शारदीय नवरात्रि भारतीय हिंदू धर्म में एक प्रमुख धार्मिक उत्सव है जो माँ दुर्गा के पुजन और भक्ति को समर्पित है। यह उत्सव चैत्र नवरात्रि के बाद सितंबर या अक्टूबर महीने में मनाया जाता है, जिसमें माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इसे शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है क्योंकि इसे शरद ऋतु में मनाया जाता है।
नवरात्रि अनुसंधान के दौरान, देवी दुर्गा के नौ रूप बघ्वती, स्कंदमाता, कूष्मांडा, चंद्रघंटा, कैतभांदा, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री और स्कंदमाता होते हैं। प्रत्येक रूप का विशेष महत्व है और भक्तों के द्वारा उनकी भक्ति और पूजा की जाती है।
नवरात्रि के दौरान, लोग माँ दुर्गा की पूजा विधि का पालन करते हैं, जिसमें पूजा के अलावा विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम, भजन-कीर्तन, रसगर्बा, रामलीला आदि आयोजित किए जाते हैं। नवरात्रि के अंत में, दशहरा उत्सव का भी आयोजन होता है, जिसमें दशमी तिथि को रावण दहन और श्रीराम और रावण के युद्ध का प्रदर्शन किया जाता है।
यह उत्सव भारत में विभिन्न राज्यों में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है और समृद्धि, सफलता, शक्ति और समरसता की प्रतीक है। नवरात्रि के दौरान लोग माँ दुर्गा की भक्ति में लीन होते हैं और इस उत्सव के माध्यम से समाज में एकता और सामाजिक सद्भावना का संदेश भी देते हैं।
Shardiya navratri 2023 date: शारदीय नवरात्रि का महा त्यौहार आने वाला है. इस बार शारदीय नवरात्रि 15 अक्तूबर से मंगलवार 24 अक्तूबर तक मनाई जाएगी। नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक शारदीय नवरात्रि मनाई जाती है। हिंदू मान्यता के अनुसार चैत्र और शारदीय नवरात्रि की अधिक मान्यता है।
दुर्गा पूजा का कितना दिन है?
आइए जानते हैं पूरे नौ दिनों की पूजा और मां के घोड़े पर सवार होने के फल के बारे में... घटस्थापना चैत्र प्रतिपदा तिथि को की जाती है और अष्टमी और नवमी तिथि को कन्या पूजन के बाद व्रत तोड़ा जाता है. इस वर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा 2 अप्रैल 2022 दिन शनिवार को पड़ रही है।
सितंबर के आखिरी में आएगी शारदीय नवरात्रि, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा का तरीका
शारदीय नवरात्रि का महत्व (शारदीय नवरात्रि 2022 महत्व)
2022 नवरात्रि दशहरा कब है?शारदीय नवरात्रि पूजा विधि (शारदीय नवरात्रि 2022 पूजन विधि) नवरात्रि के सभी दिनों में सुबह जल्दी उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पहले दिन शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना की प्रक्रिया पूरी करें। कलश में गंगाजल भरकर उसके मुख पर आम के पत्ते रख दें। कलश की गर्दन को पवित्र लाल धागे या मोली से लपेटें और नारियल को लाल चुनरी से लपेटें। आम के पत्तों के ऊपर नारियल रखें। कलश को पास या मिट्टी के बर्तन में रखें। जौ के बीज मिट्टी के बर्तन में बोयें और नवमी तक प्रतिदिन थोड़ा पानी छिड़कें। इन नौ दिनों में मां दुर्गा के मंत्रों का जाप करें। माँ को अपने घर बुलाओ। देवताओं की भी पूजा करें, जिसमें उनकी पूजा फूल, कपूर, अगरबत्ती, सुगंध और पके हुए व्यंजनों से करनी चाहिए। आठवें और नौवें दिन वही पूजा करें और नौ कन्याओं को अपने घर आमंत्रित करें। ये नौ लड़कियां देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं। इसलिए उन्हें साफ और आरामदायक जगह पर बिठाएं और उनके पैर धोएं। उनकी पूजा करें, उनके माथे पर तिलक लगाएं और उन्हें स्वादिष्ट भोजन दें। दुर्गा पूजा के बाद अंतिम दिन घाट विसर्जन करें। दुर्गा पूजा 2022 तिथि: सितंबर में इस दिन से शुरू होगी शारदीय नवरात्रि? जानिए इस बार किस पर आएगी मां दुर्गा पूजा 2022 तिथि: माता जगदम्बा का पर्व नवरात्रि वर्ष में चार बार मनाया जाता है। जानिए कब शुरू हो रही है शरद नवरात्रि और इस बार किस पर सवार होकर आएगी मां। दुर्गा पूजा 2022 तिथि: माता जगदम्बा का पर्व नवरात्रि वर्ष में चार बार मनाया जाता है। शारदीय नवरात्रि आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होती है। नौ दिनों तक देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा, हवन, यज्ञ, जगराते, गरबे का आयोजन किया जाता है। नवरात्रि में हर जगह लोग शक्ति की भक्ति में लीन हैं। अगर नौ दिनों तक मां की पूजा की जाए तो सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। आइए जानते हैं शरद नवरात्रि कब से शुरू हो रहे हैं और इस बार किसकी सवारी करेंगे मां। शरद नवरात्रि 2022 कब है? (शरद नवरात्रि 2022 मुहूर्त) शरद नवरात्रि 26 सितंबर 2022, सोमवार से शुरू हो रहे हैं। नवरात्रि 5 अक्टूबर 2022 को समाप्त होगी। आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा 26 सितंबर 2022 को प्रातः 3.24 बजे से प्रारंभ होगी. प्रतिपदा तिथि 27 सितंबर 2022 को प्रातः 03.08 बजे समाप्त होगी. इस बार शरद नवरात्रि पर घटस्थापना का मुहूर्त 26 सितंबर 2022 को सुबह 06.20 बजे से 10.19 बजे तक रहेगा. शरद नवरात्रि 2022 में मां की सवारी (मां दुर्गा की सवारी क्या है?) देवी भागवत पुराण में नवरात्रि पर माता रानी की सवारी का विशेष महत्व बताया गया है। हर साल मां अलग-अलग वाहनों में सवार होकर आती हैं। मां का हर वाहन एक खास संदेश देता है। पुराणों के अनुसार रविवार या सोमवार से जब नवरात्र शुरू होते हैं तो मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं। यानी इस बार मां दुर्गा का आगमन हाथी की सवारी पर होगा. यह शांति और समृद्धि का प्रतीक है। इस बार शरद नवरात्रि माता रानी हाथी पर सवार होकर आएंगी और सभी के जीवन को खुशियों से भर देंगी। शारदीय नवरात्रि तिथि (शारदीय नवरात्रि 2022 तिथि) प्रतिपदा (मां शैलपुत्री): 26 सितंबर 2022 द्वितीया (माँ ब्रह्मचारिणी): 27 सितंबर 2022 तृतीया (मां चंद्रघंटा): 28 सितंबर 2022 चतुर्थी (माँ कुष्मांडा): 29 सितंबर 2022 पंचमी (मां स्कंदमाता): 30 सितंबर 2022 षष्ठी (माँ कात्यायनी): 01 अक्टूबर 2022 सप्तमी (माँ कालरात्रि): 02 अक्टूबर 2022 अष्टमी (मां महागौरी): 03 अक्टूबर 2022 नवमी (मां सिद्धिदात्री): 04 अक्टूबर 2022 दशमी (माँ दुर्गा की मूर्ति का विसर्जन): 5 अक्टूबर 2022 माँ दुर्गा की कहानी | माता शेरावाली से जुड़े ख़ास रहस्य | Story of Maa Durgaकैलाश पर्वत के ध्यानी की अर्धांगिनी माता सती ही पुनः जन्में पार्वती के रूप में विख्यात हुई उन्हें ही कात्यायिनी,चंद्रघंटा,शैलपुत्री,महागौरी, ब्रह्मचारिणी, कूष्मांडा,स्कंदमाता,कालरात्रि,सिद्धिदात्री आदि नामों से जाना जाता रहा है। जिन्हें अब हम सभी माँ शेरांवाली दुर्गा माता,अम्बे, जगदम्बा आदि के नाम से जानी जाती है वे सदाशिव की अर्धांगिनी रही है। |
माता की कथा :
सतयुग के महाराजा दक्ष की पुत्री सती माता को शक्ति कहा जाता है। शिव के कारण उनका नाम शक्ति हो गया। परन्तु उनका असली नाम दाक्षायनी हुआ करता था। अपने पिता के मुँह से पति का अपमान सहन ना कर पाने के कारण वस यज्ञ कुंड में कुदकर आत्मदाह करने के कारण उन्हें सती माता भी कहा जाता है।
बाद में उन्होंने माता पार्वती के रूप में जन्म लिया। उनका पार्वती नाम इसलिए पड़ा की वे पर्वतराज अर्थात् पर्वतों के महाराजा की राजकुमारी थी। पिता की गैर इच्छा से उन्होंने हिमालय में ही रहने वाले योगी भोले शिव से विवाह कर लिया। एक यज्ञ करने करने के वक्त में जब दक्ष ने सती और शिव को न्यौता नहीं भेजा, उसके बाद भी माँ सती शिव के मना करने के बाद भी अपने पिता के यज्ञ में पहुंच जाती है,
लेकिन राजा दक्ष ने शिव के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें बोल डाली। यह सब सुनकर सती को बरदाश्त नहीं हुआ और वहीं उसी यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण को त्याग दिया। यह खबर सुनते ही शिव ने अपने सेनापति वीरभद्र को भेजा, जिसने राजा दक्ष का सिर काट डाला। और इसके बाद दुखी होकर सती के जले हुए शरीर को शिव अपने सिर पर धारण कर क्रोधित हो धरती पर घूमते रहे।
उस वक्त जहां-जहां सती के शरीर के अंग या फिर आभूषण गिरे वहां वहा पर बाद में शक्तिपीठ निर्माण किए गए है। जहां पर जो अंग या आभूषण गिरा ठीक स्थान पर शक्तिपीठ का नाम वहा पड़ा और धाम भी हो गया। इसका यह मतलब होता है कि माता एक रूप अनेक हो गई।
माता पर्वती ने ही शुंभ-निशुंभ, महिषासुर आदि राक्षसों का वध किया था।
माता का रूप :
माँ दुर्गा के एक हाथ में सुहेलमानी तलवार और दूसरे हाथो में कमल का फूल खूब मनलुभावन लगता है। माता पितांबर वस्त्रो से सुशोभित उनके सिर पर राज मुकुट, माथे पर श्वेत रंग में अर्थचंद्र तिलक एवं गले में मोतिओं मणियों का हार अधिक सुहावन लगता हैं। और माता शेरावाली शेर की सवारी करती है।
माता की प्रार्थना :
जो दिल से पुकारता है माता उसकी प्रार्थना। सुन लेती है न मंत्र, न तंत्र और न ही पूजा-पाठ। प्रार्थना ही सत्य पूजा है। मां की प्रार्थना या स्तुति के पुराणों के अनेको श्लोक बताये गए है।
माता का तीर्थ :
शिव का धाम कैलाश पर्वत माना जाता है वहीं से कुछ दुरी पर मानसरोवर के करीब ही माता का धाम है। जहां पर दक्षायनी माँ का मंदिर बिराजमान है। माँ वहीं पर साक्षात मानो की रहती है।
आरती श्री दुर्गा जी की
दुर्गा माँ बहुत सारे रहस्य की जानकारी
दुर्गा माता कौन थी?
नवरात्रि कैसे शुरू हुई?
नवरात्रि की कहानी क्या है?
मां दुर्गा का जन्म कैसे हुआ?
दुर्गा मां किसकी बेटी थी?
माँ शेरावाली के पति का नाम क्या है?
सती ने आत्मदाह क्यों किया?
बताया यह भी जाता है कि ब्रह्म पुत्र राजा दक्ष प्रजापति ने शिव को अपमानित करने के उद्देश्य से वहा पर शत कुंडी यज्ञ करवाया था। जिसमे बिना निमंत्रण पहुंची सती ने अपने पति के अपमान से विक्षुब्ध होकर यज्ञशाला में कूदकर अपने प्राणों की आहुति दे दिया था ।
सती के अंग कहाँ कहाँ गिरे?
प्रभास जूनागढ़ जिला गुजरात में देवी सती का आमाशय गिरा हुआ था और वहा पर चंद्रभागा के नामो से पूजी जाती हैं. भैरव पर्वत पर क्षिप्रा नदी के किनारे उज्जयिनी मध्य प्रदेश में देवी के ऊपरी होंठ गिरे हुए थे यहां वे अवंति नामो से मानी जाती हैं. जनस्थान नासिक महाराष्ट्र में देवी की ठोड़ी गिरी हुई थी जहा पर देवी भ्रामरी रूप में स्थापित हुईं है .