तरकुलही माई का स्थान | Tarkulha Devi Mandir

तरकुलहा माता मंदिर गोरखपुर जिले का सबसे प्रसिद मंदिर माना जाता है तरकुलही माई का स्थान चौरी-चौरा गोरखपुर के नजदीक ही में पड़ता है, इस मंदिर की मान्यता है कि अगर कोई ब्यक्ति सच्चे दिल से Tarkulha mata के दरबार में आकर कुछ भी मांगता है तो माता उसकी वह मनोकामना अवश्य पुरी करती है.लोगो का यह भी कहना है कि अगर आप माता के mandir में पहुंच कर कुछ मन्नते मांगते है तो मैया आपको निराश नहीं करेंगी और आप खाली हाथ नही लौटेंगे ।

यह बताना जरुरी हो जाता है की आप Tarkulha Devi Mandir कब कब आये यहां शारदिय नवरात्र मे तरकुलहा माता मंदिर मे भक्तो की लम्बी से लम्बी कतार में लाइन लग जाती है. इस मंदिर में गाव और दूर दराज के लोग और मंदिर के पुजारी भी सुबह उठ कर मंदिर की प्रतिदिन खूब सफाई किया करते है। उन सभी के ऊपर माता की कृपया हमेशा बनी रहती है वे बड़े आनंद में रहते है हर कोई tarkulaha mata ki kahani का खूब बखान किया करते है 

Tarkulha Devi Mandir

और तो और अभी हाल में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बाबा योगी आदित्यनाथ जी महाराज भी माता के दर्शन के लिये आये हुए थे और वहा के सुंदरीकरण के लिए 2 करोड रुपये का शिल्नयास भी किये उनके नेक कर्मो से अब tarkulha devi mandir की खुबशुरती और भी अधिक हो जायेगी माता के मंदिर को अब पर्यटक स्थल बनाया जा रहा है. जिससे इस मंदिर का और नाम सम्पूर्ण भारत में प्रचलित हो जाएगा और लोग माता की दर्शन के लिये दूर दराज से आने लगे है ।

तरकुलहा देवी की कहानी(tarkulaha mata ki kahani)

यह कहानी आजादी की लडाई से भी जोड़ती है इस कहानी के अनुसार इस मंदिर का योगदान है ऐसा सभी मानते है आजादी की लडाई से बहुत सी बाते जोड़ती है। किसी समय tarkulha devi मंदिर घना जंगल हुआ करता था. अब सारे पेड कट चुके है, इसे स्थान को हम तिर्थस्थल भी कह सकते है। यह तरकुलहा माता का मंदिर गोरखपुर शहर से करीब 22 किलोमिटर दुर में पड़ता है ।

>Tarkulha mata Mela तरकुलहा मेला 

>Tarkulha Temple का प्रसाद होता है मिट

>Tarkulha Mata Mandir Story in Hindi

>Tarkulha Devi Temple Gorakhpur 

tarkulha mandir में हर वर्ष नवरात्री मे बहुत भारी हर्षोउल्लाश से मेले का आयोजन किया जाता है, यहा पर दुर-दराज से बड़ी संख्या में लोग आते है. अगर आपके समच्छ हमारा यह पोस्ट जाये तो पढ़ लेना और लोगो से यहा पर आने के लिए जरूर कहिये और आपसे यह आग्रह है कि आप अगर उत्तर प्रदेश के है तो एक बार माता के मंदिर दर्शन के लिए जरुर आये.यह मेला नवरात्रि मे शुरु हो जाती है और करीब पुरे एक महिने तक चलती रहती है यह के मेले मे हर प्रकार की चिजे मिलती है और सर्कस इत्यादि भी होती रहती है।

Tarkulha Temple का प्रसाद होता है मिट

यह मंदिर बलिदानी से जुडा हुआ है आपने शायद ऐसा कहानी पहली बार सुने होंगे लेकिन यहा पर प्रसाद के रुप मे बकरे का मिट दिया जाता है.यहा लोग माता से अपने और अपने परिजनों के लिए मन्न्ते मांगते है और जब वह पुरी हो जाती है तब लोग यहा बकरे का मिट चढाते है. यहा पर एक और खासियत है केवल मिट्टी के बरतन मे वह मिट  बनाया जाता है यहा पर बनाये गए प्रसाद रुपी मिट बहुत स्वादिस्ट हो जाता है.पुराने समय में मंदिरो मे बलि की परम्परा थी लेकिन अब एक को छोड़के बाकि किसी भी मंदिर नही है लेकिन Tarkulha Devi Mandir मे अभी भी बलिदान की परम्परा मनाई जाती है ।

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  • चौरी चौरा नाम प्रसिद्ध स्थल कहाँ है
Tarkulha Devi Mandir


Tarkulha Mata Mandir Story in hindi 

 यह उस समय की बात है यही कोई 164 साल पुरानी बात है संन  1857 की है जब यहा पुरा जंगल से घिरा हुआ करता था और इसके आस-पास नजदीक कोई गाव नही हुआ करता था. डुमरी रियासत के बंधु सिंह (bandhu singh)माता जी के भक्त थे वे गुर्रा नदी के किनारे स्थान ग्रहण करके माता का ध्यान किया करते थे. बंधु सिंह जी  ने अंग्रेज सिपाहिओ के खिलाफ क्रांति छेड़ दिया था। बंधु सिंह एक छत्रिय थे उनका अग्रेजो के नाम से उनका खुन खौल उठता था. बंधु सिंह गुरिल्ला लडाई मे ज्ञाता थे और जंगल के हर एक रास्ते  को वे जानते थे।


जब अंग्रेज सेना जगल मे घुसते थे उन्हे मारने की कोशिश करते थे तो उन्होंने उस अग्रेज का सर काट कर माता के कदमो मे चढ़ा देते थे. अंग्रज सेना इस बात को समझ नही पाती थी की आखिर क्या कारण है जब जंगल में अग्रेज सैनिक जाते है तो वापस नही आते है. तब सब अग्रेज मिलकर जंगल मे बंधु सिंह को बहुत खोजा पर उनका कही पता नही चल सका उसके बाद किसी गुप्तचर की कारण उनका पता अग्रेजो ने लगा ही लिया।

तरकुलहा मंदिर अपनी विशेषताओ के कारण खूब प्रसिद्ध हैं।

उत्तर प्रदेश में तरकुलहा मंदिर है जहाँ पर प्रसाद के रूप में खसी का मटन चढ़ाया जाता हैं। बंधू सिंह जी ने अंग्रेजो का सिर काटकर बलि देने का जो परम्परा शुरू किया था वह आज भी वहा जारी हैं. इस समय यहाँ पर बकरे की बलि दी जाती है उसके बाद बकरे की  मांस को मिट्टी के बरतनों में पकाते है उसके बाद उस मिट को  प्रसाद के रूप में बाट दिया जाता हैं साथ में भौरी भी दी जाती हैं।

Tarkulha Devi history

अंग्रेजो ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और उनको फासी की सजा सुना दी बतया जाता है की जब बंधु सिंह को फासी दी जा रही थी तब फासी का फंदा कभी छोटा हो जाता था कभी टूट भी जाता था तकरीबन  6 बार फासी का फंदा टुट गया था और अंग्रेज हर बार नाकाम  हो जाते थे. अंत मे बंधु सिंह ने खुद माता से कहा कि उन्हे अपने शरण में स्थान दे उसके बाद अंग्रेजो ने उन्हे फासी दे दी । वहा पर बंधु सिंह की स्मारक भी बनायीं गयी  है।


अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया जहां उनको  फांसी की सजा सुना दी जाती है उन्हें 12 अगस्त 1857 को गोरखपुर के अली नगर चौराहा पर सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटकाया गया था ऐसा बताया जाता है


उसके बाद से ही तरकुलहा माता के मंदिर मे भक्तो का ताता लगा रहता है और यहां जो भी वहा आया उसकी मनोकामना पुरी हुई। लोग यहा अपने बच्चो का मुंडन करवाके लम्बी उम्र की मन्नते मांगते है माता उनकी मुरादे पूरी करती है, लोग वहा नयी वाहनो का पुजन इत्यादी भी कराते रहते है।


तरकुलही माई का स्थान


तरकुलहा माता हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में स्थित है। यहां पर तरकुलहा माता का मंदिर है जो कि बहुत ही प्रसिद्ध है और यहां पर बहुत सारे श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। माँ तरकुलहा की पूजा हिमाचल प्रदेश में विशेष रूप से कुल्लू जिले के लोगों द्वारा की जाती है।


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