गौतम बुद्ध की बचपन की कहानी | Gautam Buddha ki Kahaniya

एक समय था जब भगवान बुद्ध जेतवन विहार मे रहा करते थे तभी भिक्षु चक्षुपाल हमेशा बुद्ध भगवान से मिलने आया करते थे उनके आने के साथ साथ उनकी दिनचर्या एवं व्यवहार और  गुणों की हमेशा चर्चा होती रहती थी

भिक्षु चक्षुपाल बचपन से ही वे अंधे थे 1 दिन बिहार के कुछ भिक्षुओं ने ढेर सारा मरे पड़े कीड़े मकोड़े को चक्षुपाल कुटी के बाहर में देखा और उन सभी ने चक्षुपाल की घोर निंदा करने में जुट गए की उन्होंने इन सभी जीवित प्राणियों का हत्या की है या फिर किसी से करवा दी है 

 भगवान बुद्ध ने जायदा शोर और भारी निंदा कर रहे उन सभी को अपने पास बुलवाया और पूछने लगे कि क्या आपमें से भिक्षु को किसी ने कीड़ो को मारते हुए किसी ने देखा है तो सभी के सभी ने कहा कि हमने तो नहीं देखा सभी के सभी एक एक करके मुकर जाते है 

 इसी बात को लेकर भगवान बुद्ध ने उन सभी भिक्षु को  बताया की जैसे आप लोगों में से  किसी ने उन्हें  कीड़े और मकोड़ों को मारते हुए  नहीं देखा ठीक वैसे ही चक्षुपाल ने  भी उन्हें मरते हुए नहीं देखा और उन्होंने कीड़ों को जानबूझकर नहीं मारा होगा इस नाते उन पर अपनी भड़ास निकालना उचित नहीं होगा

  तभी सभी भिक्षुओं ने  भगवान बुद्ध से  प्रश्न किया की चक्षुपाल  अंधे क्यों उन्होंने अगले जन्म या फिर इस जन्म में क्या पाप किया होगा



तभी भगवान बुद्ध ने चक्षुपाल के विषय में बताने लगते हैं उन्होंने कहा कि  वे पूर्व जन्म में एक डॉक्टर थे एक अंधी औरत ने उनसे वादा किया था कि जब वह उसकी आंखें ठीक कर देंगे तो पूरा परिवार और हम आपका दासी बनकर सेवा करेंगे स्त्री की आंख  ठीक हो गए बाद में उसने दासी बनने के डर के कारण यह उसने मानने को बिल्कुल इनकार हो गया 

डॉक्टर को इस बात का खबर था की उस स्त्री का आंखें ठीक हो गई है अब हमको  धोखा दिया जा रहा है किंतु उसको सबक सिखाने के लिए या फिर मानो बदला लेने के लिए चक्षुपाल  ने दूसरी दवाई दे दिया वह दवा खा कर औरत  फिर से अंधी हो जाती है वह कितना भी रोई चिल्लाई  किंतु चक्षुपाल  का दिल जरा भी  पसीज नहीं सका ठीक इसी फल स्वरुप अगले जन्म में चिकित्सक को अंधा बनना पड़ गया

 प्रेरक कहानियां कर्म और धैर्य

 एक वक्त की बात है जब भगवान बुद्ध ने अपने  कुछ अनुयायियों  के साथ किसी  कस्बे में जा रहे थे उसी कस्बे के रास्ते में उन सभी लोगों को खूब सारे  जगह जगह पर गड्ढे खुदे हुए मिलने लगते हैं बुध भगवान के  एक  शिशु  के मन में  गड्ढों को देखकर अपनी  अपनी जिज्ञासा प्रकट की आखिर में  इतना सार गड्ढे  खुदे होने का क्या मतलब हो सकता है

तभी भगवान बोले  पानी की तलाश में किसी मानुष  ने इतने सारे गड्ढे खोदे होंगे यदि वह धैर्यपूर्वक एक ही  जगह पर गड्ढे  खोदता तो शायद उसे पानी  मिलने की ज्यादा संभावना हो सकती थी  पर वह बेचारा थोड़ी थोड़ी देर गड्ढा खोदता और पानी ना मिलने पर तुरंत निराश होकर किसी और जगह पर खोज  करने लगता   रहा होगा  ठीक इसी नाते व्यक्ति को परिश्रम करने के साथ साथ धैर्य भी रखना अनिवार्य होता है

 प्रेरक कहानियां अमृत की खेती

 एक बार की बात है जब बुद्ध जी ने भिक्षा के लिए एक किसान के घर  गए उस आदमी ने भिक्षा के लिए बहार  आया देखकर किसान ने अपनी उपेक्षा से बोला की मैं दिन रात एक कर के हल चलाता हूं तब जाकर खाता हूं। तुमको भी हल चलाना चाहिए और बीज बोना चाहिए तत्पश्चात खाना खाना चाहिए उसके बाद बुद्ध ने कहा की महाशय हम  भी खेती करते है इतने पर उस किसान को जिज्ञासा होने लगती है और वह बोला मैं तो आपके पास नाही बैल देख रहे हैं और ना ही  आपके पास हाल है और ना ही कोई खेती का जगह दिखाई दे रही है अगर आप खेती करते हो तो कृपा करके  अपनी खेती के  बारे में हमें बताएं

 भगवान ने बताया कहा महाशय  मेरे पास श्रद्धा का बीज है और तपस्या रूपी वर्षा एवं प्रजा रूपी जोत है पाप बिरूदा का दंड भी है सुविचार रूपी रस्सी है समृद्धि और जागरूकता रूपी हल है

मैं वचन और कर्म में  संयम रखता हूं  मैं अपनी इस खेती को  बेकार की घास  से मुक्त रखता हूं एवं आनंद की फसल काट लेने तक  प्रयत्नशील रहता हूं  आप्रमाद मेरा  बैल है जो  बाधाएं देखकर भी पीछे मुंह की मोड़ता वह हमें सीधा शांति धाम तक ले जाता है इस तरह  से मैं  निरंतर अमृत की खेती करता रहता हूं

 प्रेरक कहानियां दान की महिमा

 भगवान  बुद्ध का जब पाटलिपुत्र में आगमन होता है तो हर एक व्यक्ति अपनी संपत्ति का स्थिति के अनुसार उन्हें उपहार देने की योजना बनाने लगते हैं राजा बिंदुसार ने उन्हें कीमती हीरो और मोतियों के रत्न उन्हें भेंट किया बुद्ध भगवान ने  सबको एक साथ से सहर्ष स्वीकार कर लिया उसके बाद मंत्रियों सेठों और  साहूकारों ने अपने अपने उपहार उनको अर्पित करना  शुरू कर दिया भगवान  बुद्ध ने उन सबको एक हाथ से स्वीकार कर लिया था

 उसके बाद एक बुढ़िया ने  लाठी लेकर टेकते हुई आ जाती है भगवान  बुद्ध को प्रणाम किया और बोली भगवन्‌  जिस समय  आपके आने का  खबर हमको हुई उस वक्त मै  यह अनार खा रही थी मेरे पास और कोई दूसरा चीज ना होने के नाते मैं इसे आधा खाए हुए अनार को ले आई हूं यदि आप मेरी इस तुच्छ  भेंट को  स्वीकार कर  लेंगे तो मैं अहोभाग्य समझ जाऊंगी उस समय भगवान बुद्ध ने अपने दोनों हाथ  आगे बढ़ाकर  फल को लिया और तत्काल ग्रहण भी कर लिए

राजा बिंदुसार ने जब यह देखा तो  आश्चर्य चकित हो गए उन्होंने बुद्धदेव से कहा भगवान क्षमा करें एक प्रश्न पूछना चाहता हूं जोकि हम लोगों ने आपको बड़ी से बड़ी  हम लोगों ने उपहार पेश किए जिन्हें आपने एक हाथों से ग्रहण किया लेकिन इस बुढ़िया  के द्वारा दिया गया छोटा  एवं जूठे फल को आपने दोनों हाथों से पकड़ कर लिया एवं ग्रहण भी किया ऐसा क्यों यह  बताएं भगवन्‌  फिर क्या होना था

 यह सुनकर बुध भगवान जी मुस्कुराहट के साथ बोल पड़े की  राजन्‌! आप सब ने भले ही  बहुमूल्य उपहार दिए हैं  लेकिन यह सब आपकी संपत्ति का ना के बराबर का हिस्सा है आपने यह दान गरीब जनों की भलाई के लिए नहीं किया है इस  नाते आपका यह दान 'सात्विक दान की श्रेणी में नहीं आ सकता है ठीक इसके विपरीत इस बुढ़िया ने अपने मुंह का कौर ही  हमें दे डाला है  भले  यह बुढ़िया  निर्धन है 

 लेकिन  इसको संपत्ति का कोई भी लालसा नहीं है  यही वह कारण है कि इसका दान हमने खुले मन से और दोनों हाथों से स्वीकार किया है  भगवान बुध का यह बातें सुनकर राजा बिंदुसार के मन में एक  उज्जवल भावना उत्पन्न हो गए तभी से राजा बिंदुसार बड़े ही  स्वभाव दिल  के सुंदर  हो गए और दान किसे देना चाहिए और किस हालत में उनको ज्ञान हो गया आप खुद ही समझ सकते हो जिसके साथ भगवान बुद्ध और बात कर रहे हैं  ऐसे ज्ञानी काया भी पड़ जाए  जिसके ऊपर तो जीवन धन्य हो जाए और बुद्धि का भंडार खुल जाए


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