एक छोटे - से राज्य में विलासपुर नाम का कसबा था । पूरे कसबे में बच्चों के पढ़ने के लिए एक ही स्कूल था ' विद्या मंदिर ' । इसमें अमीर हो या गरीब , सभी प्रकार के बच्चे पढ़ने आते थे । इसकी ख्याति इतनी थी कि आसपास के गांवों या कसबों से भी बच्चे पढ़ने आते थे ।
इस विद्यालय का नाम ऊँचा उठाने में मास्टर आदर्श नारायणजी का बहुत बड़ा हाथ था । वह सही मायने में एक आदर्श शिक्षक थे । वह बड़ी लगन से मेहनत से बच्चों को पढ़ाया करते थे। बड़े बढ़िया बात है उन्हें प्यार भी बहुत किया करते थे । इस कारण पुरे स्कूल में सभी उनसे बहुत प्यार किया करते थे । परन्तु इधर कुछ महीने से मास्टर आदर्श जी थोड़ा परेशान रहा करते थे ।
उनकी कलास में एक नया बच्चा आ गया था । उस छात्र नाम ' नवीन था ' । उसको अभिवादन करना तो छोडो , कलास में गुरु जी को प्रवेश करने पर भी वह अकड़कर शान से अपने ही सीट पर बैठा हुआ रहता । अन्य छात्रों पर भी अपनी हेकड़ी जमाता । उसके कपड़े व जूते भी काफी कीमती दिखते थे ।
नवीन के बारे में उन्होंने प्रधानाचार्य से पता किया , तो मालूम हुआ कि वह पास के गाँव के एक बहुत बड़े जमीदार चौधरी मगनसिंह का इकलौता बेटा है । वह जमींदार भी बहुत गुस्से वाला और खैराटी अड़ियल था ।
अतः प्रधानाचार्य ने मास्टर आदर्श नारायण से बोला- " मास्टर जी । इस बालक के साथ सावधानी बरता करे सही से पेश आया करे और इसकी सभी हरकतों को नजर अंदाज किया करें । इसके पिता की पहुँच बहुत ऊपर तक है । " लेकिन मास्टर आदर्श को यह मंजूर नहीं था , उन्होंने कहा , " यह विद्या मंदिर है । यहाँ कोई अमीर या गरीब नहीं । यहाँ सब छात्र बराबर हैं ।
अगर वह अपने गुरु की सम्मान नहीं करेगा तो तालीम कैसे प्राप्त कर पायेगा ? " अगले वाले दिन उन्होंने जब कक्षा में प्रवेश किया तो नवीन उसी तरह से ठीठ होकर बैठा रह गया , जबकि और शिष्य उठ खड़े हो गए । मास्टर जी ने बोला " बेटे नवीन , तुम भी अपने सभी दोस्तों के जैसे खड़े हो जाया करो । "
परन्तु नवीन ठीक वैसे ही बैठा रहा और कहा- " मास्टर जी । आप जानते नहीं हो , हम कौन है ? इस जगह के सबसे बड़े जमींदार का बेटवा हूँ । लोग मुझे देखकर खड़े हो जाते हैं । आप अपना काम करें ! " नवीन के बातो को सुनकर मास्टर का चेहरा बिलकुल गुस्सा हो उठे उन्होंने उसे कलास से जबरदस्ती उठाकर बाहर का रास्ता दिखा दिया ।
नवीन गुस्से में पाँव पटकता हुआ कक्षा से बाहर निकल गया । अगले दिन प्रधानाचार्य गिरीश बाबू ने मास्टरजी को बुलाया । घबराते हुए कहा- " मास्टर जी , गजब हो गया । आपने शेर की मांद में हाथ डालकर बहुत बुरा किया । मैंने आपको पहले ही आगाह किया था । चौधरी साहब बहुत गुस्से में हैं ।
उन्होंने कहा है कि वह आपको बर्बाद कर देंगे । " मास्टरजी को गुस्सा तो पीकर रह गया । आखिर प्रधानाचार्य जी द्वारा खूब मिन्नतें करने पर बहुत आया , लेकिन वह खून का घूंट मास्टर जी किसी प्रकार नवीन की उद्दंडता को अनदेखी करने को मान गए ।
लेकिन बात यहीं तक नहीं थी । नवीन मास्टर जी की पढ़ाई गई बातों पर ध्यान भी नहीं देता था । न ही पुस्तक पढ़ता । न कापी में कुछ लिखता । मास्टरजी कुछ पूछते तो हँसता रहता । परीक्षा के दिन भी आ गए । नवीन ने कापी में कुछ नहीं लिखा था ।
मास्टर जी ने प्रधानाचार्य जी के मना करने पर भी उसे फेल कर , दिया । अगले ही दिन स्कूल में चौधरी साहब गुस्से से फुफकारते हुए आए और मास्टर जी को बहुत डाटा । परन्तु मास्टर निर्भीक व शांत खड़े के खड़े रह गए । उन्होंने इतना ही बोला- " मैंने अपना कर्तव्य का पालन किया है । आप चाहे जो कहे या फिर करे । "
उसके बाद चौधरी जी ने स्कूल के प्रधानाचार्य से एकांत में ले जाकर कुछ बातें कही । तबसे एक - दो दिन तक नवीन स्कुल में नहीं आया था । तीसरे दिन पता चलता है कि प्रधानाचार्य द्वारा नवीन को जबरदस्ती पास कर दिया जाता है और गुरु जी को स्कूल से निकाला जा रहा था। सभी लोग परेशांन थे पर गुरु जी शांत थे ।
उन्हें कोई पछतावा नहीं था । उन्हें केवल दुःख इस बात का था कि प्रधानाचार्य किसी के दवाब व धमकी के डर से गलत काम करने को मजबूर हो गए । अगले दिन मास्टर जी चुपचाप स्कूल आते और पढ़कर चले जाते । पूरे स्कूल में मास्टर जी के चले जाने की बात को लेकर दुःख का वातावरण फैला हुआ था । आज अंतिम दिन था ।
सभी बच्चे व शिक्षक उदास थे । लेकिन मास्टर जी स्थिर व शांत थे । हाँ , उनमें उत्साह नहीं था । वह रोज की तरह आज भी चुपचाप स्कूल आए । शाम के वक्त उनकी विदाई का कार्यक्रम था । बच्चे उपहार स्वरूप अपने प्रिय शिक्षक को देने के लिए कुछ न कुछ भेंट लाए थे ।
मास्टर जी तन्मयता से पढ़ाने जुटे थे । हालांकि बच्चों का मन नहीं लग रहा था , फिर भी वे मास्टर जी द्वारा पढ़ाई गई बातों को ध्यान से सुन और लिख रहे हुए होते है । केवल नवीन हमेशा के जैसा कलास में ढीठ हो चुका था और बैठा-बैठा , अपनी मेज पर गोलिया खेल रहा होता है । स्कुल में पढ़ाई चल ही रही थी कि एकाएक बाहर की तरफ से कुछ शोर गुल सुनाई देने लगी ।
स्कूल के परिसर में घोड़ों की टापों की आवाज भी आने लगी । कुछ समझ में आता कि कई डाकू कक्षा में घुस आए और बंदूक तानकर खड़े हो गए । डाकुओं के सरदार के सिर पर लाल रंग का रूमाल बंधा था । डाकू माखन सिंह की यही पहचान थी । वह इस इलाके का खूंखार डाकू था ।
डाकू मास्टर जी ने उसका हुलिया देखकर उसे पहचान लिया था लेकिन वह डरे नहीं । उन्होंने कहा- " माखनसिंह , यहाँ क्यों आए हो ? यह तो विद्या मंदिर है । यहाँ धन नहीं विद्या का भंडार है । " डाकू हंसकर बोला- " ठीक पहचाना मास्टर माखनसिंह हूँ ।
यहाँ पर धन लूटने आया हूँ । यह मेरा करोड़ों का सम्प्पति । " यह बोलकर उसने दौड़कर नवीन को पकड़ लेता है फिर उस पर बंदूक तानकर कहने लगा- “ मैं इसको अगवा कर ले जा रहा हूँ । इसका बाप बहुत पैसे वाला है । उससे कहना कल तक 50 लाख रुपए पीछे के जंगल में लेकर , रात के बारह बजे के पहले पहुँच जाए , अनंथा उसके बेटे को मौत के घाट उतार देंगे। "
मास्टर जी सकते में आ गए । अचानक उन्होंने कुछ सोचा और बिजली की फुर्ती से सरदार की ओर जा खड़े हुए- " ठहरो । " - गुरु जी ने घुड़कते हुए बोला- " मैं इस बच्चे का शिक्षक हूँ । कम से कम आज तक इसकी सारी जिम्मेदारीया हमारे ऊपर ही है । अपने छात्र की रक्षा करना हमारा फर्ज है । तुम हमारे ज़िंदा रहते हुए इसे नहीं ले जा पाओगे । "
डाकू खिखिलाते हुए बोला- " मास्टर , तू हमारा रास्ता रोकने का हिम्मत कैसे कर रहा है । तुन्हे तो कलम पकड़ना आता है , तलवार चलना नहीं । तुम अपनी पढ़ाई को देख और खैर मना । " " चाहे मेरी जान चली जाए पर आज मैं इसे ले जाने नहीं दूँगा । " -
यह कहते ही मास्टर जी ने सामने मेज पर रखा लोहे के मूठ वाला भारी डंडा उठाकर डाकू के सिर पर दे मारा । यह सब इतना अचानक हुआ कि सरदार भोचक्का रह गया और घड़ाम से नीचे गिर पड़ा । उसके हाथ से बंदूक छूट गई । उसे मास्टर से ऐसी उम्मीद नहीं थी । उसके दो साथियों ने बंदूक उठाकर मास्टर जी पर गोली चलाई चूँकि ऐन मौके पर मास्टर जी झुककर अपना डंडा उठाने लगे , अतः निशाना चूक गया । इससे डाकू बौखला गए ।
गुरु जी ने बड़ी फुर्ती से सरदार पर एक और झटहा जमा दिया उसका सिर फुट गया । मुड़वा से खून बहने लगा डाकू सरदार जी बेहोश हो गए ऐसा देख , उसके साथी भागने लगे । जाते - जाते उन्होंने मास्टर जी घर गोली दागी । मास्टर जी के हाथ में गोली लगी । वह गिर पड़े । तब तक स्कूल के अन्य शिक्षक भी दौड़े - दौड़े आए और डाकू - डाकू चिल्लाने लगे । बच्चे घबराकर रोने लगे ।
किसी ने पास के पुलिस थाने में खबर कर दी । पुलिस भी आ गई । घायल भागते सरदार को पकड़ लिया । मास्टर जी को अस्पताल ले जाया गया । शाम के समय पुरे बच्चे , और उनके माता - पिता , अध्यापक आदि ने उन्हें आंसू भरी निगाहो से देखने आये हुए थे ।
मास्टर जी की मरहम - पट्टी हो गया और वे थके - थके , कमजोर से हो गए थे बिस्तर पर पड़े हुए थे । उन्होंने पुरे बच्चों के तरफ देखा और बोला- " नवीन ठीक तो है ? " उनके यह बोलते ही दरवाजे के पीछे छिपा हुआ नवीन तेजी से दौड़कर आया फिर गुरु जी के पैरों पर गिर पड़ा फिर । जोर जोर से रो - रोकर कहने लगा- ' " हमको माफी देदो गुरु जी , हमने आपका निरादर करके बहुत दिल दुखाया है। "
गुरु जी ने उसको तुरंत उठाकर अपने गले से दबका लिया । बोला - “ नवीन ! आज मैं जा रहा हूँ । मैं तुमसे गुरु दक्षिणा के रूप में एक ही चीज माँगता हूँ । " " बोलिए मास्टर जी , आपको क्या चाहिए ? हम गुरदेव आपके कदमों में धन और खजानो का ढेर लगा देंगे । " - नवीन ने बोला । " पगले ! मुझे धन की लालच नहीं । बस तुम , आज से पढ़ने और लिखने में मन लगाओ । शिक्षा कोई खेल नहीं । सांसारिक दौलत कुछ पल भर का होता है , लेकिन विद्या तो जीवनभर साथ रहती है । यही सबसे बड़ा धन है । " - मास्टर जी बोले । .
गुरु जी , अब से हम यही करूँगा , परन्तु मेरी भी एक पण है । आप इस स्कूल को छोड़कर आप कहीं नहीं जायेंगे । " - नवीन ने बोला ।" नवीन ठीक कह रहा है मास्टर जी ! आप इसी स्कूल में रहेंगे । " - कहते हुए हाथ जोड़े हुए चौधरी साहब ने प्रवेश किया । साथ में प्रधानाचार्य जी भी थे । " हमारी गलतियों के लिए हमें क्षमा करें ।
अपने प्राणों की बाजी लगाकर हमें गुरु के महत्व को समझा दिया । आज हमारी आँखें खुल गई हैं । आप स्कूल छोड़कर कहीं नहीं जायेंगे , यह हमारी विनंती है ।''- इस पर गुरु जी के चारा ना रहा। सारे बच्चों के चेहरे खुशी की एक लहार दौड़ गई सभी झूम उठे ।