Chndi Devi,मंदिर की कथा-कहानी

 

  चंडी देवी मंदिर भारत के उत्तराखंड में पवित्र शहर हरिद्वार में सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण हिंदू मंदिरों में से एक है।  मंदिर देवी मां चंडी, देवी पार्वती के एक रूप को समर्पित है।

  मंदिर का एक संक्षिप्त इतिहास।

  वर्तमान मंदिर का इतिहास 20वीं सदी में शुरू होता है।  इसे 1929 में कश्मीर के राजा सुचत सिंह ने बनवाया था।  हालांकि, लोगों का मानना ​​है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में चंडी देवी की मुख्य मूर्ति (मूर्ति) स्थापित की थी।

  चंडी देवी मंदिर की पौराणिक कथा।

  पौराणिक कथाओं के अनुसार, शुंभ और निशुंभ नाम के दो देवों (असुरों) ने स्वर्ग पर कब्जा कर लिया, जो कि भगवान इंद्र का राज्य है।  जैसे ही उन्होंने खुद को स्वर्ग का राजा घोषित किया, शुंभ देवी पार्वती की दिव्य सुंदरता से आकर्षित हो गए। 

माया देवी मंदिर की कहानी Maya Devi Temple Haridwar

 वह उससे शादी करना चाहता था।  देवी पार्वती द्वारा उनके प्रस्ताव को अस्वीकार करने के बाद, उन्होंने दो राक्षसों चंड-मुंडा को देवी पार्वती के पास भेजा।  देवी ने चंद और मुंडा को मारने के लिए देवी पार्वती के एक शक्तिशाली अवतार चंडिका अवतार की रचना की।  क्रोधित होकर, चंडिका देवी ने चंदा और मुंडा और अंत में शुंभ और निशुंभ को मार डाला।  जिस स्थान पर उन राक्षसों को चंडी देवी ने मारा था वह नील पर्वत है।  इसलिए भक्तों ने चंडिका देवी को समर्पित पहाड़ी पर इस सुंदर मंदिर का निर्माण किया

Chandi Devi image

Pic Credit chandidevitemple_official

मंदिर का महत्व।

  हिंदुओं में इस मंदिर का विशेष महत्व है।  हजारों भक्त हरिद्वार आते हैं और मंदिर जाते हैं, खासकर चंडी चौदस और नवरात्रों और हरिद्वार कुंभ मेले के त्योहारों के दौरान।  भक्त यहां देवी मनसा देवी और चंडी देवी का आशीर्वाद लेने के लिए पूजा करते हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि वे सच्चे भक्तों की इच्छाओं को पूरा करती हैं।

  चंडी देवी मंदिर के पास घूमने की जगहें:

  हरिद्वार मंदिरों का शहर है।  चंडी देवी मंदिर के पास और भी कई मंदिर हैं।  इन।

  गौरी शंकर मंदिर

  काली मंदिर

  नीलेश्वर मंदिर

  मनसा देवी मंदिर

  दक्ष मंदिर

  अंजना का मंदिर, भगवान हनुमान की माता

  आप इन मंदिरों में चंडी देवी मंदिर से कार या बस से जा सकते हैं, आप केबल कार (केबल कार) पर सवार होने से पहले मनसा देवी और चंडी देवी मंदिर के लिए एक संयोजन टिकट खरीद सकते हैं।  आप पैदल या रिक्शा से भी हर की पौड़ी पहुँच सकते हैं।

  स्थान: नील पर्वत, हरिद्वार

  मंडल: गढ़वाल

  ऊंचाई: 2,900 मीटर (9,500 फीट)

  सप्ताह के सभी दिन: 6:00 - 12:00 15:00 - 18:00

  परीक्षा का समय: 2-3 घंटे।

  प्रवेश शुल्क: नि: शुल्क, केवल केबल कारों का शुल्क लिया जाता है

चंडी देवी मंदिर का स्थान।

  मंदिर एक सुंदर जगह में बनाया गया है।  यह नील पार्वती के ऊपर शिवालिक पहाड़ियों के पूर्वी शिखर पर स्थित है।  ये पहाड़ियाँ महान हिमालय की सबसे दक्षिणी श्रेणी हैं।  मंदिर को इसके स्थान के कारण नील पर्वत तीर्थ के रूप में भी जाना जाता है।  यह हरिद्वार शहर में पंच तीर्थों (पांच तीर्थों) में से एक है।  मंदिर 2900 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

  चंडी देवी मंदिर हरिद्वार कैसे पहुंचे ?

  चंडी देवी मंदिर तक पहुँचने के दो रास्ते हैं: पैदल और केबल कार द्वारा।  यदि आप लंबी पैदल यात्रा करने जा रहे हैं, तो मंदिर तक पहुँचने में 45 मिनट लगते हैं।  केबल कार से मंदिर तक पहुंचने में सिर्फ 5 से 10 मिनट का समय लगता है।  यह मंदिर हरिद्वार से 6 किमी की दूरी पर स्थित है।  चंडी देवी मंदिर का निकटतम रेलवे स्टेशन और बस स्टेशन हरिद्वार है।  हरिद्वार के निकटतम हवाई अड्डे जॉली ग्रांट हवाई अड्डे (38 किमी) एनएच 7 और एनएच 34 और दिल्ली (225 किमी) के माध्यम से हैं।

  विभिन्न शहरों से दूरी।

  ऋषिकेश - 30 कि.मी

  दिल्ली - 215 किमी

  देहरादून - 60 कि.मी

  जॉली ग्रांट एयरपोर्ट - 35 कि.मी

  मसूरी - 95 किमी

  हल्द्वानी- NH734 पर 221 किमी

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न और उत्तर क्या है?

चंडी देवी मंदिर का इतिहास (History of Chandi Devi Temple)

हरिद्वार में स्थित चंडी देवी मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी में किया गया था। मंदिर का इतिहास पुराने पौराणिक काल से जुड़ा हुआ है। इस मंदिर को समर्पित हनुमान जी का मंदिर भी है।

चंडी देवी मंदिर में भगवती काली की पूजा की जाती है और यह मंदिर हिमालयी पर्वत श्रृंखला के चरम निर्मल पर्वत के पास स्थित है। इस मंदिर को चंडीकेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।

मंदिर में प्रवेश करने के लिए स्थानीय लोगों के अनुसार राजपूत राजा मण्डट के शासक राजा चंद्र प्रभु ने मंदिर का निर्माण कराया था। इसके अलावा, मंदिर के निर्माण में अन्य शासकों का भी योगदान है, जो इस मंदिर के विकास में सक्रिय थे।

मंदिर के अंदर मां चंडीका विस्तारपूर्वक पूजा की जाती है और यहां के पास स्थित नीरधर बांध से उत्पन्न होने वाला पानी इस मंदिर के प्रति संकल्प दर्शाता है। मंदिर का वास्तुकला व परंपरागत विवरण इसे एक अनूठा स्थान बनाता है 

एक और भी कहानी 

चंडी देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश में स्थित है और यह एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ था और यह मंदिर माता चंडी के लिए बनाया गया था।

चंडी देवी मंदिर के निर्माण का श्रेय राजा बारीक सिंह ने लिया था, जो भारतीय इतिहास में कुल्लू राजवंश के सदस्य थे। इस मंदिर का निर्माण मूल रूप से सांस्कृतिक तथा धार्मिक दृष्टिकोण से हुआ था।

इस मंदिर में माता चंडी को श्रद्धा से पूजा जाता है और इसका विशेष महत्व हिमाचल प्रदेश के लोगों के लिए है। इस मंदिर का स्थान राणी का बगीचा नामक स्थान पर है, जो कुल्लू से लगभग 10 किलोमीटर दूर है।

चंडी देवी मंदिर में लगभग 120 फीट ऊंची शिखर और गुंबद हैं जो इस मंदिर को बहुत आकर्षक बनाते हैं। इसके अलावा, मंदिर में भव्य स्तंभ भी हैं जो इसके अस्तित्व को और भी आकर्षक बनाते हैं।

चंडी देवी मंदिर का इतिहास और संबंधित कहानी खूब प्रचलित हैं.

चंडी माता का मंत्र (Chandi Mata Mantra)

चंडी माता के मंत्रों में कुछ प्रसिद्ध मंत्र हैं जो उनकी पूजा के दौरान जपे जाते हैं। इनमें से कुछ मंत्र हैं:

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा। ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं क्रीं वाराह-मुखाय दुह-स्थन-शूल-वेतालाय क्रीं श्रीं स्वाहा। ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।

ये मंत्र चंडी माता के विभिन्न रूपों और उनकी विभिन्न आराधनाओं के लिए उपयोग किए जाते हैं। इन मंत्रों के जप से चंडी माता की कृपा मिलती है और सभी संकटों से मुक्ति प्राप्त होती है।

Chandi Devi Story (Chandi Devi katha-kahani)

चंडी देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश में स्थित है और यह एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ था और यह मंदिर माता चंडी के लिए बनाया गया था।

चंडी देवी मंदिर के निर्माण का श्रेय राजा बारीक सिंह ने लिया था, जो भारतीय इतिहास में कुल्लू राजवंश के सदस्य थे। इस मंदिर का निर्माण मूल रूप से सांस्कृतिक तथा धार्मिक दृष्टिकोण से हुआ था।

इस मंदिर में माता चंडी को श्रद्धा से पूजा जाता है और इसका विशेष महत्व हिमाचल प्रदेश के लोगों के लिए है। इस मंदिर का स्थान राणी का बगीचा नामक स्थान पर है, जो कुल्लू से लगभग 10 किलोमीटर दूर है।

चंडी देवी मंदिर में लगभग 120 फीट ऊंची शिखर और गुंबद हैं जो इस मंदिर को बहुत आकर्षक बनाते हैं। इसके अलावा, मंदिर में भव्य स्तंभ भी हैं जो इसके अस्तित्व को और भी आकर्षक बनाते हैं।

चंडी देवी मंदिर का इतिहास और संबंधित कहान

चंडी माता का मंत्र

चंडी माता के मंत्रों में कुछ प्रसिद्ध मंत्र हैं जो उनकी पूजा के दौरान जपे जाते हैं। इनमें से कुछ मंत्र हैं:

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा। ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं क्रीं वाराह-मुखाय दुह-स्थन-शूल-वेतालाय क्रीं श्रीं स्वाहा। ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।

ये मंत्र चंडी माता के विभिन्न रूपों और उनकी विभिन्न आराधनाओं के लिए उपयोग किए जाते हैं। इन मंत्रों के जप से चंडी माता की कृपा मिलती है और सभी संकटों से मुक्ति प्राप्त होती है।

Chandi Devi katha

चंडी देवी कथा का वर्णन पुराणों में मौजूद है। यह कथा देवी चंडी के उत्पत्ति और उनकी लड़ाई के बारे में है। इस कथा के अनुसार देवी चंडी ने देवराज इंद्र द्वारा उन्हें संग्रह करने का निर्णय सुना था।

इंद्र ने देवी को पराजित करने के लिए उनके शक्तियों का अहंकार देखा था। देवी चंडी ने इंद्र की विश्वासघाती चाल में संगठित हुए शक्तियों की मदद करते हुए उन्हें हरा दिया।

देवी चंडी की इस विजय के बाद, उन्होंने संग्रह किए गए सभी शक्तियों को अपने शरीर में समाहित कर लिया। इससे उनकी शक्ति और ताकत बढ़ गई और वे देवी चंडी के रूप में जानी जाने लगीं।

बाद में, एक नारी द्वारा चंडी माता के बारे में एक संगीत सुना गया जो अत्यंत सुंदर था। इसे सुनकर लोग चंडी माता की पूजा शुरू कर दी। इस तरह से, चंडी माता का मंदिर बनाया गया और उनकी पूजा उसके बाद से होती आई है।

चंडी माता की कथा के अनुसार, उनकी कहानी खूब प्रचलित हुयी हैं.

चंडिका मंत्र (Chandika Mantra)

चंडिका मंत्र हिंदू धर्म में मां दुर्गा की आराधना के लिए उपयोग किया जाता है। यह मंत्र देवी चंडी की स्तुति के लिए भी जाना जाता है। इस मंत्र का जाप करने से मां दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है और शक्ति का अनुभव होता है।

चंडिका मंत्र:

ॐ ह्रीं क्लीं चंडिकायै विच्चे।

इस मंत्र को सुबह-शाम एक माला के साथ जपा जाता है। इस मंत्र को सटीक रूप से उच्चारण करने के लिए पहले इस मंत्र का ध्यान करना चाहिए और तब उसे उच्चारित करना चाहिए। इस मंत्र को जप करने से व्यक्ति को अंतर्दृष्टि, बल, सफलता और सुख मिलता है।

चंडी देवी मंदिर कहां है (where is chandi devi temple)

चंडी देवी मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य में है। यह मंदिर हरिद्वार शहर से लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर नीलकंठ पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर मां चंडी देवी को समर्पित है और हिंदू धर्म में इसे महत्वपूर्ण स्थलों में से एक माना जाता है। चंडी देवी मंदिर नीलकंठ महादेव मंदिर, मां मंसा देवी मंदिर और चांदीघाट मंदिर जैसे प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है।

चंडी देवी क्या है (What is Chandi Devi)

चंडी देवी हिंदू धर्म में एक देवी हैं, जो शक्ति की देवी मां दुर्गा के रूप में जानी जाती हैं। चंडी देवी को चंडिका देवी और चंडिका माता के नामों से भी जाना जाता है। चंडी देवी महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के साथ त्रिदेवी का एक रूप माना जाता है।

चंडी देवी को विभिन्न अवतारों में दर्शाया जाता है, जैसे मां दुर्गा, महिषासुर मर्दिनी, कालरात्रि, सिंहवाहिनी, चामुण्डा और कात्यायनी। वह शक्ति का प्रतीक होती हैं जो संसार को सृष्टि, स्थिति और विनाश की सृष्टि करती हैं। चंडी देवी की पूजा करने से शक्ति की अनुभूति होती है और मनुष्य को संसार में सफलता की प्राप्ति में सहायता मिलती है।

चंडी देवी की कितने किलोमीटर की चढ़ाई है (How many kilometers is the ascent of Chandi Devi)

चंडी देवी मंदिर को पहुंचने के लिए लगभग 3 किलोमीटर की उमड़ज़ती चढ़ाई होती है। यह चढ़ाई नीलकंठ पहाड़ी के ऊपर से होती है और पैदल चढ़ाई के अलावा आप ट्रेन, टैक्सी या बस का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इस चढ़ाई के दौरान आपको अनेक सुंदर दृश्यों का आनंद लेने को मिलता है, जो इस स्थान को एक प्रमुख धार्मिक स्थल बनाते हैं।

चंडी माता की उत्पत्ति कैसे हुई (How did Chandi Mata originate)

चंडी माता की उत्पत्ति के बारे में कई प्रसिद्ध कथाएं हैं। इन कथाओं में से सबसे प्रसिद्ध कथा है कि चंडी माता का उद्भव महिषासुर नाम के राक्षस से हुआ था। महिषासुर शक्ति के अत्यंत दुर्बल होने के कारण समझदार था और उसने चाहा कि वह अमर बन जाए।

महिषासुर ने शक्ति की देवी पर अत्याचार करने का निर्णय लिया। उसने अपनी सेना के साथ मधुकैटभ नाम के दो दुर्गम राक्षसों को भी शक्ति की देवी के खिलाफ भेज दिया। चंडी माता ने महिषासुर, मधुकैटभ और महिषासुर के सम्पूर्ण सेना को नष्ट कर दिया।

इस कथा के अनुसार, चंडी माता ने अपनी शक्ति का उपयोग करके महिषासुर का वध किया था और उसके उद्भव से उन्हें दुर्गा, काली, चंडिका और अन्य नामों से जाना जाने लगा।

चंडी देवी मंदिर में सती का कौन सा भाग गिरा था (Which part of sati fell in Chandi Devi temple)

चंडी देवी मंदिर में सती के दिव्य शरीर का केवल एक अंश ही गिरा था जो माना जाता है कि मंदिर के मूल शिला में स्थापित है। इस भाग को 'जयखण्ड' नाम से जाना जाता है। चंडी देवी मंदिर में सती के इस अंश को पूजनीय माना जाता है और यहां भक्त इसे दर्शन के लिए आते हैं।

क्या चंडी देवी एक शक्ति पीठ है (Is Chandi Devi a Shakti Peeth)

हाँ, चंडी देवी मंदिर एक प्रसिद्ध शक्ति पीठ है। शक्ति पीठ भारत में तीर्थस्थलों के लिए जाने जाते हैं जहां मां शक्ति की पूजा की जाती है। चंडी देवी मंदिर उत्तराखंड के हरिद्वार शहर में स्थित है और यहां पर मां चंडी की पूजा की जाती है। इस स्थान पर आने वाले श्रद्धालु भक्तों के लिए यह एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है।

चंडी मंदिर किसने बनवाया था (Who built the Chandi temple)

चंडी मंदिर के बारे में कई कहानियां हैं लेकिन सबसे प्रमुख कहानी यह है कि यह मंदिर महाराजा गजसिंह ने बनवाया था। महाराजा गजसिंह भाटी राजपूत वंश के राजा थे और उन्होंने इस मंदिर का निर्माण 16वीं शताब्दी में करवाया था। चंडी मंदिर राजस्थान के झालावाड़ जिले में स्थित है और यह भारत में बहुत ही प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है।

चंडी का नाम क्या है (What is Chandi's name)

चंडी मंदिर का पूरा नाम 'श्री चमुण्डेश्वरी मंदिर' है। यह मंदिर माँ चमुण्डा के लिए समर्पित है, जो दुर्गा माँ की एक रूप रूप हैं। मंदिर का नाम 'चंडी' उस रूप के आधार पर है जिसमें देवी चमुण्डा को दिखाया जाता है, जो दस हाथों वाली देवी होती हैं जिसके प्रत्येक हाथ में एक अलग-अलग वस्तु होती है।

चंडी देवी मंदिर कैसे जाएं (How to reach Chandi Devi Temple)

हरिद्वार में भी चंडी देवी मंदिर है। इस मंदिर को जाने के लिए आप निम्नलिखित विधियों का पालन कर सकते हैं।

हवाई मार्ग से: आप दिल्ली एयरपोर्ट से एयरपोर्ट के बाद उत्तराखंड के देहरादून या जोली ग्रांट एयरपोर्ट तक फ्लाइट ले सकते हैं। इन एयरपोर्ट से हरिद्वार में टैक्सी, बस या ट्रेन सेवाएं उपलब्ध हैं।

रेलवे से: हरिद्वार रेलवे स्टेशन उत्तराखंड के मुख्य शहरों से रेल सेवाओं से जुड़ा हुआ है। स्टेशन से मंदिर तक आप टैक्सी, ऑटो रिक्शा या सार्वजनिक परिवहन सेवाएं उपलब्ध हैं।

बस से: उत्तराखंड राज्य परिवहन निगम उत्तराखंड के मुख्य शहरों से हरिद्वार तक बस सेवाएं प्रदान करता है। हरिद्वार में बस स्टैंड से मंदिर तक आप ऑटो रिक्शा या टैक्सी का उपयोग कर सकते हैं।

मंदिर पहुंचने के बाद, आपको मंदिर के लिए उपलब्ध पार्किंग स्थान का उपयोग करना होगा। मंदिर दर्शन के लिए आमतौर पर सुबह 6:00 से रात्रि होने सुरु हो जाती हैं.

और नया पुराने