आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तारीख वाले दिन को विवस्वत सप्तमी के रुप में मनाई जाने की परम्परा चलती आ रही है। अबकी वर्ष 2022 में विवस्वत सप्तमी तारीख 6 जुलाई को मनाई जाएगी। इस तिथि को सूर्य देव की उपासना का ख़ास महत्व बताया गया है। सूर्य देव के बहुतेरे नाम हैं जिनमें से एक नाम विवस्वत भी कहलाया जाता है। हरएक वर्ष की सप्तमी में सुर्य देव के पूजन की तिथि के लिए अत्यंत शुभदायक भी मानी जाती है। ऎसे में आषाढ़ मास की सप्तमी के दिन भी सूर्य भगवान् की पूजन का विधान रहा है।
विवस्वत सप्तमी की कथा
वैवस्वत मनु के समय ही भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार हो जाता है। इस पर भी कथा मिलती है। इस कथा को सुनने वाले राजा परीक्षित हुआ करते थे। परीक्षित को शुकदेव जी ने सत्यव्रत की कहानी सुनाते हैं - सत्यव्रत नाम के एक बहुत उदार बादी राजा थे वह नित्य धर्म अनुरुप आचरण किया करते थे। एक बार ऐसा हुआ जब अपनी तपस्या के दौरान ही वह कृतमाला नदी में खड़े होकर तर्पण का कार्य कर रहे थे
उस समय के दौरान उनके हाथ में एक मछली आ गयी। सत्यव्रत ने अपने हाथों में आई उस मछली को जैसे ही जल में छोड़ने को चाहा उस मछली ने सत्यव्रत को ऎसा नहीं करने का आग्रह कर दिया । मछली की वेदना सुन कर राजा सत्यव्रत ने उसके जीवन की रक्षा करने का प्रण कर दिया ।
मछली को अपने कमण्डल पात्र के जल में रख देते है और उसे अपने साथ लेकर आ गए । लेकिन एक दिन में ही वह मछली आकार में इतनी बड़ी हो जाती है कि उस कमण्डल पात्र में समा ही नहीं रही थी । ऎसे में मछली राजा से दुबारा आग्रह करती है की वह उसे यहां जगह से निकाल कर कोई और जगह में रखें। राजा सत्यव्रत ने मछली को उस पात्र से निकालकर एक बड़े पानी से भरे घड़े में डाल देते है । पर राजा के देखते ही देखते वह मछली उस घड़े में भी रह पाना मुश्किल हो गया उसका आकार काफी बढ़ गई।
वह राजा से फिर से अपने लिए किसी सुखद स्थान की मांग करने लगती है। इसके बाद राज ने उस मछली को घड़े से निकाल कर एक सरोवर में डाल देते हैं। मछली का आकार वहां भी बढ़ने लगता है और सरोवर में भी पूरी नहीं समा रही थी । ऎसे में राजा सत्यव्रत उसको और अनेक बड़े-बड़े सरोवरों में डाला करते हैं लेकिन मछली का आकार कोई भी सरोवर में नहीं समा पा रहा था।
अंत में राजा उस मछली को समुद्र में डलवा देते हैं। पर वह मछली समुद्र से भी एक विशाल और बिकराल हो जाती है। अंत में राजा ने उस मछली को प्रणाम करते हुए कहने लगते हैं की - “हमने आज तक ऎसा जीव नहीं देखा आप कोई सामान्य जीव नहीं हो कृप्या करके आप मुझे अपना परिचय दे और मुझे अपने सही रूप में दर्शन दीजिये”।
सत्यव्रत की निष्ठा को देख भगवान श्री विष्णु उन्हें दर्शन देते हैं और बोलते हैं की आज से ठीक सात दिन के बाद सम्पूर्ण पृथ्वी पूर्ण रुप से जला जल हो जाएगी अर्थात पानी में डूब जाएगी इस नाते मै तुम्हें यह कार्य सौंपने के लिए उपस्थित हुआ हूं की तुम ऋषियों मुनियों और सभी महत्वपूर्ण वस्तुओं जीवों वनस्पतियों को अपने साथ लेकर तैयार हो जाए । आज से सातवें दिन बाद तीनों लोक प्रलय के समुद्र में डूबने लग जाएगा ।
तब तुम्हारे पास एक बहुत भारी नौका आयेगी उस नौका में तुम समस्त प्राणियों, वस्तुओं एवं सप्तर्षियों के साथ लेकर उस नौका में चढ़ बैठ जाना। उस समय मैं इसी मछली रूप में आकर वहा उपस्थित हो जाउंगा। तब तुम वासुकि नाग के द्वारा उस नाव को मेरे पूछ में बांध देना। इतना बोलकर श्री विष्णु अदृश्य हो जाते हैं।
प्रभु के कहे हुए वचन के अनुसार ही सत्यव्रत ने वही करते है। उसके बाद सातवें दिन प्रलय आ जाती है और सत्यव्रत ऋषियों सहित नौका में बैठा जाते हैं और मछली स्वरुप जब विष्णु भगवान मछली का रुप धरकर वहां आ जाते हैं तो वह उनके पूछ में उस नाव को बांध देते हैं और नाव में ही बैठकर चल देते है उसके बाद प्रलय का अंत हो जाता है।
यही सत्यव्रत वर्तमान में महाकल्प में विवस्वान या वैवस्वत (सूर्य) के पुत्र श्राद्धदेव के नाम से प्रसिद्ध हुए और इन्हे वैवस्वत मनु के नाम से भी जाने जाते है । सूर्यपुत्र वैवस्वत मनु ही मनु स्मृति के रचयिता हुए । नव ग्रहों के राजा सूर्य देव की उपासना की इस परंपरा में विवस्वत सप्तमी का भी बहुत ख़ास महत्व माना जाता है। प्राचीन काल से ही इस तिथि को सूर्य के इस स्वरुप का पूजन अर्चना किया जाता है।
विवस्वत सप्तमी की पूजा
विवस्वत सप्तमी के तिथि को सूर्यदेव का पूजन करने से सभी सुख और परेशानियां भस्म हो जाती हैं। स्वास्थ्य समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए इस दिन सूर्य देव का पूजन बहुत ही गुणकारी और सकारात्मक होता है। शरीर में यदि कोई परेशानीया हो रही है या फिर कोई प्रोपर्टी से संबंधित अगर कोई बड़ा मामला हो तो वह भी इस स्थिति में दूर हो जाता है।
विवस्वत सप्तमी के दिन सूर्य उदय से पहले उठना चाहिये। नित्य स्नान कर लेने के बाद सूर्य देव को जल अर्पित करने चाहिये। सूर्य को जल देते वक्त जल में रोली,अक्षत एवं चीनी और लाल फूल जल में डालकर अर्घ्य देने की जरूरत होती है ।
'ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:' इस मंत्र का जाप करने की अवसक्ता होती है । इस दिन केवल मीठी चीजों को सेवन करना चाहिए । हलवा बना करके सूर्य देव को भोग लगाने की जरूरत होती है । आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ और सूर्याष्टक का पाठ करने की जरूरत होती है ।
विवस्वत सप्तमी का महत्व
विवस्वत के संदर्भ को लेकर अनेक कथाएं और रचनाये प्रचलित हैं। वैदिक साहित्य में मनु को विवस्वत् का पुत्र माना जाता है, एवं इसे 'वैवस्वत' नाम दिया जाता है। और सूर्य का संबंध इनके साथ में जुड़ने वजह ही इस दिन सूर्य उपासना का भी बहुत मह्त्व माना जाता है। इस दिन विवस्वत मनु का पूजन किया जाता है। इस दिन मनु कहानी का श्रवण किया गया है। वैवस्वत मनु के नेतृत्व में सृष्टि का सूत्रपात रहता है। इसी से श्रुति और स्मृति की परम्परा चलती आ रही है । विवस्वत से ही सूर्य वंश का शुरुआत होता है जिसमें भगवान् श्री राम का जन्म हुआ जोकि विष्णु के अवतार स्वरुप पृथ्वी पर आये हुए हैं।
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सप्तमी का अर्थ क्या है (What is the meaning of Saptami)
सप्तमी शब्द संस्कृत भाषा से आया है और इसका अर्थ है "सातवाँ दिन"। हिंदू धर्म में, सप्तमी नवरात्रि के दूसरे दिन को कहते हैं, जो देवी दुर्गा के सातवें स्वरूप को अर्पित होता है। यह दिन भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है और वे दुर्गा माता की पूजा करते हैं और उन्हें भोग चढ़ाते हैं। सप्तमी का अनुभव वर्षभर में भिन्न हो सकता है, क्योंकि इस तिथि को दुर्गा पूजा के दौरान मांगलिक तिथि के अनुसार निर्धारित किया जाता है।
सप्तमी अच्छी है या बुरी (Is Saptami good or bad? Why is Ratha Saptami celebrated)
सप्तमी का निर्णय अच्छा या बुरा नहीं होता है। यह एक पौराणिक और धार्मिक उत्सव है जो हिंदू धर्म में मनाया जाता है। सप्तमी दुर्गा पूजा के दौरान एक उत्साहजनक और उत्तेजक दिन माना जाता है जब भक्त दुर्गा माता के सातवें स्वरूप को पूजते हैं और उन्हें अर्पण करते हैं। इस दिन भक्त धर्मिक और मानसिक ऊर्जा को बढ़ाते हैं जो उन्हें उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने में मदद करती है।
रथ सप्तमी क्यों मनाई जाती है (Is Krishna Saptami good? Since when is Saptami Tithi)
रथ सप्तमी हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला एक प्रमुख उत्सव है जो सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। इस उत्सव के दौरान भगवान विष्णु के रथ की पूजा की जाती है जो उन्हें भूमि पर आते हुए दिखाई देता है। इस दिन भक्त भगवान विष्णु के सातवें स्वरूप के रूप में उनके रथ को पूजते हैं और उन्हें अर्पण करते हैं।
रथ सप्तमी का उत्सव भगवान विष्णु के सातवें अवतार के रूप में समझा जाता है, जिसे रथ सारथी के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन भगवान विष्णु के भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है और वे उनकी पूजा करते हैं और उन्हें भोग चढ़ाते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की कृपा मिलती है और उनके भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
रथ सप्तमी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो दुर्गा पूजा के बाद आता है। यह दिन सूर्य के उत्तरायण की शुरुआत का दिन होता है और इसे देवों की सेवा के लिए समर्पित किया जाता है। इस दिन, दुर्गा के अगले स्वरूप को अर्पित किया जाता है, जो महाभारत के युद्ध में कृष्ण जी द्वारा उपयोग किया गया था।
रथ सप्तमी को भगवान विष्णु और उन पर्व किया था.
कृष्ण सप्तमी अच्छी है (Which god was born on Saptami)
कृष्ण सप्तमी हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो भगवान कृष्ण के जन्मदिन को मनाता है। यह त्योहार हर साल भद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मनाया जाता है।
यह त्योहार हिन्दू समाज में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन मंदिरों में भजन-कीर्तन की धूम मचती है और भक्तों द्वारा पूजा अर्चना की जाती है।
इस दिन लोग भगवान कृष्ण के विभिन्न रूपों की पूजा करते हैं और उनके जन्म स्थल मथुरा में जाकर नंदलाल की जन्म जयंती का जश्न मनाते हैं।
इस दिन लोग एक दूसरे को बधाई देते हैं और मिठाई खिलाते हैं। इस दिन की महत्वपूर्णता विभिन्न रूपों में भारत में मनाई जाती है और लोग इसे बहुत ही उत्साह से मनाते हैं।
सप्तमी तिथि कब से है (When is Saptami Tithi)
सप्तमी तिथि हिंदू कैलेंडर के अनुसार भद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मनाई जाती है। यह तिथि हर साल नए कैलेंडर के अनुसार निर्धारित होती है।
2023 में, कृष्ण सप्तमी तिथि 20 सितंबर है।
सप्तमी को किस भगवान का जन्म हुआ था (Which god was born on Saptami)
सप्तमी तिथि को भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। भगवान कृष्ण हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण अवतार माने जाते हैं। वे भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं और महाभारत के श्रीमद् भगवद् गीता में उनका महत्वपूर्ण भूमिका है।
कृष्ण जन्माष्टमी तिथि को भगवान कृष्ण का जन्म मनाया जाता है, जबकि कृष्ण सप्तमी तिथि को भी भगवान कृष्ण का जन्म मनाया जाता है, लेकिन यह तिथियां वर्ष के अलग-अलग समय पर होती हैं।
सप्तमी के दिन किसकी पूजा होती है ( Who is worshiped on the day of Saptami)
सप्तमी तिथि पर हिन्दू धर्म में विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। इस तिथि पर मां दुर्गा, मां काली, मां चामुण्डा और मां कात्यायनी जैसी शक्तिशाली देवियों की पूजा की जाती है।
इस दिन माँ दुर्गा का सप्तमी रूप मां कालरात्रि भी पूजा जाता है। भगवान कृष्ण का जन्म भी सप्तमी तिथि को हुआ था, इसलिए कुछ लोग इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा भी करते हैं।
इसके अलावा, कुछ लोग इस दिन सूर्य देवता की पूजा भी करते हैं, क्योंकि सप्तमी दिन सूर्य के स्वर्ण मंडल में स्थित होता है।
सप्तमी के दिन जन्मे बच्चे कैसे होते हैं (How are the children born on Saptami)
हिंदू धर्म में सप्तमी को जन्मे बच्चों के लिए एक शुभ तिथि माना जाता है। इस दिन जन्मे बच्चों के लिए भगवान कृष्ण के नाम से यात्री लोग बच्चों के भले के लिए आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सप्तमी तिथि के दिन जन्मे बच्चों के लिए उनकी कुंडली के ग्रहों का प्रभाव भी शुभ होता है। सप्तमी के दिन जन्मे बच्चों को स्वस्थ, बुद्धिमान और सफल होने की आशा की जाती है।
इसके अलावा, कुछ लोग इस दिन बच्चों की जन्म संस्कार (नामकरण) का आयोजन भी करते हैं।
सप्तमी को कौन माता का पूजा होता है (Which mother is worshiped on Saptami)
सप्तमी को नवरात्रि के दूसरे दिन माता कालरात्रि की पूजा की जाती है। कालरात्रि माता दुर्गा की एक रूप होती है जो शक्ति और सामर्थ्य की प्रतीक है। इस दिन भक्तों की विशेष पूजा की जाती है ताकि उन्हें माता कालरात्रि की कृपा मिल सके और उनके जीवन में समस्याओं से निजात मिल सके।
सप्तमी के दिन क्या करना चाहिए (What should be done on the day of Saptami)
सप्तमी के दिन माता कालरात्रि की पूजा के अलावा भक्तों को अन्य धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों में भी भाग लेना चाहिए। इस दिन लोग माता की कृपा के लिए उनकी आराधना करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने की कोशिश करते हैं।
कुछ धार्मिक कार्य हैं जो भक्त सप्तमी के दिन कर सकते हैं, जैसे कि:
उषा काल में उठकर माँ दुर्गा की पूजा करनी चाहिए।
विधि विधान से नवपत्ता पूजन करना चाहिए।
माता की आरती करनी चाहिए।
धूप दीप आदि से माता की पूजा करनी चाहिए।
नवरात्रि के साथ संबंधित व्रत रखना चाहिए और उन्हें पूरा करना चाहिए।
सामाजिक गतिविधियों में भी शामिल होना चाहिए, जैसे कि:
नवरात्रि के दौरान अपने परिवार और मित्रों के साथ उत्सव मनाना चाहिए।
दरिद्रों की मदद करना चाहिए।
भोजन आदि की दान देना चाहिए।
इन सभी कार्यों के माध्यम से भक्त अपने जीवन में सुख, समृद्धि और शांति की प्राप्ति के लिए शक्ति प्राप्त कर सकते ह
सप्तमी पर क्या क्या बनाते हैं (What is prepared on Saptami)
सप्तमी पर भोजन बनाने के लिए भक्त विभिन्न प्रकार के व्रत भोजन, फल, सब्जियां, दलियां, पूरी, हलवा आदि का सेवन करते हैं। इन भोजनों में माँ दुर्गा को अर्पित करने का विशेष महत्व होता है।
कुछ लोकप्रिय सप्तमी व्रत भोजन हैं जैसे कि:
- साबूदाना खीर
- सूजी का हलवा
- समोसे
- दही वड़े
- कचौड़ी
- आलू पूरी
- बेसन की लड्डू
ये भोजन सामान्यतः शाकाहारी होते हैं, क्योंकि नवरात्रि के दौरान शाकाहारी भोजन का विशेष महत्व होता है। लेकिन इसके अलावा भक्त नॉन-वेज व्यंजनों का भी सेवन कर सकते हैं जैसे कि चिकन, मटन आदि, अपनी अनुभव के अनुसार।
विशेष रूप से, सप्तमी को देसी घी व जग्गर के लड्डू भी बनाए जाते हैं। इन लड्डूओं को भक्त अर्पित करते हैं और दोस्तों व परिवार के साथ साझा करते हैं।
सप्तमी का व्रत क्यों किया जाता है (Why is Saptami fast observed)
सप्तमी का व्रत नवरात्रि में माँ दुर्गा की सातवें रूप कालरात्रि की पूजा के लिए किया जाता है। इस दिन भक्त सातवें रूप की पूजा करते हैं और माँ की कृपा और आशीर्वाद के लिए उन्हें व्रत रखना पड़ता है।
इस व्रत में भक्त उपवास रखते हुए माँ की पूजा करते हैं और उन्हें अन्न और भोजन का दान करते हैं। यह उनके शुभकामनाओं का प्रतीक होता है कि उनके द्वारा दान किया गया अन्न न केवल उनके अंतरंग स्वच्छता और शुभ विचारों को संतुलित रखता है बल्कि उसे दूसरों के लिए भी उपलब्ध कराता है।
इस व्रत में भक्त कम से कम एक बार नौले का उपयोग करके माँ को नौले के रूप में आमंत्रित करते हैं। यह नौले माँ के सामने बैठकर उनकी कृपा और आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करने का एक प्रतीक होता है।
सप्तमी का व्रत मन, शरीर और आत्मा को साफ और सुगम बनाकर माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त करने का एक शक्तिशाली तरीका होता है।
सप्तमी की पूजा कैसे होती है (How is the worship of Saptami)
सप्तमी को नवरात्रि का सातवां दिन माना जाता है और इस दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। यह पूजा तंत्र मंत्र और वेद मंत्रों के साथ संपन्न होती है। निम्नलिखित विधि के अनुसार सप्तमी की पूजा की जाती है:
सप्तमी की पूजा की शुरुआत मंदिर में मां दुर्गा की मूर्ति के दर्शन से होती है। उसके बाद, आपको कुछ गंध, दीप, फूल, दूध, दही, मिश्री और प्रसाद के लिए भोग लगाना चाहिए.
सप्तमी पूजा कैसे करें ( How to do Saptami Puja)
सप्तमी पूजा हिंदू धर्म में नवरात्रि के सातवें दिन की जाती है और मां दुर्गा की पूजा की जाती है। यह पूजा दुर्गा सप्तशती के अध्यायों के पाठ, मां दुर्गा की मूर्ति की पूजा, अर्चना और आरती के साथ की जाती है। निम्नलिखित हैं सप्तमी पूजा के लिए आम रूप से अनुसरण किए जाने वाले कुछ चरण:
पूजा सामग्री की तैयारी: सप्तमी पूजा के लिए आपको घी, मिठाई, फूल, धूप, दीपक और आरती की थाली आदि की तैयारी करनी होगी। आप भी मां दुर्गा की मूर्ति और पूजन सामग्री जैसे कि अगरबत्ती, रोली, चावल, सिन्दूर, धातु, फूल, दूध, दही, घी आदि की तैयारी कर सकते हैं।
पूजा स्थल की तैयारी: पूजा स्थल को स्वच्छ रखें और उसे सजाएं। आप मां दुर्गा की मूर्ति और पूजन सामग्री को स्थापित कर सकते हैं।
पूजा का विधान: सप्तमी पूजा का विधान अपने परिवार के गुरुजनों या पंडितजी से संपर्क करके जान सकते हैं।
सप्तमी को क्या भोग लगाएं (What to offer on Saptami)
सप्तमी को नवरात्रि का सातवाँ दिन होता है और इस दिन मां दुर्गा की पूजा की जाती है। सप्तमी के दिन भोग लगाने के लिए निम्नलिखित चीजें शामिल की जा सकती हैं:
हलवा और पूरी: हलवा और पूरी नवरात्रि के दौरान सबसे ज्यादा पसंदीदा खानों में से एक हैं। सप्तमी के दिन इन्हें भोग के रूप में पेश किया जा सकता है।
चना और पूरी: दूध और चीनी के साथ पके चने और पूरी भी एक अच्छा विकल्प हो सकते हैं।
फल: सप्तमी के दिन फल भी भोग के रूप में पेश किया जा सकता है। सभी प्रकार के फल, जैसे कि सेब, केला, संतरे, आम, आदि इस दिन पूजा के लिए उपयुक्त होते हैं।
पानी: सप्तमी के दिन मां दुर्गा को पानी का भी भोग लगाया जाता है। शुद्ध जल या गंगाजल का उपयोग करके इस भोग को पेश किया जा सकता है।
यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण होता है कि आप अपनी स्थानीय विशेषताओं, परंपराओं और संस्कृति को भी ध्यान में रखते हुए भोग लगाएं।