भविष्य पुराण के अनुसार जो गोवत्स द्वादशी के दिन गाय और बछड़े की पूजा करता है और सभी सुखों का भोग करता है, वह गौलोक में उतने ही वर्षों तक रहता है जितने अंत में गाय के शरीर पर आंसू होते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण को गाय अत्यंत प्रिय है, गाय पृथ्वी की प्रतीक है, गौ माता में सभी देवी-देवता निवास करते हैं, गायों में भी सभी वेद पूजनीय हैं। ,
हिन्दू पंचांग के अनुसार गोवत्स द्वादशी का पर्व जन्माष्टमी के ठीक 4 दिन बाद भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। गाय-बछड़े की पूजा को समर्पित इस पर्व को लोक भाषा में बाख बरस या ओक द्वादशी भी कहा जाता है। इस दिन महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और उनकी सुरक्षा और हर विपदा से खुशी के लिए यह व्रत रखती हैं।
पूजा का महत्व
भविष्य पुराण के अनुसार जो व्यक्ति इस दिन गाय और बछड़े की पूजा करता है, वह सभी सुखों का भोग करता है और अंत में जितने गाय के शरीर पर आंसू होते हैं। गौलोक में उतने ही वर्षों तक रहता है
बाख बरस की पूजा विधि-
इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं सुबह स्नान कर साफ कपड़े पहनकर व्रत का संकल्प लेती हैं। इसके बाद गाय और उसके बछड़े दोनों को नहलाया जाता है और नए कपड़े पहनाए जाते हैं। गाय और बछड़े को फूलों की माला पहनाकर उनके माथे पर तिलक करें।
गाय को हरा चारा, अंकुरित मूंग, मोठ, चना और मीठी रोटी और गुड़ आदि श्रद्धा से खिलाए जाते हैं। गाय की पूजा, गाय को छूकर और क्षमा मांगकर परिक्रमा की जाती है। यदि घर के पास गाय और बछड़े न मिले तो शुद्ध गीला मिट्टी के गाय अथवा बछड़े बनाकर उनके पूजा करने का विधि विधान है।
इसलिए पूजनीय हैं गौमाता-
भगवान श्रीकृष्ण को गाय अत्यंत प्रिय है, गाय पृथ्वी की प्रतीक है, गौ माता में सभी देवी-देवता निवास करते हैं, गायों में भी सभी वेद पूजनीय हैं। गाय से प्राप्त सभी घटकों जैसे दूध, घी, गोबर या गोमूत्र में सभी देवताओं के तत्व जमा होते हैं। ऐसा माना जाता है कि यदि सभी देवी-देवताओं और पूर्वजों को एक साथ प्रसन्न करना है, तो गौ भक्ति-गौसेवा से बढ़कर कोई अनुष्ठान नहीं है।
गाय माता को केवल एक घास खिलाएं, फिर वह स्वतः ही सभी देवताओं तक पहुंच जाती है। भविष्य पुराण के अनुसार गौमाता के पिछे देश में ब्रह्मा, गले में विष्णु, मुख में रुद्र, सभी देवताओं के मध्य में महर्षिगण और बालों के रोम, पूंछ में अनंत नाग, खुरों में सभी पर्वत, गंगा का वास है। और गोमूत्र में नदियाँ, गाय में लक्ष्मी। और आंखों में सूर्य और चंद्रमा विराजमान हैं।
कहानी-
यह प्राचीन काल की बात है कि एक बार राजा ने जनहित के लिए एक तालाब का निर्माण कराया था। इसकी दीवार चारों तरफ से पक्की थी लेकिन तालाब में पानी नहीं भरा। तब राजा ने ज्योतिषी से इसका कारण पूछा तो उसने बताया कि यदि आप अपने पोते की बलि देकर यज्ञ करेंगे तो तालाब में पानी भर जाएगा। यज्ञ में बालक की बलि दी जाती थी और वर्षा होने पर तालाब में पानी भर जाता था।
राजा ने तालाब की पूजा की। अपनी दासी के पीछे गाय के बछड़े को काटकर हरा कर दिया। लौटते समय राजा रानी ने दासी से पूछा, बछड़ा कहाँ है दासी बोली मैंने उसकी सब्जी बना डाली है, राजा चिल्लाने लगे बोले- पापिन तूने यह क्या कर डाला तुमने। राजा ने उस बछड़े की मांस के पात्र को जमीन में दफना दिया। शाम को जब गाय वापस आई तो उसने अपने सींगों से उस जगह को खोदना शुरू कर दिया। जहां बछड़े के मांस का घड़ा गाड़ा हुआ था। जब हांडी में सींग लगाया गया तो गाय ने उस हांडी से निकाल लिया, गाय का बछड़ा और राजा का पोता जीवित हो गया, उसी दिन से उनके बच्चों की भलाई के लिए इस त्योहार को मनाने की परंपरा शुरू हुई।