पंडित से पूछा - हे महाराज ! हमारे सन्तान पैदा होगी या नहीं , पंडित जी ने जन्म पत्री को खोलकर जो ग्रह देखे तो साफ कह दिया - एक पुत्र बुढ़ापे में होगा , कंगाली की हालत में होगा इतना कह पंडित जी रवाना हो गये
चन्द दिन के बाद कुछ ईश्वर की निगाह टेढ़ी हुई सो हे बुलाखी नाई वह जाट चन्द रोज में कंगाल हो गया , एक दिन प्रेमवती पति मोतीलाल से कहने लगी दोहा - गुजर न होगी प्रिया , फाँके गए दिन तीन । चलो यहाँ से रम चलें , हे पति चतुर सुजान ॥ तब ऐसा वचन अपनी स्त्री का सुनकर मोती लाल कहने लगा कि हे प्रिया ! कहाँ चलें , गर्दिश में कोई रिश्तेदार न कोई कुटुम्बी न कोई दोस्त सहारा देगा । सब बनी के होते हैं ।
अच्छा कल सुबह नगर को छोड़कर चलेंगे , ऐसा कह दोनों सो गए और प्रातः होते ही स्त्री सहित दोनों चल दिए । चलते -2 एक नगर में पहुँचे बिचारे भूख और प्यास के मारे हुए किसी से कुछ सवाल न कर सके तब एक ब्राह्मण ने पूछा - तुम कैसे उदास हो , कहीं भूखे प्यासे तो नहीं हो तब मोतीलाल बोला महाराज ! हमें पानी पिलाइये तब ब्राह्मण मिसरानी से कहने लगा दो जने स्त्री पुरुष भूखे प्यासे दरवाजे पर बैठे हुए हैं , कुछ भोजन हो मुझे दे । मिसरानी ने 4 रोटी कुछ दाल अचार दिया उसने जल लेकर दरवाजे पर जा दोनों के हाथ धुलाकर भोजन खिलाए । खा पीकर दोनों सफर के मारे सो गए जब निद्रा से जगे तब ब्राह्मण कहने लगा - क्यों भाई कहाँ के रहने वाले हो और कहाँ को जा रहे हो ?
मोती लाल बोला दोहा- कौम हमारी जाट है , मोतीलाल है नाम । विपता के मारे फिरे , अजब नगर हैं ग्राम ॥ हे महाराज ! हम अपनी मुसीबत को कहाँ तक कहें । पहले हम बड़े धनाढ्य थे प्रतिदिन जो कुछ बनता था । हम गरीबों को बाँटा करते थे । किसी को भी मैंने सपने में भी नहीं सताया लेकिन न मालूम ईश्वर की निगाह क्यों टेढ़ी हो गई ।
तब ब्राह्मण कहने लगा कि मेरे मकान पर ही रहो , मौज से विपता के दिन गुजर जायेगे । तब मोतीलाल जाट कहने लगा महाराज तुम्हारा धन खाकर में नरक में पहुंच जाउगा , कहीं दूसरी जगह जाकर मेहनत करके दोनों प्राणी पेट भरेंगे । इतना कह दोनों प्राणी आगे को चल दिए । चलते - चलते गाजीपुर में जा निकले और श्यामसुन्दर नाम का साहूकार था , उसके यहाँ जाकर नौकर रहे । रहते - रहते कुछ साल गुजरी तब एक पुत्र पैदा हुआ । बड़े आनन्द के साथ उसका उत्सव किया । जब लड़का पाँच वर्ष का हो गया तभी उसकी माँ मर गई ।
मोतीलाल को बड़ा रंज हुआ कारज करके दिल में आया कि अब तो अपने वतन को चलना चाहिए और मोतीलाल श्यामसुन्दर से बोला कि हमको छुट्टी दो हम अपने वतन को जाना चाहते हैं । यह सुन श्यामसुन्दर ने जो 2000 रुपये तनख्वाह के जमा थे मोतीलाल को दे दिये । मोतीलाल रकम को सम्हाल लड़के को साथ ले चल दिया और मंजिल तय कर विजयनगर में आया ।
बाजार में आ एक वैश्य की दुकान पर पिता पुत्र ने भोजन पाये । जब शाम का वक्त हुआ तो वैश्य निरन्जन लाल अपनी रोकड़ी सँभाल घर को चलने लगा तब मोतीलाल से कहा कि होशियार रहना यहाँ चोर बहुत हैं ऐसा न हो कि तुम्हारी गाँठ कट जाये । तुम्हारे पास कुछ रकम हो तो वह मुझे दे दो , जाते वक्त ले जाना । मोतीलाल ने निरंजनलाल को दो हजार रुपये दे दिए ।
सेठजी रुपया लेकर अपने घर को आये , मोतीलाल और लड़का दोनों जने सेठ की दुकान पर सो गये । सेठ ने मोतीलाल वाली रकम सेठानी को दे दी और कहा - यह रकम एक परदेशी की है कोई ऐसा उपाय बता जिससे हजम हो जाये तब सेठानी कहने लगी यह क्या बड़ी बात है । कल दुकान न खोलना परदेशी इन्तजार देखकर चला जायेगा । इतना कहकर सेठ सेठानी सो गये ।
इतने में सबेरा हुआ तो मोतीलाल जाग पड़ा और दिशा मैदान होकर फारिग हुआ और सेठ निरंजनलाल का इन्तजार देखने लगा । देखते - देखते शाम हो गई , विचारा नाम तो जानता ही नहीं था , खाना खा पिता पुत्र दोनों उसी दुकान पर सो गये , जब सवेरा हुआ सेठ अपनी दुकान पर आया तो मोतीलाल को देख काला चेहरा पड़ गया । मोतीलाल कहने लगा कि वाह सेठजी मेरी राह खोटी की , मैं कल इन्तजार देखता रहा । मेरी रकम मुझे दे दो मैं अपनी राह चले जाए ।
तब सेठ बोले तू कौन है कैसी रकम माँगता है । मोतीलाल बोला दो हजार रुपये परसों शाम को जो मैंने दिये थे , अब तो इन दोनों में झगड़ा होने लगा । चौतरफा से झुण्ड जमा हो गया और कहने लगा - भाई क्या बात है ? तब मोतीलाल बोला दोहा- दो हजार की रकम है , सेठ को दई गहाय । अब मुझको देये नहीं , सुनलो कान लगाय ॥ सेठ- नैंनन से देखा नहीं , जाने कहाँ का कौन । नाहक झगड़ा कर रहा , तब हो बैठा मौन ॥
इतनी बात दोनों की सुनकर सज्जन पुरुष कहने लगे परदेशी तुम्हारे साथ यह बच्चा किसका है मोतीलाल बोला यह लड़का मेरा है बस सब पुरुष कहने लगे , तुम लड़के की कसम खा जाओ तुमको तुम्हारी दी रकम मिल जावेगी । तब मोतीलाल ने जो कसम खाई फौरन ही उसका लड़का मर गया तब पंच कहने लगे कि झूठी कसम उठाने का यह नतीजा मिलता है । जाओ तुम्हारे रुपये नहीं थे , बेचारा लड़के को छाती से लगा रोता - पीटता चला गया । कुछ देर बाद सतयुग घोड़े पर सवार हुआ आ रहा था । मोतीलाल ने हाथ जोड़कर कहा - महाराज मैं नौकरी से आया और मेरे पास दो हजार रुपये थे वह मैंने सेठ निरंजनलाल को डर के मारे दे दिए सेठ जी ने दिए नहीं । मैंने लड़के की कसम खाई तो मेरा लड़का मर गया ।
यह सुन सतयुग कहने लगा - मेरे बस की बात नहीं है । मेरे पीछे घोड़े वाला एक और आता है वह तुम्हारा इन्साफ करेगा । इतना कहकर सतयुग चला गया और त्रेता घोड़े पर सवार हुए आ गया । तब मोतीलाल ने हाथ जोड़कर कहा - महाराज मेरा इन्साफ कीजिए मैं तो सब तरह से मर गया । तब त्रेता कहने लगा - भाई क्या बात है ? तब मोतीलाल कहने लगा - महाराज मै परदेश से दो हजार रुपये कमाकर लाया वह मैंने डर के मारे सेठ निरंजनलाल को दिए , अब वह मुझे वापिस नहीं करते , मैंने लड़के की कसम खाई तो फौरन मेरा लड़का भी मर गया । सो मैंने ऐसा क्या बुरा काम किया , जो मेरा लड़का भी मर गया ।
तब त्रेता कहने लगा- यह मेरे वश का काम नहीं है मेरे पीछे एक घोड़े वाला और आ रहा है वह इन्साफ करेगा । इतना कहकर त्रेता भी चल दिया और द्वापर आ गया , मोतीलाल ने द्वापर को अप बीती सुनाई तो द्वापर भी कहने लगा कि मेरे पीछे वाला और आता है । वह इन्साफ करेगा , इतना कहकर द्वापर चल दिया और कलियुग आ गया । मोतीलाल ने झट घोड़े की बाग पकड़ ली और कहा - महाराज मेरा इन्साफ करो ।
तब कलियुग कहने लगा क्या बात है ? मोतीलाल बोला - मैं परदेश से दो हजार रुपये कमाकर लाया और मैंने चोरी के डर से सेठ निरंजनलाल को दे दिये , वह देता नहीं । पंचों ने मुझसे बच्चे की कसम ली । मैंने जो कसम खाई तो बच्चा मर गया । तब कलियुग कहने लगा - तू दो की जगह तीन हजार रुपये कहना मैं तेरे साथ चलता हूँ ।
मोतीलाल बच्चे को ले आगे - आगे चल दिये और पीछे - पीछे कलियुग । मोतीलाल ने सेठ से कहा- मेरे तीन हजार रुपये दो । सेठ ने फटकार दिया , तो कलियुग बोला देता क्यों नहीं । जब तक पहले पंच भी आ गये और कहने लगे , तू महा झूठा है । कलियुग कहने लगा कि तुम तीन हजार रुपयों की एवज लड़के की कसम खाओ । मोतीलाल तैयार हो गया कसम खाते ही बच्चा जिन्दा हो गया और तीन हजार रुपये ले लिए । सो हे बुलाखी नाई ! तू उस लड़के को और वही भीड़ देख आया है । तुम्हारी बात का जवाब हो गया । आराम से सो जाओ सबेरे चलना है ।
और भी कहानियां
नाई और पंडित की कहानी
एक बार की बात है, एक नाई और एक पंडित एक साथ यात्रा कर रहे थे। वे दोनों बहुत अलग-अलग थे। नाई एक सामान्य ग्रामीण व्यक्ति था जो बालों को काटता था, जबकि पंडित एक विद्वान था जो वेदों और शास्त्रों का अध्ययन करता था।
यात्रा के दौरान, पंडित ने नाई से कुछ प्रश्न पूछे जो उसके ज्ञान की जांच करने के लिए थे। नाई कुछ नहीं जानता था जो पंडित उससे पूछ रहे थे। पंडित अपने आप को बेहतर और उच्च ज्ञान वाला मानता था और उसने नाई को ताने मारते हुए उससे कहा कि वह उसे कुछ नहीं बता सकता है।
नाई को इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ा था। उसने खुशी से पंडित के सवालों का उत्तर देने की कोशिश की, लेकिन वह कुछ नहीं जानता था। फिर भी, नाई अपनी जीवन अनुभव से पंडित के कुछ सवालों का उत्तर देने में सक्षम था।
एक बार नाई ने पंडित से पूछा, "क्या आपने कभी इतनी ठंड में नहाने की कोशिश की है?" पंडित ने उत्तर दिया,
नाई और ब्राह्मण का किस्सा
एक समय की बात है जब एक नाई और एक ब्राह्मण अपने गांव में रहते थे। नाई बहुत अच्छे ढंग से बाल काटता था और उसके ग्राहक उसे बहुत पसंद करते थे। वह बहुत ही धनवान हो गया था।
वहां ब्राह्मण भी रहते थे, जो बहुत ही गरीब थे। उनके पास कुछ नहीं था, सिर्फ उनकी बुद्धि थी। वे अपने जीवन में ध्यान केंद्रित करना चाहते थे और ध्यान का स्थान उनके घर का एक कोना था।
एक दिन, ब्राह्मण ने नाई को अपने घर बुलाया और उनसे अपनी समस्या का वर्णन किया। वह चाहता था कि नाई उन्हें कुछ पैसे उधार दे दे, जिसे वह अपनी जरूरतों के लिए उपयोग कर सके।
नाई को अपने पैसों का उधार देना थोड़ा मुश्किल था, लेकिन उसने ब्राह्मण के बारे में सोचा और उसे अपने पैसों का उधार दे दिया।
कुछ दिनों बाद, ब्राह्मण ने नाई को उसके पैसों वापस कर दिए। वह उन्हें बताना चाहता था कि उन्होंने पैसों का उधार अपनी आवश्यकताओं के लिए नहीं लिया था...