योग क्या है इसके लाभ एवं महत्व लिखिए? | Why is yoga necessary?

 पतंजलि योग से शुरू होता है  एक पौराणिक  कहानी  बहुत साल पहले की बात है जब ऋषि मुनि ने मिलकर भगवान विष्णु के पास गए  और अपनी समस्याओं को लेकर अपनी बातें सुनाई उस समय भगवान आपने धन्वन्तरि  रूप में आकर  शारीरिक रोगों के उपचार के लिए आयुर्वेद दिया 

लेकिन तो अभी भी लोग पृथ्वी पर काम मन एवं क्रोध  के  वासनाओं के लिए एक सही उपयोग निकाला है  यह इसलिए  निकाला गया क्योंकि जिससे सभी पीड़ित लोगों को  उतारा जा सके इससे मुक्ति का तरीका भी बताया गया दुख से मुक्ति का तरीका क्या है  अक्सर लोग शारीरिक  केवल नहीं बल्कि मानसिक एवं भावनात्मक  तरीकों से भी बेकार में दुखी रहते हैं

 भगवान आज से सर्प का साया पर लेटे हुए थे  सहस्त्र मुख वाले आदि शेष जागरूकता का प्रतीक  माना जाता है आदिशेष को महर्षि पतंजलि के रूप में धरती पर भेज दिया ठीक इसी तरीके से  योग का प्रयत्न एवं  शिक्षा देने  के लिए महा ऋषि को धरती पर भेज दिया गया  ऐसे  योग्य किसी को मिलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था लेकिन महर्षि पतंजलि धरती पर आकर इस तरह के योग ज्ञान को प्रदान  करने के लिए धरती पर अवतार लिया था


महर्षि पतंजलि के नियम एवं कायदे क्या थे | Rules laid by Maharishi Patanjali 


यह उस वक्त की बात है जब महर्षि पतंजलि  ने बताया की जब तक 1हजार  से ऊपर शिष्य कट्ठा नहीं जाते हैं तब तक वह योग सूत्रों का प्रतिपादन नहीं कर सकते हैं ठीक उसी वक्त में ऐसे विंध्य पर्वत की दक्षिण दिशा में 1000 से भी ज्यादा शिष्य इकट्ठा हुए थे  

उसके पश्चात महा ऋषि का एक और मांग थी उन्होंने बताया कि उनकी ही शिष्यों के बीच में एक पर्दा भी रहेगा जब तक पूरा ज्ञान सबको मिल नहीं जाता तब तक उस  पर्दे को कोई उठाएगा नहीं जब सबको ज्ञान प्राप्त हो जाएगी उसी समय पर्दा उठाया जाएगा और  उसके पश्चात कोई भी शिष्य बाहर भी नहीं जाएगा


 महर्षि पतंजलि जी ने परदे के अंदर रहकर उन्होंने एक हजार से भी अधिक शिष्य को  एक शब्द बोले थे जिससे सभी बालक को ज्ञान देना जारी किया था ये एक अलौकिक नजारा था जोकि सम्पूर्ण शिशु को एक अद्भुत ऊर्जा संचरण का संचार महसूस होने लगा था उसके बाद महर्षि पतंजलि जी कुछ कहे एवं बताएं ज्ञान का संपूर्ण  संपादन करना जारी कर दिया था यह एक अनोखा दृष्टि थी जोकि मानो भगवान परमेश्वर का एक वरदान दिया हुआ था


शर्त की अवहेलना


 ठीक उसी समय एक बालक को  लघुशंका के कारण  कुछ पल के लिए अपना कच्छ छोड़ना पड़ा  उसने सोच यह, लिया कि हम जाएंगे और फिर आ भी जाएंगे उसके बाद एक और बालक  के मन में शंका उठने लगी की महा ऋषि पर्दे के पीछे क्या कर रहे हैं


  उसने उत्साहित होकर पर्दे को उठा दिया वहां पर सभी उपस्थित हुए शिष्य   लहलहाकर भस्म होने लगे यह सब देख कर महा ऋषि अत्यंत दुखी हो जाते हैं ठीक उसी समय लघु शंका से लौटे शिशु ने कक्ष में प्रवेश किया और बिना अनुमति के बाहर जाने के पश्चात में क्षमा याचना   भी किया


उसी वक्त ब्रह्मराक्षस बनकर वह एक पेड़ पर लटक जाता है और उस रास्ते से जाने वाले हर एक व्यक्ति से वह एक सवाल करता रहता है जो भी व्यक्ति सही जवाब  नहीं दे देता है वह उसको खा जाता था  हजारों वर्षों तक ऐसे लोगों को खाता रहा  और  इस ब्रह्मराक्षस  को कोई भी उसका उत्तर नहीं दे पाया एवं उसके प्रति विद्यार्थी नहीं मिले


गुरु बने शिष्य


 महर्षि यह सब देख  ही रहे थे  उस ब्रह्मराक्षस से बच बचाकर कभी-कभी कोई ना कोई  विद्यार्थी आया भी करते थे  लेकिन तो जब  इस बात का पता चला तो एक दिन महर्षि ही विद्यार्थी बनकर राक्षस को मुक्त करने के लिए प्रकट हो जाते हैं 


ब्रह्मराक्षस वही प्रश्न उनसे भी करने लगा तब महा ऋषि ने ताड़ के पत्तों पर लिख कर उनको जवाब दे दिया ब्रह्मराक्षस रात को ही ज्ञान दिया करता था पतंजलि अपने आप खरोच खून कर निकालते और पत्तों पर लिखते चले जाते हैं उनके  खरोच ए हुए  जगहों से खून निकलता था और उसी से लिखते चले जाते थे  


एक दिन  ऐसा भी आया जब ऋषि पतंजलि थके हुए थे  तो उन्होंने अपने हाथो लिखे हुए पत्तों को एक पत्ते में लपेट कर अपने कपड़ो के पास रख दिया और गंगा जी में स्नान करने चले जाते है जब वह स्नान करने के बाद वापस लौट रहे थेतभी   उन्होंने देखा कि उनके लिखे हुए  सामग्री को लगभग तक खा चुकी थी 


उसके बाद ऋषि पतंजलि ने बचे हुए पत्ते को  बटोर कर लेकर चले गए  पुराण कहानियों में बताया जाता है की उनका अर्थ निकालने के लिए हम पर छोड़ दिया जाता है इस कहानी का अर्थ बहुत ही गहरा और दुर्लभ माना जा सकता है अब आपको पता लगाना है कि पर्दे को उठाते ही सारे शिष्य भस्म क्यों हो गए 


जानिए महर्षि वर पतंजलि बिना कुछ बोले कैसे ज्ञान का संपादन किया करते थे आपको बताना है 


 पर्दे का क्या है महत्व


 परंतु एक शिशु को क्यों माफ कर दिया गया


 बकरी का क्या अभिप्राय है


 कुछ मिलाकर इस कहानी को आप क्या समझते हो आगे और भी बातें निरंतर जारी रहेंगी


पतंजलि का श्राप


 करुणा बस महर्षि पतंजलि के बचे हुए सभी योग सूत्र उस शिष्य  को दे दिया  और साथ में अवहेलना के लिए  ब्रह्म राक्षस बन जाने की  श्राप भी दे दिया उन्होंने कहा जब तक तुम जानकी किसी विद्यार्थी को नहीं देते  तब तक तुम ब्रह्म राक्षस ही बने रहोगे ऐसा कहकर पतंजलि ने अंतर्ध्यान हो जाते हैं


 इसका अर्थ यह हुआ कि जब कोई भी ज्ञानी व्यक्ति गलत करता है तो  वह सबसे अधिक खतरनाक साबित हो सकता है वह ब्रह्मराक्षस जैसी आस्था होता है ऐसे ही जब कोई ज्ञानी व्यक्ति गलत करता है तो वह अबोध व्यक्ति की आराध करने से भी खतरनाक होता है





योग शास्त्रों के अनुसार  84 लाख आसान माने जाते है और वर्तमान में अभी 32 आसन प्रसिद्ध हुए हैं इसके अभ्यास से  शरीर की मानसिक और आध्यात्मिक रूप से  स्वास्थ्य लाभ एवं के लिए  किए जाते हैं योग का अर्थ होता है जोड़ना  यानी कि जीवात्मा का परमात्मा से मिल जाना संपूर्ण तरीके से एक हो  जाना योगाचार्य महा ऋषि  पतंजलि ने संपूर्ण योग का रहस्य अपने योगा दर्शन मैं सूत्रों के रूप में प्रस्तुत कर दिया उसके हिसाब से चेत को एक जगह स्थापित करना भी एक योग्य है


 अष्टांग योग क्या है

  हमारे ऋषि-मुनियों ने योग के द्वारा शरीर और मन  एवं  प्राण की सिद्धि और परमात्मा के प्रति उन्होंने आठ प्रकार के साधन बताएं है से अष्टांग योग कहते हैं  जोकि कुछ इस प्रकार हैं प्राणायाम करे 


 बरिष्ट योग के जानकार उपाध्याय के बताते है कुछ ऐसे आसन है जिसे प्राणायाम कहा जाता है जिसको आप अपने ही घर के आँगन में बड़े आसानी से कर भी सकते हैं और अपने जीवन को  निरोगी बना सकते है आपके लिए बहुत सारे योगासन लाया करते है जिसके लिए बहुत सारे उपाय खोजते रहते है और तरह तरह के उपचार करते रहते है लेकिन हम सबको हमेशा सचेत एवं सयम का प्रयास करना चाहिए


 इसके पश्चात हम ढेर सारा योग कर सकते हैं उपाध्याय जी के बताने की उनके बातये गए अनुसार आसान से तात्पर्य शरीर के वह स्थिति होता है जिसमें आप अपने शरीर एवं मन को शांत स्थिर रहकर एवं सुखीमय करने तनिक भी पीछे नहीं हटते हो शरीर का सही रखरखव करने के लिए इस योग को कर  सकते है स्थिरसुखमासनम्  सुख पूर्वक बगैर कष्ट सहे ही  एक ही स्तर में अधिक से अधिक समय तक बैठने की क्षमता को भी बढ़ाने को भी आसन कहा जाता है


 मानते है की योग शास्त्रों के परम्परानुसार 84 लाख आसन माने जाते थे जबकि और सभी जीव जंतुओं के नाम पर आधारित होते थे। इन सभी सम्पूर्ण आसनों के बारे में बहुत कम लोग जानते थे वही जानता इस नाते 84 आसनों को ही प्रमुख मानते है. और जिसमे वर्तमान में 32 आसन ही प्रसिद्ध हुए हैं। इन आसनों का अभ्यास करने पर शारीरिक, मानसिक एवं तनाव आध्यात्मिक रूप से स्वास्थ्य में लाभ एवं उपचार के नाते किया जाता है।



आसन को दो अलग -अलग समूहों में बांट दिए है:-



1. गतिशील आसन- क्या होता है हम जानेगे इस आसन से शरीर की शक्ति ऊर्जा के साथो साथ गति भी बढ़ता रहता है और आपका शरीर फूर्ति  में भी गतिमान रहता है 


2. स्थिर आसन- यह आसन जिसके अभ्यास से आपका  शरीर को बहुत ही सीलो में कर देता है और इसको कहु बिना तेज गति के धीरे-धीरे किया जाता है।


यह हैं प्रमुख आसन...



3. स्वस्तिकासन >


स्थिति: > स्वच्छ कम्बल या चटाई या फिर कपडे बिछाकर उसके ऊपर पैर फैलाकर बैठें।


स्वस्तिकासन का विधि:- आप अपने बाएं पैर को घुटने तक मोड़ ले उसको धीरे धीरे करके दाहिने जंघा तक ले जाये एवं  पिंडली के बीचो बीच इस तरह से स्थापित कर ले की आपके बाएं पैर का तल बिलकुल छिप जाये उसके बाद आप दाहिने पैर के पंजे एवं तल को बाएं पैर के बगल से जांघ एवं पिंडली के मध्य से स्थापित करने से स्वस्तिकासन का आकर लेलेता है। उसके बाद ध्यान मुद्रा में बैठें और रीढ़ सीधी करके श्वास अन्दर की तरफ खींचकर यथाशक्ति रोकें।इसी प्रक्रिया को फिर से पैर बदलकर भी करें।

लाभ:-


पैरों का दर्द सम्पूर्ण तरीके से समाप्त होजाता है, और गन्दी पसीना आना दूर होता है।


पैरों का गर्म या ठंडापन हमेशा के लिए दूर होता है.. और मस्त बात यह भी है ध्यान के लिए बढ़िया आसन माना जाता है।


2. गोमुखासन :-


विधि:- अपने दोनों पैर सामने फैलाकर बैठ जाए। और बाएं पैर को मोड़ते हुए एड़ी को दाएं नितम्ब के पास धीरे धीरे लेकर जाए। इस दौरान आप हाथ को पकडिये .. गर्दन और कमर सीधी रहनी चाहिए ।



एक तरफ करीब एक मिनट से ऊपर तक रखने के बाद  दूसरी तरफ ठीक इसी प्रकार से निरंतर करें। और जिस तरफ का पैर ऊपर की ओर करते हो ठीक उसी तरफ का हाथ ऊपर करते रहे।


लाभ:-


इस आसन को करने से अंडकोष में खूब वृद्धि होने लगती  है और आंत्र का वृद्धि में कुछ ख़ास लाभ मिलता है।


धातुरोग, बहुमूत्र और पेशाब के वक्त जलन से मुक्ति मिलती है एवं स्त्री रोगों में खूब लाभकारी होता है।


यकृत, गुर्दे के रोग और वक्ष स्थल को शक्तिशाली बना देता है। संधिवात, गाठिया जैसे खातरनाक बीमारी को हमेशा के लिए दूर कर सकता है।


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