श्री पार्श्वनाथ भगवान, हरितवर्ण, कार्योत्सर्ग मुद्रा। मार्गदर्शक: यह स्थान राजस्थान के झालावाड़ जिले में स्थित है लेकिन मालवा तीर्थ स्थलों की यात्रा के दौरान यहां आना सुविधाजनक है। यहां से निकटतम रेलवे स्टेशन विक्रमगढ़ अलॉट 8 किमी है।
एम। रतलाम नागदा-शामगढ़ के बीच कोटा लाइन पर है। स्टेशन से यात्रियों की सुविधा के लिए पेढ़ी से जीप व मिनीबस की सुविधा उपलब्ध है। चौमहला से एक पक्की सड़क है और एक नियमित बस सेवा उपलब्ध है। रतलाम से करीब 92 किमी. उज्जैन से की दूरी पर और लगभग 100 किमी. जावरा से 55 किमी. यह उन्हेंल के पास की दूरी पर स्थित है।
मंदिर की परिचय:
यह श्री नागेश्वर पार्श्वनाथ की मूर्ति और मंदिर तकरीबन 11 सौ वर्ष पुरानी हो चुकी है। यहां उपाध्याय shri dharm sagar ji s.s. और गणिवार्य श्री अभय सागर जी m.sa. उन्होंने इस विश्वविद्यालय के जैन संघ को जगाया और उनकी प्रेरणा से राज्य के उचित कदम उठाते हुए जैन संघ ने मंदिर का कार्यभार संभाला और औपचारिक सेवा-पूजा शुरू की।
जब मंदिर पर कब्जा किया गया था, तब वह आधी-अधूरी अवस्था में था। विश्वविद्यालय के जैन संघ ने यहां एक बड़े मंदिर की योजना बनाई थी और कई करोड़ रुपये की लागत से मंदिर का निर्माण किया था।
कुंभ श्याम मंदिर कहां स्थित है kumbh shyaam mandir
मुलनायक श्री पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा 14 फीट ऊंची है। करियोत्सव मंच पर श्वेतांबर की इतनी ऊंची मूर्ति शायद ही कहीं देखने को मिलती है। मुलनायक के दोनों ओर श्री शांतिनाथ भगवान और श्री महावीर स्वामी की साढ़े चार फुट ऊंची सफेद संगमरमर की मूर्तियां हैं। श्री पार्श्वनाथ प्रभु की मूर्ति इतनी आश्चर्यजनक है कि यह रत्नों में से एक लगती है। संवत 2026 में मंदिर का अभिषेक किया गया था। मुलनायक प्रभु की प्रभावशाली मूर्ति के कारण यहां बड़ी संख्या में भक्त आते हैं।
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आवास: दरगाह में कई धर्मशालाएं हैं। इसके लिए एक रेस्टोरेंट की भी योजना है। पेढ़ी ने अलोर में एक विशाल धर्मशाला भी बनवाई। धर्मशाला कार्यालय से फोन पर जीप, मिनी बस और अन्य वाहन बुक किए जा सकते हैं।
पार्श्वनाथ का दूसरा नाम क्या है (paarshvanaath ka doosara naam kya hai)
भगवान पार्श्वनाथ का दूसरा नाम "पार्श्वनाथ जी" है। पार्श्वनाथ जी जैन धर्म के तीर्थंकरों में से एक हैं और उन्हें पश्चिम भारत में पूजा जाता है। वे अपने समय के सबसे प्रभावशाली तीर्थंकरों में से एक माने जाते हैं और जैन धर्म में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
पार्श्वनाथ मंदिर कौन से राज्य में स्थित है (paarshvanaath mandir kaun se raajy mein sthit hai)
पार्श्वनाथ मंदिर - मध्य प्रदेश उन्हेल पार्श्वनाथ मंदिर मध्य प्रदेश राज्य में स्थित है। यह मंदिर शिवपुरी जिले में स्थित है और भारत के प्रसिद्ध जैन तीर्थस्थलों में से एक है।
पार्श्वनाथ को ज्ञान की प्राप्ति कहाँ हुई paarshvanaath ko gyaan kee praapti kahaan huee)
जैन धर्म के अनुसार, पार्श्वनाथ ने उन्होंने अत्यंत तपस्या करके अनंत ज्ञान की प्राप्ति करी थी। उन्होंने तपस्या के दौरान अनेक प्रकार के आध्यात्मिक अनुभवों का अनुभव किया था और अपनी आत्मा की महिमा को समझा था। उन्होंने अनेक धार्मिक उपदेश दिए और जीवन के मूल्यों को समझाया। उनके उपदेश और जीवन के उदाहरण जैन धर्म के महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथों में विस्तार से वर्णित हैं।
श्री पार्श्वनाथ भगवान कौन से स्वर्ग से यहां अवतार थे (shree paarshvanaath bhagavaan kaun se svarg se yahaan avataar the)
जैन धर्म के अनुसार, श्री पार्श्वनाथ भगवान स्वर्ग से नहीं बल्कि महावीर भगवान के पूर्वजन्म के समय त्रिषला देवी के गर्भ से अवतरित हुए थे। त्रिषला देवी उनकी माता थीं और उन्हें जन्म देने से पहले उन्हें उत्तर्वाहिनी नामक अर्धरात्रि का तप करने का विशेष आदेश मिला था। इस तप के दौरान त्रिषला देवी ने अनेक आध्यात्मिक अनुभवों का अनुभव किया था और उन्हें तीन सुपर्णों ने वरदान दिए थे, जिससे उन्हें त्रिकाल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
पार्श्वनाथ जैन धर्म के कौन से तीर्थंकर थे(paarshvanaath jain dharm ke kaun se teerthankar the)
पार्श्वनाथ जैन धर्म के दूसरे तीर्थंकर थे। जैन धर्म में तीर्थंकर उन आदमीओं को कहते हैं जो संसार में सम्पूर्ण ज्ञान के साथ आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति तक ले जाने वाले होते हैं। उन्हें धर्म के अधिकारी व्यक्ति और आध्यात्मिक गुरु के रूप में सम्मान दिया जाता है। जैन धर्म में 24 तीर्थंकर माने जाते हैं, जिनमें पार्श्वनाथ जी दूसरे तीर्थंकर हैं।
पार्श्वनाथ का चिन्ह क्या था (paarshvanaath ka chinh kya tha)
पार्श्वनाथ भगवान का चिन्ह "षट्ट्रिंशिका" होता है, जो कि उनके प्रतिनिधि चिन्ह में से एक है। इस चिन्ह में 36 शिखर होते हैं, जिनमें से 5 शिखरों का उदय सूर्योदय के समय दिखाई देता है। यह चिन्ह पार्श्वनाथ भगवान के अधिकृत आभूषण एवं प्रतिमाओं में प्रयोग किया जाता है।
पार्श्वनाथ की शिक्षा में महावीर ने क्या जोड़ा (paarshvanaath kee shiksha mein mahaaveer ne kya joda)
जैन धर्म के अनुसार, पार्श्वनाथ भगवान जी के उपदेशों में अहिंसा और दया के महत्व को बताया गया था। महावीर जैन भगवान ने भी अपने उपदेशों में अहिंसा और दया के महत्व को जोड़ा। उन्होंने इस बात को भी बताया कि जैन धर्म में सभी जीव जन्मान्तर से अमर होते हैं और इसलिए हमें सभी जीवों के प्रति अहिंसा और सहानुभूति का भाव रखना चाहिए। इस तरह से, महावीर ने पार्श्वनाथ भगवान की शिक्षाओं को अपने उपदेशों में शामिल किया और जैन धर्म के अहिंसा एवं दया के सिद्धांतों को आगे बढ़ाया।
पार्श्वनाथ का क्या अर्थ है (What is the meaning of Parshwanath)
पार्श्वनाथ शब्द का उच्चारण संस्कृत भाषा में होता है। "पार्श्व" शब्द का अर्थ होता है "पास में" या "साइड में" और "नाथ" शब्द का अर्थ होता है "भगवान का श्रेष्ठ" या "श्रेष्ठ गुरु"। इसीलिए, पार्श्वनाथ का अर्थ होता है "पास में भगवान का श्रेष्ठ" या "साइड में श्रेष्ठ गुरु"।
पार्श्वनाथ जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर हैं और उन्हें जैन धर्म के प्रमुख व्यक्तित्वों में से एक माना जाता है।