ब्यक्तिओ की भीड़ का कुछ भी मतलव नहीं केवल अपने जीवन की पहचान होती हैं | how to identify man

how to identify man


लोग की भीड़ का कुछ भी मतलव नहीं केवल अपने जीवन की पहचान होती हैं खालि पीली लोग यानी जिनकी विशिष्ठ या कुछ अलग पहचान नहीं हुआ करती । ऐसे लोग भीड़ नहीं, जीवन की सनातन पहचान के होते हैं।लोगों में  कुछ छिपा नहीं है,वे सब जानते,मानते एवं पहचानते हैं। संसार भर में लोग अपनी सभ्यता को जानते और माना करते हैं। सभी जानो को लोगों के साथ रहने,खाने-पीने,उठने-बैठने,गाने-बतियाने में जीने का जो आनन्द आ जाता है,वह ब्यक्ति के जिन्दगी की सबसे बेहतरीन दौलत होती हैं।

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मनुष्य यानी की जीवन का बून्द, भविष्य का महासागर।जीवन मृत्यु का अंतहीन क्रम होता है मनुष्य,लोग यानी सनातन जीवन। निरन्तर गतिशीलता ही लोगों की जीवनी शक्ति होती है।लोग जीवन का गुणा-भाग या जोड़ बाकी नहीं कर पाते सहज में रहते हैं।जैसे जल हमेशा तरल रहता हैं,लोग भी हमेशा सरल रहते रहा करते हैं।मनुष्य में व्यक्तिश:विशेषण की चाह हुआ करती  हैं।किसी तरह का विशेषण न होना ही लोक समाज की पहचान होती है।मनुष्य भला-बुरा भी हो सकता है, लोग भले-बुरे से परे भो होते हैं लोग ही खालिस लोग हुआ करते हैं।


लोग किसी से न डरते है और न ही किसी को डराते, पर फिर भी ब्यक्तिओ पर लोगों का क्यों डर बना रहता हैं।यह करूंगा, वह करूंगा तो लोग क्या कहने लगेंगे ? लोग कुछ कहे नहीं फिर भी ब्यक्ति अपने अन्तर्मन में यह सोचकर ठिठक जाया करता है कि लोग क्या कहेंगे?लोगों की यह चुप्पी हो या हल्ला दोनों ही ब्यक्तिओ को बंधन में डाल दिया करती हैं।लोगों से कटकर मनुष्य रह ही जाता है केवल निपट अकेला।लोग जब भीड़ बन जाया करती हैं तो भेड़चाल चलने भी लगते हैं।भीड़ जय-जयकार करने,ताली बजाने या पत्थर फेंकने को तत्पर हो जाती है।भीड़ की भेड़चाल मनुष्यता की मौलिकता पर खड़ा सबसे बड़ा सवाल बन जाता  है,जिसका उत्तर किसी मनुष्यों के पास नहीं हैं और ना किसी अन्य लोगों के पास ही है ।

मनुष्य जीवनभर अपनी पहचान बनाने में निरंतर उलझा रहता है पर पहचान बनाने के क्रम में मनुष्य होने का अर्थ ही भूल ही जाया करता है। जो लोग कभी अपनी पहचान बनाने की कोई प्रयास नहीं करते, वे लोग अपने  होने का अर्थ भी नहीं ढूंढ़ा करते । लोग इस धरातल पर सनातन समय से ब्यक्तिओ की तरह ही रहते,जीते आये हुए हैं जैसे हवा है, सब जगह । प्रकाश है,अंधेरा है,आग है,जल में प्रवाह होती है। इनमें से किसी को कोई जतन नहीं करना पड़ता है खुद को पहचान बनाने के लिए ए स्वत:ही अपनी पहचान होती है।मनुष्य ने अपनी पृथक पहचान बनाने के जतन में अपने को लोगों से अलग मान लिया होता है।

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