आइए जानते हैं 2022 में गोवर्धन पूजा कब है और गोवर्धन पूजा 2022 की तारीख और समय। गोवर्धन पूजा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। इस पर्व का सीधा संबंध प्रकृति और मनुष्य से है। हिंदू पंचांग के अनुसार गोवर्धन पूजा या अन्नकूट का पर्व कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दूसरे दिन यानी दिवाली के दिन मनाया जाता है. यह त्यौहार पूरे भारत में मनाया जाता है, लेकिन उत्तर भारत में इसकी भव्यता बढ़ जाती है, खासकर ब्रजभूमि (मथुरा, वृंदावन, नंदगाँव, गोकुल, बरसाना आदि) में, जहाँ भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं गोकुल के लोगों को गोवर्धन पूजा करने के लिए प्रेरित किया था। और देवराज इंद्र के अहंकार को नष्ट कर दिया।
2022 में गोवर्धन पूजा कब है?
26
अक्टूबर, 2022 (बुधवार)
गोवर्धन पूजा मुहूर्त
गोवर्धन पूजा सुबह का मुहूर्त :
06:28:32 से 08:43:06
अवधि : 2 घंटे 14 मिनट
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frequently Asked question
गोवर्धन पूजा का मतलब क्या होता है?
गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गाय की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि गाय नदियों में गंगा के समान पवित्र होती है। गाय को देवी लक्ष्मी का रूप भी कहा जाता है। जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं, उसी प्रकार गाय माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य के रूप में धन प्रदान करती है।
कृष्ण को गोवर्धन क्यों कहा जाता है?
गोवर्धन का मुंह किधर करें?
तपस्या के बाद सुबह अपने निवास या देवस्थान के मुख्य द्वार के सामने गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बना लें। फिर इसे वृक्ष, वृक्ष की डाली और फूल आदि से सजाएं। अक्षत, फूल आदि से गोवर्धन-पर्वत की विधिवत पूजा करें।
गोवर्धन जी की पूजा क्यों की जाती है?
जानिए क्यों की जाती है गोवर्धन पूजा
अन्नकूट या गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से शुरू हो गई है। इसमें हिंदू धर्म के लोग घर के आंगन में गोवर्धन नाथ जी की अल्पना गाय के गोबर से बनाते हैं। उसके बाद गिरिराज भगवान (पर्वत) को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अन्नकूट चढ़ाया जाता है।
गोवर्धन के दिन क्या करते हैं?
इस दिन हम गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं, साथ ही भगवान श्रीकृष्ण की भी पूजा करते हैं। गोवर्धन पूजा: परंपरा के अनुसार, गोवर्धन गाय के गोबर से बनाए जाते हैं और उन्हें अन्नकूट चढ़ाया जाता है। नई दिल्ली: दिवाली 2022 के अगले दिन एक खास त्योहार भी है जो गोवर्धन पूजा है.
गोवर्धन बाबा कौन थे?
यह भगवान श्रीकृष्ण की लीलास्थली है। यहीं पर भगवान कृष्ण ने द्वापर युग में ब्रज के लोगों को इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा उंगली पर उठाया था। गोवर्धन पर्वत को भक्तों द्वारा गिरिराज जी के नाम से भी जाना जाता है। सदियों से दूर-दूर से श्रद्धालु यहां गिरिराज जी की परिक्रमा करने आते रहे हैं।
गोवर्धन पूजा के बाद क्या करना चाहिए?
प्रात:काल गायों को स्नान कराकर पुष्प, माला, धूप, चंदन आदि से उनकी पूजा की जाती है। गोवर्धन से गोवर्धन बनाया जाता है। पूजा के बाद गोवर्धनजी की जय-जयकार करते हुए उनके सात फेरे लिए जाते हैं। गोवर्धनजी को गोबर के साथ लेटे हुए मनुष्य के रूप में बनाया जाता है।
गोवर्धन पूजा पर क्या हम नॉन वेज खा सकते हैं?
श्राद्ध पूजा और श्राद्ध प्रसाद के लिए मांस, चिकन, अंडे और बासी या सड़े हुए फल या अनाज का उपयोग नहीं करना चाहिए।
भगवान गोवर्धन कौन है?
गोवर्धन हिल कृष्ण से संबंधित हिंदू धर्मग्रंथों में एक अद्वितीय स्थान रखता है, जिस भूमि को व्रज कहा जाता है जहां उनका जन्म हुआ था। गोवर्धन या गिरिराज के रूप में जाना जाता है और ब्रज का पवित्र केंद्र होने के कारण, इसे कृष्ण के प्राकृतिक रूप के रूप में मान्यता प्राप्त है।
अन्नकूट उत्सव क्या है?
इस दिन घरों और मंदिरों में भगवान को तरह-तरह के खाद्य पदार्थों का भोग लगाया जाता है। इस दिन पास बैठे कृष्ण के सामने गाय के गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाकर गाय और चरवाहे के बाल, चावल, फूल, जल, मौली, दही और तेल का दीपक जलाकर पूजा और परिक्रमा की जाती है।
गोवर्धन पूजा तिथि और शास्त्र नियम
गोवर्धन पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाई जाती है। इसकी गणना निम्न प्रकार से की जा सकती है।
1. गोवर्धन पूजा कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन मनाई जानी चाहिए लेकिन यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इस दिन शाम को कोई चंद्रमा न दिखे।
2. यदि कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन शाम को सूर्यास्त के समय चंद्रमा दिखाई देने वाला हो तो पहले दिन गोवर्धन पूजा करनी चाहिए।
3. यदि प्रतिपदा तिथि सूर्योदय के समय हो और चन्द्र दर्शन न हो तो उसी दिन गोवर्धन पूजा करनी चाहिए। ऐसा न होने पर पहले दिन गोवर्धन पूजा मान्य होगी।
4. जब प्रतिपदा तिथि सूर्योदय के बाद कम से कम 9 मुहूर्त तक रहती है, भले ही उस दिन शाम को चंद्रमा दिखाई दे, लेकिन स्थूल चंद्र दर्शन की कमी मानी जाती है। ऐसे में गोवर्धन पूजा उसी दिन मनानी चाहिए।
गोवर्धन पूजा के नियम और विधि
गोवर्धन पूजा का भारतीय जीवन में बहुत महत्व है। वेदों में इस दिन वरुण, इंद्र, अग्नि आदि देवताओं की पूजा करने का विधान है। इस दिन गोवर्धन पर्वत, गोधन यानी गाय और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा का विशेष महत्व है। यह पर्व मानव जाति को संदेश देता है कि हमारा जीवन प्रकृति द्वारा प्रदत्त संसाधनों पर निर्भर है और इसके लिए हमें उनका सम्मान और धन्यवाद करना चाहिए। गोवर्धन पूजा के माध्यम से हम सभी प्राकृतिक संसाधनों के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं।
1. गोवर्धन पूजा के दिन गोवर्धन को गोबर से बनाया जाता है और फूलों से सजाया जाता है। गोवर्धन पूजा सुबह या शाम के समय की जाती है। पूजा के दौरान गोवर्धन को धूप, दीप, नैवेद्य, जल, फल आदि का भोग लगाना चाहिए। इस दिन गाय और बैल और कृषि कार्य के लिए उपयोग किए जाने वाले जानवरों की पूजा की जाती है।
2. गोवर्धन जी को गोबर से लेटे हुए मनुष्य के रूप में बनाया गया है। नाभि के स्थान पर मिट्टी का दीपक रखा जाता है। इस दीपक में दूध, दही, गंगाजल, शहद, बतासे आदि को पूजा के दौरान डाला जाता है और बाद में प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।
3. पूजा के बाद गोवर्धन जी की सात फेरे करते हुए उनकी जय बोलते हैं। परिक्रमा के समय हाथ में कमल से जल लेकर जौ की बुवाई करके परिक्रमा पूरी की जाती है।
4. गोवर्धन गिरि को भगवान माना जाता है और इस दिन घर में उनकी पूजा करने से धन, संतान और गाय के रस की वृद्धि होती है।
गोवर्धन पूजा के दिन भगवान विश्वकर्मा की भी पूजा की जाती है। इस अवसर पर सभी कारखानों और उद्योगों में मशीनों की पूजा की जाती है।
गोवर्धन पूजा पर कार्यक्रम
1. गोवर्धन पूजा प्रकृति और भगवान श्री कृष्ण को समर्पित त्योहार है। गोवर्धन पूजा के मौके पर देशभर के मंदिरों में धार्मिक आयोजन और अन्नकूट यानी भंडारे का आयोजन होता है. पूजा के बाद प्रसाद के रूप में लोगों के बीच भोजन बांटा जाता है।
2. गोवर्धन पूजा के दिन गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने का बहुत महत्व है. ऐसा माना जाता है कि परिक्रमा करने से भगवान कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है।
गोवर्धन पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा
विष्णु पुराण में गोवर्धन पूजा का महत्व बताया गया है। ऐसा कहा जाता है कि देवराज इंद्र को अपनी शक्तियों पर गर्व था और भगवान कृष्ण ने इंद्र के अहंकार को तोड़ने के लिए लीला की थी। इस कथा के अनुसार एक बार गोकुल में लोग तरह-तरह के व्यंजन बना रहे थे और आनंद से गीत गा रहे थे। यह सब देखकर बालक कृष्ण ने यशोदा माता से पूछा कि तुम कौन से पर्व की तैयारी कर रही हो। कृष्ण के प्रश्न पर माता यशोदा ने कहा कि हम भगवान इंद्र की पूजा कर रहे हैं। माता यशोदा के उत्तर पर कृष्ण ने फिर पूछा कि हम इंद्र की पूजा क्यों करते हैं। तब यशोदा मां ने कहा कि, इंद्र देव की कृपा से अच्छी बारिश होती है और अनाज पैदा होता है, हमारी गायों को चारा मिलता है। माता यशोदा की बात सुनकर कृष्ण ने कहा कि यदि ऐसा है तो हमें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। क्योंकि हमारी गाय वहां चरती है, पेड़ों और पौधों की वजह से बारिश होती है। कृष्ण की बात सुनकर गोकुल के सभी लोग गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। यह सब देखकर देवराज इंद्र क्रोधित हो गए और अपने अपमान का बदला लेने के लिए भारी वर्षा करने लगे। प्रलयंकारी बारिश को देखकर गोकुल वासी सभी सहम गए। इस दौरान भगवान कृष्ण ने अपनी लीला दिखाई और गोवर्धन पर्वत को कनिष्ठा अंगुली पर उठाकर सभी ग्रामवासियों को पर्वत के नीचे बुलाया। यह देखकर इंद्र ने वर्षा तेज कर दी, लेकिन 7 दिनों तक लगातार मूसलाधार बारिश के बावजूद गोकुलवासियों को कोई नुकसान नहीं हुआ। इसके बाद इंद्र ने महसूस किया कि प्रतिस्पर्धा करने वाला कोई सामान्य व्यक्ति नहीं हो सकता। जब इंद्र को पता चला कि वह भगवान कृष्ण से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, इसके बाद इंद्र ने भगवान कृष्ण से माफी मांगी और खुद मुरलीधर की पूजा की और उन्हें भोग लगाया। इस पौराणिक घटना के बाद गोवर्धन पूजा शुरू हुई।
गोवर्धन पूजा के दिन गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा का विशेष महत्व है। गोवर्धन पर्वत उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित है। जहां हर साल देश-दुनिया से लाखों श्रद्धालु गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने के लिए पहुंच जाते हैं।
गोवर्धन पूजा पर अन्नकूट पर्व
गोवर्धन पूजा के अवसर पर मंदिरों में अन्ना कूट का आयोजन किया जाता है। अन्ना कूट का अर्थ है कई प्रकार के भोजन का मिश्रण, जो भगवान कृष्ण को भोग के रूप में चढ़ाया जाता है। कुछ जगहों पर बाजरे की खास खिचड़ी बनाई जाती है, साथ ही तेल पूरी बनाने की भी परंपरा है. भोजन के साथ-साथ दूध से बनी मिठाई और नमकीन व्यंजन भी चढ़ाए जाते हैं। पूजा के बाद इन व्यंजनों को प्रसाद के रूप में भक्तों को बांटा जाता है। अन्ना कूट उत्सव के दौरान, कई मंदिरों में रोशनी की जाती है और भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है और सुखी जीवन के लिए प्रार्थना की जाती है।
अक्सर पूछा गया सवाल
1. दिवाली पर गोवर्धन पूजा क्यों की जाती है?
गोवर्धन पूजा के दिन गोवर्धन पर्वत, गाय और भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है। इस पूजा के माध्यम से हम प्राकृतिक संसाधनों के प्रति अपना सम्मान प्रकट करते हैं।
2. गोवर्धन पूजा कैसे मनाई जाती है?
गोवर्धन पूजा के दिन गाय के गोबर से गोवर्धन बनाया जाता है। उन्हें फूलों से सजाया जाता है और सुबह और शाम उनकी पूजा की जाती है। पूजा के बाद गोवर्धन जी की सात बार परिक्रमा की जाती है और उनकी स्तुति की जाती है।
3. गोवर्धन पूजा का क्या अर्थ है?
गोवर्धन पूजा का अर्थ है गोवर्धन की पूजा। गोधन या गायों के प्रति आभार और श्रद्धा दिखाने के लिए इस दिन गोवर्धन की पूजा की जाती है। यह दिवाली के अगले दिन मनाया जाता है।
4. गोवर्धन पूजा के लिए क्या सामग्री चाहिए?
गाय का गोबर, रोली, मौली, अक्षत, कच्चा दूध, फूल, फूलों की माला, गन्ना, बतासे, चावल, मिट्टी का दीपक, धूप, दीपक, नैवेद्य, फल, मिठाई, दूध, दही, शहद, घी, चीनी, भगवान कृष्ण की मूर्ति .
5. दीपावली के दूसरे दिन किसकी पूजा की जाती है?
दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पर्वत, गाय और भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है। इस दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा का विधान भी बताया गया है।
6. अन्नकूट क्यों मनाया जाता है?
अन्नकूट उत्सव गोवर्धन पूजा के दिन मनाया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण को भोग के रूप में विभिन्न प्रकार के भोजन का मिश्रण चढ़ाया जाता है।
7. गोवर्धन पूजा करने के क्या लाभ हैं?
गोवर्धन की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में धन, संतान और गाय के रस में वृद्धि होती है।
एस्ट्रोसेज की ओर से सभी पाठकों को गोवर्धन पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं!
गोवर्धन से जुडी और भी बातें
गोवर्धन पूजा कब है (govardhan pooja kab hai)
गोवर्धन पूजा हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है। इस साल (2023) गोवर्धन पूजा 19 नवंबर को होगी।
गोवर्धन पूजा कथा इन हिंदी (govardhan pooja katha in hindi
गोवर्धन पूजा की कथा हमें वेद पुराणों में मिलती है। यह पूजा भगवान श्री कृष्ण के नाम से मनाई जाती है। यह पूजा कृष्ण जी के नाम से नहीं बल्कि उनके नाम से मनाई जाती है जो गोवर्धन पर्वत के ऊपर खड़े होते हुए विश्वनाथ प्रतिष्ठान द्वारा किए गए पूजन के द्वारा होती है।
कथा के अनुसार, एक बार भगवान श्री कृष्ण के पुत्रों ने मक्खन चोरी करते हुए उनसे प्रश्न किया कि अपने श्रद्धालु भक्तों के लिए क्या उपहार दिया जाना चाहिए। इस पर भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें सलाह दी कि वे गोवर्धन पर्वत के पूजन से श्रद्धा और सम्मान जताएं।
फिर भगवान श्री कृष्ण ने अपने भक्तों को संग लेकर गोवर्धन पर्वत के चारों ओर घूमते हुए प्रत्येक व्यक्ति को बताया कि इस पर्वत की महत्ता क्या है। उन्होंने उन्हें बताया कि गोवर्धन पर्वत भूमि के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है और यह हमारे जीवन के लिए जरूरी होता है।
गोवर्धन कौन थे (govardhan kaun the)
गोवर्धन नामक पहाड़ हिंदू पौराणिक कथाओं और इतिहास में वर्णित होता है। वेदों और पुराणों में इस पर्वत को भगवान विष्णु के अवतार नृसिंह के साथ जोड़ा गया है।
कृष्ण लीला में भी गोवर्धन पर्वत का महत्वपूर्ण रोल है। कृष्ण जी ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर अपने भक्तों के रक्षण किया था। गोवर्धन पर्वत उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित है। इस पर्वत की ऊँचाई लगभग ८५० मीटर है और इसे भूमि का सबसे बड़ा पर्वत माना जाता है।
गोवर्धन पूजा अन्नकूट महोत्सव कब मनाया जाता है (govardhan pooja annakoot mahotsav kab manaaya jaata hai)
गोवर्धन पूजा अन्नकूट महोत्सव हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पूजा पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है जो कि अक्टूबर या नवंबर के महीने में पड़ती है। इस त्योहार को भारत के विभिन्न हिस्सों में भी अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे कि गोवर्धन पूजा, अन्नकूट महोत्सव, गोवर्धन महोत्सव, प्रतिपदा तिथि आदि।
गोवर्धन पूजा कितने बजे हैं (govardhan pooja kitane baje hain)
गोवर्धन पूजा पर्व के दौरान प्रात:काल या शाम के विशेष मुहूर्त पर पूजा की जाती है। प्रातःकाल का मुहूर्त 6:28 से 8:42 तक है और शाम का मुहूर्त 3:25 से 5:39 तक है। हालांकि यह मुहूर्त वर्ष के समय और स्थान के आधार पर भी बदल सकता है, इसलिए स्थानीय पंडितों से भी सलाह लेना उचित होगा।
गोधन पूजा क्यों मनाया जाता है (godhan pooja kyon manaaya jaata hai)
गोधन पूजा भारतीय हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला एक पर्व है जो गाय की पूजा के लिए मनाया जाता है। गाय को हिंदू धर्म में माता के रूप में समझा जाता है और इसलिए गोधन पूजा एक महत्वपूर्ण पर्व होता है।
गोधन पूजा को श्रवण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। इस दिन गाय के सम्मान में पूजा अर्चना की जाती है और उसकी खाद्य सामग्री बटोरी जाती है। इस दिन लोग गाय के दूध, घी, दही, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और गुड़ से तैयार) और अन्य खाद्य सामग्री भोजन करते हैं।
इस पर्व का महत्व इस बात से भी जुड़ा हुआ है कि गाय की खाद्य सामग्री बटोरकर उसे पूजने और खाने से मनुष्य को अनेक रोगों से छुटकारा मिलता है। इसके अलावा, गाय का दूध, घी, दही आदि भी विभिन्न रोगों से लड़ने में मददगार होते हैं।
इस प्रकार, गोधन पूजा का महत्व उसे पूजने के लिए नहीं है बल्कि इससे मनुष्य को विभिन्न तरीके से किया जाता हैं.
गोवर्धन की पूजा कैसे की जाती है बताएं (govardhan kee pooja kaise kee jaatee hai bataen)
गोवर्धन पूजा भी भारतीय हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला एक पर्व है जो श्रद्धा से मनाया जाता है। यह पर्व श्री कृष्ण जी द्वारा गोवर्धन पर्वत को उठाकर गोपों को रक्षा करने के लिए किया गया था। इस पर्व को पूरे भारत में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
गोवर्धन पूजा को श्रद्धा से मनाने के लिए आप निम्नलिखित विधि का पालन कर सकते हैं:
१. सबसे पहले, एक छोटा गोवर्धन पर्वत बनाएँ। इसके लिए आप मिट्टी या चिकनी मिट्टी ले सकते हैं और उसे गोवर्धन की तरह आकार दें। इसे साफ और सुंदर बनाएं।
२. अब इस गोवर्धन पर्वत को एक पीले रंग के रंगे वस्त्र से ढक दें। इसके बाद आप इस वस्त्र को गोवर्धन पर्वत के ऊपर से सुंदरता से बाँध दें।
३. अब आप इस गोवर्धन पर्वत के आसपास अन्य पूजनीय वस्तुओं को रख सकते हैं जैसे फूल, दीपक, आदि। इसके बाद इसे पूजने के लिए तैयार है।
४. पूजा के दौरान, आप गोवर्धन पर्वत की परिकर्मा की जाती हैं.
गोवर्धन जी की पूजा कब है (govardhan jee kee pooja kab hai)
गोवर्धन पूजा का त्योहार हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। यह साल 2023 में 28 अक्टूबर को होगी।
गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है (govardhan pooja ka shubh muhoort kya hai)
गोवर्धन पूजा के शुभ मुहूर्त का निर्धारण विभिन्न ज्योतिष विद्वानों द्वारा किया जाता है और यह विभिन्न स्थानों और विशेष परिस्थितियों के अनुसार भिन्न हो सकता है।
सामान्यतः, गोवर्धन पूजा के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 6:24 से दोपहर 12:05 तक रहता है। इस दिन प्रातःकाल स्नान करने का शुभ मुहूर्त सूर्योदय से पहले होता है।
कुल मिलाकर, गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त स्थान और संयोगों के अनुसार भिन्न होता है। इसलिए, यदि आप किसी विशेष क्षेत्र में रहते हैं तो आप स्थानीय पंचांग या ज्योतिषी से सलाह लेकर शुभ मुहूर्त का निर्धारण कर सकते हैं।
गोवर्धन पूजा पर क्या नहीं करना चाहिए (govardhan pooja par kya nahin karana chaahie)
गोवर्धन पूजा के दौरान कुछ ऐसी बातें होती हैं जिन्हें करने से बेहतर होता है बचना। ये हैं:
गोवर्धन पूजा के दिन तांबे के बर्तन में भोजन नहीं बनाना चाहिए।
गोवर्धन पूजा के दिन भूमि पर कुछ भी फेंकना या बहाना नहीं चाहिए।
गोवर्धन पूजा के दिन विष्णु जी की पूजा से पहले नहाना चाहिए।
इस दिन किसी भी प्रकार का शरीर का कटाक्ष या झूठ नहीं बोलना चाहिए।
गोवर्धन पूजा के दिन नया कपड़ा नहीं पहनना चाहिए, बल्कि पुराना कपड़ा ही पहनना चाहिए।
इन सावधानियों का पालन करना उचित होगा ताकि गोवर्धन पूजा के दिन शुभता बनी रहे और आपके उन्नति और सफलता को आशीर्वाद मिल सके।
गोवर्धन पूजा को क्या नहीं करना चाहिए (govardhan pooja ko kya nahin karana chaahie)
गोवर्धन पूजा को निम्नलिखित बातों को न करने से सावधान रहना चाहिए:
गोवर्धन पूजा के दौरान मांस और शराब जैसी नशीली चीजें नहीं खानी चाहिए।
गोवर्धन पूजा के दिन उन्नति के लिए निवेदन किए बिना न तो दूसरों से झगड़ा करना चाहिए और न ही किसी को बदनाम करना चाहिए।
गोवर्धन पूजा के दौरान किसी को न अनुचित भाषा में बोलना चाहिए।
गोवर्धन पूजा के दिन झूठ नहीं बोलना चाहिए।
इस दिन दुर्भावनाओं से परहेज करना चाहिए और एकांतवास में रहना चाहिए।
गोवर्धन पूजा को शुभ समय पर ध्यान देकर करना चाहिए और इन सावधानियों का पालन करना चाहिए ताकि यह पूजा शुभ और फलदायी हो सके।
गोवर्धन पूजा पर हमें कौन सी घटना याद है (govardhan pooja par hamen kaun see ghatana yaad hai)
गोवर्धन पूजा से संबंधित सबसे महत्वपूर्ण घटना भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत को उठाने की है। इस दिन भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपने उंगलियों से उठाकर गोपों को उसके नीचे आश्रय दिया था। इस घटना को गोवर्धन लीला या गिरिराज लीला के नाम से जाना जाता है। इस घटना का मुख्य उद्देश्य था भगवान कृष्ण के भक्तों को संबल और सुख से जीवन जीने का संदेश देना था। इसलिए गोवर्धन पूजा का उत्सव भी संबल और सुख के साथ मनाया जाता है।
गोवर्धन पूजा क्यों मनाया जाता है (govardhan pooja kyon manaaya jaata hai)
गोवर्धन पूजा का मुख्य उद्देश्य है भगवान कृष्ण की गिरिराज लीला यानि गोवर्धन पर्वत को उठाने की घटना को याद करना और उस घटना से जुड़ी धार्मिक महत्ता का समझना। इस उत्सव का दूसरा महत्त्व है पृथ्वी माता के प्रति अभिनंदन करना और उससे जुड़ी परंपराओं और संस्कृति को बचाना।
गोवर्धन पूजा के दौरान भक्तों को पूजन के लिए गोवर्धन पर्वत की मूर्ति बनानी पड़ती है जिसे पूजने के बाद भक्त उसे विसर्जित कर देते हैं। इसके अलावा गोवर्धन पूजा के दौरान विशेष प्रसाद की तैयारी की जाती है, जैसे कि अन्न, पूरी, हलवा, और धन्यवादी।
इस उत्सव को भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे पूजा भाई दूज, अन्नकूट, गोवर्धन लीला या गोवर्धन पर्वत पूजा। यह हिंदू धर्म के एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो उत्साह, शांति और समृद्धि का संदेश देता है।
गोवर्धन पूजा कृष्ण लीला (govardhan pooja krshn leela)
गोवर्धन पूजा कृष्ण लीला के विषय में जानी जाती है, जो हिंदू धर्म के प्रसिद्ध अवतार भगवान कृष्ण की एक महत्वपूर्ण घटना से जुड़ी है। यह घटना महाभारत के ग्रंथ श्रीमद् भागवत पुराण में वर्णित है।
इस लीला के अनुसार, एक दिन भगवान कृष्ण के प्रशंसक गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए ब्राह्मणों को अन्न और अन्य वस्तुओं का दान देने लगे। इसके बाद भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी सी उँगलियों से उठा लिया और उसे अपने हाथों में ले लिया। इससे भयभीत होकर देवताओं ने भगवान कृष्ण की स्तुति की और उन्हें विनम्रता से नमस्कार किया।
इस घटना के बाद भगवान कृष्ण ने अपने भक्तों को बताया कि पृथ्वी माता एक देवी है जिसे सम्मान देना चाहिए और उसके संरक्षण में अपना हिस्सा लेना चाहिए। इसी उद्देश्य से लोग आज भी गोवर्धन पूजा मनाते हैं और पृथ्वी माता के प्रति अपनी समर्पण भावना व्यक्त करती है.
गोवर्धन पूजा मंत्र (govardhan pooja mantr)
गोवर्धन पूजा मंत्रों के माध्यम से हम भगवान कृष्ण और गोवर्धन पर्व की आराधना करते हैं। निम्नलिखित मंत्रों का उच्चारण करते हुए गोवर्धन पर्व का उत्सव मनाया जाता है:
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः। श्री गोवर्धन धरणेर्नमः। हरये नमः। भूमिजे नमः। वयसे नमः। गिरिवरधरणे नमः। गोप्याय नमः। धनेयाय नमः। स्वर्णपुष्पाय नमः। गिरिराजाय नमः। धेनवे नमः। देवानां गणपतये नमः।
श्री गोवर्धनेर्विजयी भव।
गोवर्धन पूजा के दौरान, गोवर्धन को दूध, घी, दही आदि चढ़ाया जाता है और फिर उसे प्रदक्षिणा किया जाता है। इसके अलावा, भगवान कृष्ण के भजन भी गाए जाते हैं।