कलिंग राज्य के राजा यशोधरा के घर में एक बेटी का जन्म हुआ। जिसका नाम सुचिमा था । वे बड़ी सुंदर , सुशील और भग्यशाली थी । उसके इन गुणों के कारण चर्चा घर - घर होती रहती थी । सुचिमा बड़ी हो गई , तो राजा को उसके विवाह की चिंता सताने लगी । यूँ तो हजारों युवक सुचिमा से विवाह करने के इच्छुक थे , परन्तु उनमें से राजा को कोई भी पसंद नहीं आता था ।
यदि कोई लड़का यशोधन को पसंद आ जाता , तो वह सुचिमा को पसंद नहीं आता था । इस प्रकार सुचिमा का विवाह राजा के लिए चिंता का विषय बन गया । वह दिन - रात इसी उलझन में खोए रहते । एक दिन यशोधन के गुरु महल में पधारे । राजा ने उन्हें अपनी समस्या बताई । " बस , इतनी - सी बात के लिए दुखी हो ? " -राजा की बात सुनकर गुरुदेव हँस पड़े- “ इसका इलाज बहुत आसान है !
सुचिमा के शादी के लिए स्वयंवर रचा दो । स्वयंवर के द्वारा जो वर सुचिमा को मिलेगा वह उसके बिलकुल लायक होगा । स्वयंवर के लिए क्या शर्त रखा जाय गुरुदेव ! राजा ने पूछा । गुरुदेव कुछ सोचते हुए बोले सारे देश में घोषणा कर दो , दक्षिण में एक जंगल है । उसके बीच से जो रास्ता जाता है , उसका अंत एक गुफा पर होता है ।
उस गुफा में अनमोल खजाना है । खजाने तक पहुँचने के लिए तीन दरवाजों से गुजरना पड़ता है । जो युवक उन तीन दरवाजों से गुजरकर वह अनमोल खजाना लाएगा , उसका विवाह राजकुमारी सुचिमा के साथ कर दिया जाएगा । " " यह तो बहुत अच्छी बात है । " -राजा की आँखें खुशी से चमकने लगीं । उसने तुरंत घोषणा करने का आदेश दे दिया ।
घोषणा सुनते ही राजकुमारी सुचिमा से विवाह करने के इच्छुक नवयुवक खुशी से झूम उठे । वे उस अनमोल खजाने की खोज में अलग - अलग चल पड़े । परन्तु खजाने तक पहुँचने का रास्ता इतना आसान नहीं था । वह बड़ा ही भयानक जंगल था । जंगली जानवरों की भरमार थी ।
कदम - कदम पर विषैले कीड़े - मकोड़े रेंगते थे । जानवरों और कीड़ों से बचते हुए रास्ता ढूँढ़ना बहुत कठिन था । जो युवक उस खजाने की खोज में निकले थे , वे जंगल में पहुँचते ही जंगली पशुओं से डरकर या घायल होकर लौट आए । कुछ आगे बढ़े भी , तो जा न सके , क्योंकि जहाँ वह जंगल समाप्त होता था
वहाँ तेजी से बहने वाली एक नदी थी । उसमें बड़े - बड़े घड़ियाल थे । उस नदी में पानी का बहाव इतनी तेज हुआ करता था इस नाते वहाँ उसमे नाव को चलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था। उस नदी को तैरकर पार करने के अलावा कोई दुसरा चारा नहीं था । परन्तु नदी में उतरना अपनी मौत को निमंत्रण देने के समान था । घड़ियाल नदी में उतरने वाले पर टूट पड़ते थे । और उसे चट कर जाते थे ।
यह देख , सभी हिम्मत हार गए । कलिंग में ही बालेन्द्र राजभर नाम का एक बहादुर नवयुवक भी रहता था । उसने घोषणा सुनी , तो उसके मन में भी राजकुमारी को पाने की इच्छा जागी । वह उस अनमोल खजाने को लाने के लिए निकल पड़ा । जंगल से गुजरते हुए उसे भी उन्हे सारी मुसीबतों से गुजरना और करना पड़ा उनको रास्ते में एक जगह एक साँप ने डस लिया था बड़ी मुश्किल से काफी झारफुक उनका विष उतारा ।
आगे एक शेर ने उस पर आक्रमण करके बुरी तरह घायल कर दिया । फिर भी मुसीबतों को झेलता , वह किसी तरह नदी के किनारे पहुँच गया । नदी के किनारे पहुँचते ही उसे नदी में कई घड़ियाल तैरते नजर आए । परन्तु उसने हिम्मत दिखाई । अपनी तलवार मजबूती से थाम , वह नदी कूद गया । नदी में कूदते ही उस पर कई घड़ियालों ने हमला कर दिया । बालेन्द्र अपनी तलवार से उन्हें मारने - भगाने लगा । वह तैरता हुआ आगे भी बढ़ता गया ।
उसे एक - दो जगह घाव भी लगे । आखिर वह नदी के दूसरे किनारे पर पहुँच ही गया । नजर नदी के दूसरे किनारे पर उसे एक बड़ा - सा महल नजर आया । वह महल की ओर बढ़ा । महल के दरवाजे पर उसे एक आई । उस पर लिखा था- ' इस महल की हर चीज का मालिक में है । मेरी अनुमति के बिना कोई भी इस महल की किसी भी चीज को छूने या उठाने का प्रयत्न न करे ।
उन शब्दों को पढ़ता , यह महल के भीतर गया , तो उसकी आँखें आश्चर्य से फटी की फटी रह गई । महल में चारों ओर हीरे - मोती और सोना - चाँदी के ढेर लगे थे । उनकी रक्षा करने वाला वहाँ कोई भी नहीं था । महल के बाहर एक नाव थी । कोई भी उन हीरे - मोतियों को चुराकर , उस नाव द्वारा आसानी से भाग सकता था । परन्तु इस बारे में सोचा भी नहीं । वह आगे बढ़ा रास्ते में उसे एक बुढ़िया मिली ।
वह बुढ़िया सख्त घायल थी । बालेन्द्र से बोली- " बेटा , एक सांड ने मुझे बुरी तरह घायल कर दिया है । घावों में सख्त पीड़ा हो रही है । मेरी सहायता करो । " बुड़िया का कष्ट देखकर बालेन्द्र बहुत दुखी हुआ । वह भूल गया कि वह वहाँ किसलिए आया है वह बुढ़िया को उठाकर लेकर जाकर उसकी कुटिया में ले गया जो करीब ही थी । बुढ़िया को बिस्तर पर लिटाकर वह जंगल से जड़ी - बूटियां जमा करने लगा , जिससे बुढ़िया का इलाज कर सके ।
जड़ी - बूटियों से उसने हम बनाया और उसे बुढ़िया के घावों पर लगाया । उससे बुढ़िया को आराम मिला । वह बुढ़िया की सेवा में लगा रहा । जब बुढ़िया अच्छी हो गई तो उससे विदा लेकर आगे चल दिया । रास्ता समाप्त होने पर सामने ही गुफा में वह अनमोल खजाना था ।
वहाँ बालेन्द्र को वे तीन दरवाजे कहीं नजर नहीं आए , जिनसे गुजरकर खजाने तक पहुंचना था । वह गुफा में पहुंचा , तो उसे गुफा में कोई खजाना तो नहीं मिला । केवल एक पुस्तक मिली , जिस पर लिखा था- " मैं ही अनमोल खजाना हूँ । " बालेन्द्र उस पुस्तक को लेकर लौट चला । महल तक पहले ही खबर पहुँच चुकी थी कि एक नवयुवक राजा का इच्छित अनमोल खजाना लाने में सफल हो गया है ।
महल में उसके स्वागत की तैयारियाँ होने लगीं । बालेन्द्र महल में पहुँचा , तो राजा यशोधन और राजकुमारी सुचिता ने उसका स्वागत किया । वहाँ गुरुदेव भी उपस्थित थे । बालेन्द्र ने वह पुस्तक राजा को दे दिया फिर आपबीती बता दिया । की यही वह अनमोल खजाना है यशोधन तब बालेन्द्र की बात सुनकर गुरुदेव मुसकराकर बोले- " यह नवयुवक सुचिता से विवाह करने के योग्य है । " " परंतु गुरुदेव ! " -राजा आश्चर्य से बोले- " यह नवयुवक तो उन तीन दरवाजों से गुजरा ही नहीं , जिनकी चर्चा आपने की थी ।
भला , यह पुस्तक अनमोल खजाना कैसे हो सकती है ? " " यह युवक उन तीन दरवाजों से गुजर चुका है राजन ! ये पुस्तक अपने आप में अनमोल खजाना है । इस पुस्तक का नाम जीवन है गुरुदेव ने बोला मैं समझा नहीं गुरुदेव । " यह युवक जिन तीन दरवाजों से गुजरकर इस अनमोल खजाना यानी जीवन तक पहुँचा , वे थे - वीरता , ईमानदारी और दयालुता । " सब गुरुदेव का मुँह देख रहे थे ।
गुरुदेव कहने लगे- खतरनाक जंगल और अनेक घड़ियालों का मुकाबला कर लेने यह बालक नदी के किनारे आ पहुँचा । यह कार्य केवल उसने अपनी वीरता दिखने के लिए ही किए है। फिर उसे एक महल मिला , जिसमें हीरे - जवाहरात और सोने - चांदी के ढेर लगे थे । यदि यह चाहता , तो वहाँ से ढेर सारे हीरे मोती लाकर अपना जीवन संवार सकता था ।
परन्तु इसने उन्हें छुआ भी नहीं , क्योंकि वे किसी दूसरे के थे । यह इसकी ईमानदारी थी । आगे इसने एक बुढ़िया की सेवा की । यदि इसके स्थान पर कोई दूसरा होता , तो बुढ़िया के पीछे अपना समय नहीं गंवाता । यह इसके दयालु होने का उदाहरण है । जिन इन्शान में यह तीन गुण हों वह ब्यक्ति दुनिया में सब कुछ कर सकता इस नाते यह सुचिता का पति बनाने लायक है अब सबकी समझ में गुरुदेव की बात आ गई । राजा - रानी दोनों सुचिता और समीर के विवाह की तैयारी में लग गए ।