योगिनी एकादशी व्रत के नियम | How to observe Yogini Ekadashi Vrat

 


आषाढ़ कृष्ण एकादशी को योगिनी एकादशी के रूप में जाना जाता हैं। हर एक शाप पाप का हो जाता है यह  व्रत करने वालो का निवारण


योगिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा-अर्चना किया जाता है। पंचांग के हिसाब से , यह एकादशी आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी पड़ा  करती है। यह भी मानते है कि योगिनी एकादशी का व्रत करने से सम्पूर्ण पाप नष्ट हो जाया करते  हैं। उसके  अलावा मान्यता यह भी होता है कि इस व्रत के प्रभाव से किसी के दिए हुए श्राप दोख से निवारण मुक्ति मिल जाता है। 

योगिनी एकादशी तिथि 


पंचांग के हिसाब से इस साल 2022 में योगिनी एकादशी 24 जून, शुक्रवार को पड रहा है। एकदशी तिथि का सुरु 23 जून को रात 9 बजकर 41 मिनट से हो रहे है। जबकि एकादशी दिन की समाप्ति 24 जून को रात 11 बजकर 12 मिनट पर हो जाएगी । एकादशी व्रत का पारण 25 जून को सुबह 5 बजकर 41 मिनट के बाद एवं 8 बजकर 12 मिनट से बीच किया जाएगा । पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्ति होने का वक्त  सुबह 5 बजकर 41 मिनट होने जा रही है।  


योगिनी एकादशी व्रत पूजा विधि 


अन्य एकादशी व्रत के जैसे ही योगिनी एकादशी व्रत का नियम एक दिन पहले यानीकि दशमी से ही चालू हो जाता है। ऐसे में दशमी दिन की रात से ही गेहूं जौ,और मूंग की दाल से बना भोजन नहीं करना चाहिए । साथ ही व्रत के तिथि में नमक वाले भोज्य पदार्थ का सेवन नहीं करना चाहिए । एकादशी के दिन सुबह स्नान के बाद व्रत का संकल्प ले लिया जाता है। उसके बाद में पूजा जगह पर भगवान विष्णु की प्रतिमा रखकर पूजा करना चाहिए । पूजन के वक्त भगवान विष्णु को पीली मिठाईयों और पीले फूल का चढ़ाया जाता है। पूजा समाप्त होने के बाद में मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की आरती किया जाता है।


योगिनी एकादशी व्रत का महत्व


धार्मिक मान्यतानुसार योगिनी एकादशी का व्रत करने से भविष्य में सुख-समृद्धि और सुखी जीवन की प्राप्ति होती है। यह भी बताया जाता है कि योगिनी एकादशी का व्रत तीनों लोकों में खूब प्रसिद्ध माना है। मान्यता यह भी है कि योगिनी एकादशी का व्रत हमेशा करने से बहुत अधिक पुण्य के भागी हो जाते है। 


योगिनी एकादशी की व्रत कथा


स्वर्ग के अलकापुरी नामक नगरी में कुबेर नाम का राजा रहता था। वह शिव का बहुत बड़ा उपासक था। हेम नामक माली उनके यहाँ पूजन के लिए फूल लाया करता था। हेम की पत्नी विशालाक्षी थी । वह बहुत सुंदर और शुशील स्त्री थी। एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प तो लेकर आया परन्तु मन भटकने की कारण से वो पत्नी को देखकर कामासक्त हो गया और उसके साथ रमण करने लगता है । उधर पूजा में देरी होने के चलते राजा कुबेर ने सेवकों से माली के न पहुंचने का वजह पूछा तो सेवकों ने राजा को पूरी बात सच-सच बता दिया। यह सुनकर कुबेर बहुत क्रोधित हो गए और उन्होंने माली को श्राप दे डाला ।


माली को राजा कुबेर दिया श्राप


गुस्से में कुबेर ने हेम माली से बोला कि तूने कामवश होकर भगवान शिव का अनादर कर दिया है। मैं तुझे श्राप दे देता हूं कि तुझे स्त्री का वियोग सहना पडेगा  और तू  मृत्युलोक(पृथ्वी)में जाकर कोढ़ी बन जाएगा ।राजा कुबेर के श्राप से हेम माली का स्वर्ग से पतन हो जाता है और वह उसी क्षण पृथ्वी पर गिरता है । पृथ्वीलोक में गिरते ही उसकी पूरी शरीर में कोढ़ हो जाता है । वह कई वर्षो तक ये दु:ख भोगता रह गया ।


मार्कण्डेय ऋषि ने बता दिया कुष्ठ रोग का उपाय


एक दिन वह घुसकते-घुसकते मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम के समीप पहुंच गया। उसे देखकर मार्कण्डेय ऋषि बोल पड़े की तुमने ऐसा कौन सा अन्याय या फिर पाप किया, जिसके प्रभाव से तेरी ऐसी हालत हो गई। हेम माली ने पूरी बात उनको बता दिया । उसकी व्यथा सुनकर ऋषि ने उसे योगिनी एकादशी का व्रत करने के लिए बोला। हेम माली ने विधिपूर्वक योगिनी एकादशी का व्रत करने लगा, जिसका उसे सफल परिणाम मिला। वो कुष्ठ रोग से मुक्ति पा गया अपने पुराने भेस-भूसा में आ गया फिर  पत्नी के साथ अपना सुखी जीवन काटने लगा।

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