एक कहानी दादी सुनाती थी । कहानी है एक माँ की । अनेक वर्ष बीत गए इस बात को । उस माँ का एक ही बेटा था । वह भी बहुत आलसी । माँ उसको हांस कहकर बुलाती । वह चौदह वर्ष का हो गया था , परन्तु काम से जी चुराता । पढ़ा - लिखा न था । घर में पड़ा रहता । एक दिन उसकी माँ ने कहा " हांस , जाओ , मेरे लिए नदी से पानी भरकर लाओ । " " मेरी तबीयत ठीक नहीं है । " -
लड़के ने बहाना बनाया । माँ उसके इस आलसीपन से बहुत तंग आ चुकी थी । उसने तुरन्त एक छड़ी उठाई । उसे धमकाते हुए कहा - " यदि आज तुमने मेरा कहना न माना , तो मैं तुम्हें कड़ी सजा दूँगी । " माँ के गुस्से से हांस घबरा गया । धीरे से उसने मटका उठाया और नदी से पानी भरने चल पड़ा । उसे काम की आदत तो थी नहीं । वह रास्ते में एक जगह बैठ गया । थोड़ा आराम करने के बाद वह आगे बढ़ा , फिर बैठ गया । इस तरह रुकता - रुकता वह नदी तट पर पहुँच गया ।
नदी में मटका छोड़ , काफी देर बाद मटका नदी से बाहर निकाला । मटके में एक सुनही मछली देख , वह चकित रह गया । ' माँ खुश होगी । सोचेगी , बेटा उसके लिए ऐसी सुंदर मछली पकड़ कर लाया है । ' - हांस ने मन ही मन सोचा । - वह पानी लेकर चलने लगा । अचानक मछली ने मनुष्य की आवाज में कहा - " मुझे वापस जल में छोड़ दो । " " यह कैसे हो सकता है ? " - हांस ने उत्तर दिया- " तुम अपने आप मटके में आई हो । अब मैं तुम्हें नहीं छोड़ेगा । "
“ मुझे वापस जल में जाने दो । बदले में तुम तीन बार जो कुछ चाहोगे , तुम्हें मिल जाएगा । " - मछली बोली । यह सुन , हांस ने उसकी बात मान ली । उसने सुनहरी मछली को फिर से पानी में छोड़ दिया । मछली तैरती हुई किनारे से दूर निकल गई । अब हांस ने अपनी पहली इच्छा पूरी करनी चाही । उसने एक घोड़ा गाड़ी मांगी , जो उसे घर तक ले जाए । जैसे ही उसने यह इच्छा की , फौरन एक घोड़ा गाड़ी उसके सामने आ खड़ी हुई । उस पर रंग बिरंगे कपड़े पहने कोचवान बैठा था । हांस जल्दी से गाड़ी में बैठ गया । साथ में उसने पानी भरा मटका भी रख लिया ।
तभी कोचवान का कोड़ा हवा में लहराया । घोड़े की टापें पथरीली जमीन पर गूंज उठीं । हांस यह सब देखकर दंग रह गया । वह अपनी दूसरी दोनों इच्छाओं के बारे में बिलकुल भूल गया । घोड़ा गाड़ी भागती जा रही थी । मार्ग में गांव के जमींदार की हवेली पड़ती थी ।
जब हांस हवेली के सामने से गुजरा , जमींदार की लड़की हांस को बुरी तरह घबराया देखकर हंस पड़ी । उसे लड़की पर गुस्सा आ गया । उसने अनजाने में अपनी दूसरी इच्छा प्रकट कर दी ' तुम इस समय मेरी हंसी उड़ा रही हो , पर तुम्हें इसका फल भुगतना पड़ेगा । घटना को एक वर्ष बीत गया । यह बात अब हांस भी भूल गया था । एक दिन हवेली के बड़े आंगन में जमींदार की लड़की को एक बालक खेलता हुआ मिला । उसका मुख चंद्रमा की तरह दमक रहा था ।
शाम होने तक वह वहीं खेलता रहा । यहाँ तक कि जब रात घिर गई , तब भी वह अपने घर नहीं लौटा । वह हवेली को अपना घर बताने लगा । कई दिनों तक उसे कोई वापस लेने भी न आया । वह जमींदार की लड़की से बहुत अधिक हिल - मिल गया । वह भी उसे भाई की तरह प्यार करने लगी थी । कुछ समय बाद जमींदार ने अपनी बेटी का विवाह करना चाहा । उसने शर्त रखी , जिसे भी घर का यह नन्हा बालक अपने हाथ का सेब दे देगा , वही उसकी लड़की का पति होगा ।
लोगों को लड़की के प्रति इतना मोह नहीं था । वे तो जमींदार की अपार धन - सम्पत्ति चाहते थे । वे जानते थे , जमींदार की मृत्यु के बाद सारा कुछ उसकी इकलौती बेटी के पति को ही मिलेगा । वे जमींदार के घर की ओर चल पड़े । कुछ लोग ऐसे भी थे , जिनको जमींदार की यह शर्त अजीब लगी ।
वे उत्सुकतावश यह तमाशा देखने के लिए चल पड़े । ऐसे लोगों में हांस भी एक था । वह बिलकुल नहीं बदला था । अब भी उतना ही आलसी था , जितना पहले । हवेली में वर तलाशने की सब तैयारियाँ हो चुकी थीं । नन्हे बालक के हाथ में एक सेब था । वह सबको देखकर हैरान खड़ा था । परन्तु सेब किसी को देने के लिए तैयार नहीं था ।
हांस को वहाँ बैठा देखकर जमींदार को गुस्सा आ गया । परन्तु जैसे ही छोटे लड़के ने उसको देखा , वह भागा हुआ उसके पास पहुँचा । सेब उसे पकड़ा दिया । लड़के की इस हरकत से जमींदार चीखने लगा । वह आलसी और गंवार हांस की शक्ल नहीं देखना चाहता था , पर क्या करता ? शर्त के अनुसार उसे अपनी बेटी का विवाह हांस से करना पड़ा ।
जमींदार दोबारा हांस की शक्ल नहीं देखना चाहता था । इसीलिए हांस अपनी पत्नी और उस लड़के को ले , दूर के एक टापू पर चला गया । कुछ दिन पहले उसकी माँ का स्वर्गवास हो चुका था । टापू पर उन्हें खाने के लिए बहुत कठिनाई से कुछ मिलता । रहने के लिए एक टूटा हुआ छोटा - सा घर था । हांस ने यहाँ आकर भी अपना आलस न छोड़ा । वह अधिकतर समय घर में ही पड़ा रहता ।
एक दिन उसकी पत्नी को एक बात सूझी । उसने हांस से उसके जीवन के बारे में सब कुछ जानना चाहा । वह सोचती थी , शायद इस तरह उसे कोई उपाय समझ में आ जाए । हांस ने पत्नी को अपने जीवन की सारी कहानी कह सुनाई । साथ में यह भी बताया कि कैसे वह काम से जी चुराता रहा है ।
उसकी इस आदत से उसकी माँ कितनी दुखी थी । अंत में उसने पत्नी को सुनहरी मछली की कहानी सुनाई । बताया कि मछली ने उसकी तीन इच्छाओं को पूरा करने की बात कही थी । सुनकर उसकी पत्नी की आँखें चमकने लगीं । वह जान गई कि हांस ने दो बार जो चाहा , उसे मिला । अब केवल एक ही इच्छा बाकी रह गई है । उसने पति से कहा - " चिंता न करो । सब ठीक हो जाएगा ।
तुम अपनी अंतिम इच्छा में , अपने आलस को त्यागने की कामना करो । " हांस ने ऐसा ही किया । उसी क्षण वह एक मेहनती नौजवान में बदल गया । अब वह कठिन से कठिन काम करने के लिए तैयार था । उसने दिन - रात मेहनत की । कुछ ही वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद उसने टापू पर एक सुंदर घर बना लिया ।
एक घोड़ा गाड़ी का प्रबंध कर लिया । उसके घर के चारों और सुंदर बाग - बगीचे थे । अब हांस का परिवार पूरी तरह सुखी था । एक दिन वह अपनी पत्नी और लड़के को लेकर जमींदार के घर पहुंचा । उनका वैभव देखकर जमींदार दंग रह गया । जब उसे हांस की मेहनत और लगन के बारे में पता चला , तो वह बहुत खुश हुआ । उसने हांस का स्वागत किया ।
उससे सपरिवार हवेली में ही रहने की प्रार्थना की । परंतु हांस ने कहा - " नहीं , धन्यवाद ! मेरे पास अपनी मेहनत से बनाया सुंदर घर है । फिर आपके घर में क्यों रहूँ ? " ससुराल में एक दिन ठहरकर वह वापस चला गया ।