संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा इन हिंदी | sankashti chaturthi fasting story in hindi

गणेश चतुर्थी व्रत करने से क्या होता है, संकष्टी चतुर्थी कथा


हिन्दू पंचांग के हिसाब से, हर मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी दिन को संकष्टी चतुर्थी का व्रत माना जाता है। मान्यता यह भी है कि, इस तिथि को गणपति की पूजा अर्चना एवं व्रत रखने से ऐश्वर्य और ज्ञान की प्राप्त होता है। संकष्टी चतुर्थी वाले तिथि को व्रती सुबह हाल्दे  उठकर नहाकर आदि से निवृत्त हो जाने की जरूरत होती है । जिसके बाद में स्वच्छ कपडे पहनना चाहिए । 

 

संकष्टी चतुर्थी पूजाविधि 


श्री भगवान गणेश की पूजा सुरु करें। उसके पहले एक चौकी पर लाल रंग वाला कपड़ा डाल लें। तथा उसी  चौकी पर गणेश भगवान की प्रतिमा को उनके याद करते   हुए स्थापित करे । गणपति जी को फिर उसके पहले जल चढ़ाये, इसके बाद उन्हें फल एवं माला अर्पित कर दे । अब आप गणपति भगवान को दर्वा चढ़ा दे । और उनके माथे पर रोली से टीका लगाए और बाद में आप गणपति भगवान् को मोदक एवं लड्डू का भोग लगा दे । यह इस नाते की गणपति भगवान् को लड्डू और मोदक खूब प्रसंद होते हैं, यही वह कारण है की उन्हें इन्हीं चीजों का भोग लगना बहुत फलदाई हो जाता है। 


बात यह भी है की आप दूर्वा की माला बनाकर गणपति भगवान् को अर्पित करना बहुत लाभकारी साबित होता  हैं। इसके बाद आप गणेश भगवान् का चालीसा पाठ करना सुरु करे और उनकी आरती ले । और दिन भर निराजल आप व्रत रख सकते है । और शाम को चन्दा मामा के निकलने से पहले ही आप विधि-विधान से इसी तरह आप गणेश जी की पूजा दुबारा से करें और संकष्टी व्रत की कथा पढ़ें या फिर सुनें। चंद्रोदय के बाद दूध से चंद्रदेव को अर्घ्य देकर उनकी पूजा करना सुरु करे । पूजा के बाद ही आप अन्न ग्रहण करें और संकष्टी चतुर्थी व्रत का सिद्धिकरण से करें। 


आषाढ़ संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त


संकष्टी चतुर्थी तिथि  और दिन 17 जून 2022, दिन शुक्रवार को संकष्टी चतुर्थी का व्रत अबकी किया जा रहा । संकष्टी चतुर्थी के तिथि में चंद्रोदय का समय रात्रि 10:32 बजे चतुर्थी दिन प्रारंभ 17 जून 2022 सुबह 06:10 बजे से चतुर्थी दिन समापन 18 जून 2022 को सुबह 02:59 बजे को है

आषाढ़ कृष्ण संकष्टी चतुर्थी कथा- 


हे महाराज! द्वापर युग में महिष्मति नगरी का महीजित नामक राजा हुआ करता था। वह बहुत ही पुण्यशील और प्रतापी राजा हुआ करता था। वह अपनी प्रजा का पालन पोषण अपने पुत्रो के जैसा किया करता था। परन्तु संतान ना होने के नाते उसको राजघराने का वैभव कुछ भी ठीक नहीं लगता था। वेदों पुराणों में निसंतान का जिंदगी व्यर्थ जाना गया हैं। यदि संतानविहीन इन्शान  अपने देवताओ एवं पितरों को जल दान दे देता हैं तो उसके पितृगण उन जल को गरम जल के रूपों में ग्रहण किया करते हैं।


इसी पुत्र बियोग में राजा का अधिक वक्त व्यतीत हो जा चुका था । राजा ने पुत्र पाने के लिए बहुत सारे दान, यज्ञ आदि कार्य करते गए । उसके बाद भी राजन को पुत्रोत्पत्ति न हुई। जवानी ढलती चली गई और बुढ़ापा आ चुका था लेकिन वंश वृद्धि नही हो पा रही थी । तदनंतर के महाराजा ने बड़े विद्वान और ब्राह्मणों  प्रजाजनों से इस संदर्भ में विचार विमर्श  किया।

 

राजा ने बोला कि हे ब्राह्मणों तथा विद्वानों ! हम तो संतानहीन है , अब मेरी क्या गति हो सकती है ? हमने भविष्य में भी भूलकर कोई पाप कर्म नहीं किया। हमने  कभी अत्याचार द्वारा धन नहीं जाथियाया । मैंने तो हमेशा प्रजा का पुत्रवत पालन रहा तथा धर्माचरण द्वारा ही पृथ्वी पर शासन किया। मैंने केवल लुटेरों चोर उचक्के -डाकुओं को दंडित किया। पात्र ब्यक्तिओ के भोजन की व्यवस्था की, गौ, ब्राह्मणों का हित चिंतन किया शिष्ट पुरुषों का आदर सत्कार करने में कोई कसर नहीं छोड़ा ।उस्के बाद भी मुझे अब तक कोई पुत्र ना होने का आखिर कारण क्या हैं?

 उन विद्वान् ने बताया कि, हे राजन! हम लोग वैसा ही प्रयास करेंगे की आपके वंश जग जाये। इस तरह सब लोग युक्ति सोचने लगे। समूर्ण प्रजा राजा के मनोरथ की सिद्धि के लिए विद्वान् के साथ वन की तरफ चली जाती है ।

वन जाने के बाद  उन लोगों को एक श्रेष्ठ मुनि के दर्शन किया। वह मुनिराज निराहार रहकर तपस्या में लीन हो गए थे। ब्रह्माजी के सामान वे क्रोधजित आत्मजित, तथा सनातन पुरुष हो चुके थे। सभी वेद-विशारद एवं समस्त  ब्रह्म ज्ञान संपन्न के वह महात्मा ज्ञाता थे। उनका कोमल  नाम लोमश ऋषि हुआ करता था। अनेक कल्पांत में उनके रोम रोम पतित हुआ करते थे। इस नाते उनका नाम लोमश ऋषि पड़ा हुआ था। ऐसे में त्रिकाल महादर्शी महर्षि लोमेश के उन सभी ब्यक्तिओ ने दर्शन किया ।

सभी ब्यक्तिओ उन तेजस्वी मुनि के पास पहुंचे । उचित अभ्यर्थना एवं प्रणामदि के अनंतर सभी लोग उनके पास  खड़े हो जाते है । ऐसे मुनि के दर्शन से सभी ब्यक्तिओ  प्रसन्नता की लहार दौड़ जाती है सभी लोग खुस होकर परस्पर बोल पड़े कि हम सभी का सौभाग्य है की ऐसे मुनि के दर्शन पाए। अब इनके बताये हुए उपदेशो से हम सब का मंगल ही होगा, ऐसा निश्चय कर उन सभी ने मुनिराज से बोला। 

 

हे ब्रह्मऋषि! हम सभी के दुःख का कारण जानिए । अपने संदेह से झुटकारा पाने  के लिए हम अभी आपके सम्मुख आए हुए हैं। हे ऋषि वर ! आप कोई हमें इसका उपाय बताइये।

महर्षि लोमेश ने कहा-सज्जनों! आप सभी यहां किस अभिप्राय से आए हुए हैं? मुझसे आप लोगो का क्या प्रयोजन हैं? मुझे स्पष्ट रूप से बताइये। हम आपके लोगो  के संदेहों का निवारण जरूर करूंगा।

 

प्रजाजनों ने कहा की- हे मुनिवर! हम सभी महिष्मति नगरी के निवास करने वाले हैं। हमारे महाराजा का नाम महीजित है। वे राजा ऐसे है की वे ब्राह्मणों का रक्षक, धर्मात्मा, शूरवीर दानवीर एवं मधुरभाषी भी है। वह राजा ने हम सभी का पालन पोषण किया करते है, लेकिन ऐसे राजन को अभी तक कोई संतान की प्राप्ति नहीं हो पाई  है ।


हे महात्मा ! माता-पिता तो केवल जन्म देते हैं, किंतु राजा ही हकीकत में पोषक और संवर्धक होता हैं। वही राजन के निमित हम सभी इस गहन वन में अभिलाषा लेकर आए हुए है। हे महर्षि! आप हमें कोई ऐसी युक्ति बतलाइये जिससे हमारे राजा को संतान की प्राप्ति हो जाए, यह इसलिए की ऐसे गुणवान और दिलके धनवान राजा को अगर कोई पुत्र नहीं है, यह बहुत दुर्भाग्य की बात माना जा रहा हैं।

 

हम हम सभी परस्पर विचार-विमर्श करके यहां गंभीर वन में आए आये हुए हैं। उनके सौभाग्य से ही हम सभी को आपका दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हो सका हैं। शो हे मुनिवर! किस दान, पूजन व्रत, आदि अनुष्ठान कराने से हमारे राजन को पुत्र की प्राप्ति होगी । आप कृपा करे हम लोगो को बता दीजिये।

 सम्पूर्ण प्रजा की बात जानकर महर्षि लोमेश ने बोला- हे भक्तजनो! आप सभी ध्यानपूर्वक सुनो। मैं संकटनाशन व्रत को बता दे रहा हूं। यह वह व्रत है की जो निसंतान को संतान मिल जाता है और निर्धनों को धन मिल जाता हैं। आषाढ़ के कृष्ण चतुर्थी को ‘एकदंत गजानन’ नामक गणेश भगवान की पूजा अर्चना करें।

 

इस व्रत राजन करके श्रद्धायुक्त हो ब्राह्म भोजन करावें और उन सभी को वस्त्र दान करें। गणेश जी की कृपा लगेगी उन्हें जरूर ही पुत्र की प्राप्ति मिलेगी। महर्षि लोमश के मुख से यह बात सुनकर सब लोग करबद्ध होकर उठ उठ गए । और नतमस्तक होकर महर्षि दंडवत प्रणाम किया सभी जने अपने राज में लौट आए।


वन में घटे हुए सम्पूर्ण घटनाओं को प्रजाजनों ने राजन  से कहा। प्रजाजनों की बातो को सुनकर राजन बहुत प्रसन्न हुए फिर राजन ने श्रद्धापूर्वक विधि गत गणेश चतुर्थी का व्रत किया और ब्राह्मणों को भोजन वस्त्र आदि  का दान किया ।


महा रानी सुदक्षिणा पर गणेश भगवान् की कृपा हुयी उन्हें सुंदर और सुलक्षण पुत्र प्राप्ति हुयी। श्रीकृष्ण जी बताते है कि हे राजन ! यह एक ऐसा व्रत है जिसका ऐसा प्रभाव हैं। जो भी इन्शान इस गणेश चतुर्थी व्रत को श्रद्धापूर्वक करता है उसे सम्पूर्ण सांसारिक सुख की प्राप्ति होता है और वह खुद उसके अधिकारी हों जाते है ।


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