साधू और पनिहारी की कथा | story of saints

साधु संतों की कहानी


दूसरे दिन चार बजे का वक्त हुआ , पक्षी चहचहाने लगे तभी गंगाराम पटैल की आँख खुल गई । दिशा मैदान होकर कुल्ला दाँतुन कर स्नान किये और नित्य कर्म करके फारिग हुए फिर बुलाखी नाई ने खुरजी संभाल घोड़े को तैयार किया तब गंगाराम ने ईश्वर का नाम ले सवार हो घोड़े को बढ़ा दिया और पीछे -2 बुलाखी नाई चल दिया । दोहा- मन्जिल करते करते , होने आई शाम । दास बुलाखीं थक गया , पड़ा नजर एक ग्राम ॥ तब बुलाखी नाई गंगाराम पटैल से कहने लगा - महाराज ! आगे वाला जो नगर चमकता है । बस उसी में मेहरबानी करके रुकना , इतना कह आगे बढ़ गये । 

कुछ देर बाद अलवर नगर आ गया और एक बाग में जाकर घुस गये और घोड़े को एक वृक्ष से बाँध दिया । फिर बिस्तर लगाकर बाग की सैर करने लगे तो देखते हैं सारा बाग गुलजार हो रहा है । कहीं पहलवान कसरत कर रहे हैं , कहीं भंग घुट रही है , कोई गाना गा रहा है । इस तरह बाग का कुछ भाग देखकर गंगाराम पटेल और बुलाखी । नाई अपने -2 बिस्तर पर आये । 

जिसके बाद खर्चा लेकर बुलाखी नाई शहर को गया और बाजार में पहुँचकर आटा , दाल , घी , दाना , वास , रातव लेकर चारों तरफ को निगाह घुमाता हुआ चला जा रहा है तो चौराहे पर क्या देखता है कि एक पक्का कुंआ बन रहा है और पनिहारों का घड़ा अधबर कुंए में लटका हुआ है वह न तो ऊपर को खींचती है न फाँसती है रस्सी को पकड़े खड़ी है और एक तरफ एक मुसाफिर थाली में भोजन परसे हुए एक निवाला हाथ में लेकर खड़ा हुआ है न तो वह खाता ही है न हाथ से धरता है । 

इस तरह दोनों को देखकर बुलाखी नाई वहाँ से चल दिया और सामान लेकर गंगाराम पटेल के पास आकर बोला महाराज ! यह लो अपना सामान में अपने वतन को वापिस जाता हूँ । तब गंगाराम पटेल हँसकर कहने लगे भाई गम खाना अच्छा होता है । तू चौका बर्तन साफ कर दे फिर में भोजन बनालूँ । 

जब दोनों भोजन कर चुके तब अपने देखे हुए अजूबा चरित्र को बताना , मैं जवाब दूंगा । यह सुन बुलाखी नाई ने चौका बर्तन साफ कर घोड़े को दाना घास खिला दी और गंगाराम ने रसोई बना ली । तब दोनों जने भोजन पा फारिग हुए । फिर गंगाराम पटेल ने कहा अब तूने जो अजूबा चरित्र देखा वह कह । तब बुलाखी नाई ने देखे हुए अजूबे चरित्र को गंगाराम से कहा । तब गंगाराम कहने लगे कि एक नगर जिसका नाम उसके मिझकतरा था ।

वहाँ एक तेली बड़ा धनवान था , छोटे 5 लड़के थे , चार लड़कों का विवाह हो गया था । लड़के का नाम मुन्नी था , इसका चित्त खेल कूद में ज्यादा लगता था । एक दिन चारों भाइयों ने कहा - तुम हमारे लिए दस बजे तक हल पर खाना पहुँचा दिया करो । मुन्नी ने कहा बहुत अच्छा । फिर खेल में लग गया , दोपहर को चारों भाई आये और आकर कहा कि मुन्न के हाथ कलेऊ क्यों नहीं भेजा , तब औरत कहने लगी मुन्नीलाल खेल कूदकर अभी नहीं आये , तो किसके हाथ खाना भेजती । 

तब तक मुन्ना आ गया और चारों भाइयों ने फटकारा तुमसे कलेऊ का भी काम नहीं होता । तब मुन्ना कहने लगा - भाई साहब याद भूल गया था तब चारों औरतों ने कहा कि अपने भोजन की याद नहीं भूलते हो , ठीक समय पर आ जाते हो । बैठे -2 तुम्हारे लिए कहाँ से आये । इतना वचन सुन मुन्ना भूखा- प्यासा चल दिया । चारों भाइयों ने बहुत रोका परन्तु न रुका । चलते - चलते रास्ते में एक बुढ़िया मिली जिसके साथ एक जवान लड़की थी , मुन्ना के पास एक घोड़ी थी । 

मुन्ना ने उस बुढ़िया से कहा - तू घोड़ी पर बैठ ले थक गई होगी बुढ़िया बोली दोहा- मैं तो कुछ हारी नहीं , सुता गई मेरी हार । मेरे बदले कुमर जी , इसको कर असबार ॥ तब मुन्ना घोड़ी से उतर पड़ा और बुढ़िया की लड़की को बैठा लिया । तब बुढ़िया बोली कि हे बेटा , तेरा नाम क्या है तब मुन्ना बोला - मेरा नाम ब्याहता है इतना कह घोड़ी बढ़ा दी और बुढ़िया पीछे -2 चली जाती थी और कहती जाती थी कि बेटा घोड़ी को धीरे -2 चला , जिससे में भी साथ -2 चली चलूँ । 

मुन्ना ने घोड़ी और तेज कर दी और मुन्ना नजर से गायब हो गया । बिचारी बुढ़िया रोती हुई पीछा किए जा रही थी । रास्ते में जो कोई आगे से आता था उससे पूछती कि घोड़ी पर एक लड़की और पैदल आदमी मिला था । अब रास्तागीर कहते थे कि वह तो बहुत दूर निकल गया वह तेरा कौन था ? तब बुढ़िया कहती कि जो घोड़ी पर बैठी थी वह मेरी बिटिया थी और ब्याहता पैदल था । तब रास्तागीर कहते कि बुढ़िया तू बड़ी बावरी है ब्याहता तो ले ही जायेगा । 

विचारी बुढ़िया रोती रह गई । । इधर मुन्ना वहाँ से चल दिया । फिर चलते - चलते एक शहर में पहुँचा । भूख के मारे मरा सा हो गया , बाजार में घूमता था कि क्या देखता है एक बनिए की दुकान पर मीठा वे पूड़ी धरी हुई हैं तो वह दुकान पर जा बैठा और आराम के साथ भोजन पाये । तब बनिए ने कहा कि दाम तो कुल चौदह आने हुए , तब मुन्ना कहने लगा - कि तुमको एक रुपया जो मैंने दिया है । उसमें से अपने पैसे काटकर दो आना वापिस कर दो । 

तो झगड़ा होने लगा इधर उधर से और भी दुकानदार आ गए , तब मुन्ना से कहा कि भाई दाम क्यों नहीं देते हो । तब मुन्ना कहने लगा दोहा- एक बँधा रुपया दिया , बाकी के दो दाम । सो मुझको देते नहीं , वृथा लगा इल्जाम । पाई मेरे पास ना , कहाँ से देउ गहाय । याकी मैंने दे दिया , सत्य कहूँ समझाय । कसम लेउ इस वैश्य से , गंगा लेइ उठाय । करूँ चाकरी एक दिन , नामा सब चुक जाय ॥ तब इधर उधर के भले आदमियों ने झगड़ा तोड़कर मुन्ना को फटकार कर भगा दिया मुन्ना वहाँ से चलकर एक तेली के यहाँ पहुँचा और धानी पैरने लगा । 

कुछ दिन बाद तेली का सामान निकाल कर आधी रात में भाग गया । तब तेली को मालूम हुआ तो वह पिछाड़ी दावे हुए चल दिया । सो हे बुलाखी नाई ! उसने सारे कपड़े उतार कर भभूत लगा ली और बाबाजी बन गया । एक शंख एक कमण्डल लंगोट लगा भिक्षा माँगने लगा । भिक्षा माँगते - माँगते शहर अलवर में आ निकला ।

40 एक दिन मुन्ना ने एक सेठानी से सवाल किया अगर तू मुझको पेट भर मंगौड़ा पूआ खिलावे , तो अवश्य ही बच्चा गोद में खिलावेगी , यह साधुओं की दुआ है । सेठानी निपुत्री थी । साधु के कहने के माफिक भोजन खिला दिए और वहाँ से कुछ दान दक्षिणा लेकर रवाना हुआ और इधर उधर घूमकर एक दिन रोटी बनाने का इरादा किया और जो कूप पनिहारियों को जल खींचने का था वहीं जाकर रोटी बनाई और थाल में परोस कर धरी तो एक जवान स्त्री जल भरने को आई और घड़ा डुबाकर अधवर तक खींच लिया

तब मुन्ना साधू कहने लगा दोहा- थापक थूमा वृक्ष है , भूरी बाकौ फूल । देखत में अति सुघड़ है , बँध जाता है तूल । पनिहारी है अर्द्ध तू , पीछे भरियो नीर । ऊपर को मति खींचना , कोमल सुघड़ शरीर ॥ सो हे बुलाखी नाई ! वह पनिहारी घड़ा खींचने से बन्द हो गई और रस्सी को पकड़ खड़ी है और कहने लगी दोहा- पिता नाम सोई पुत्र को , नाता है कुछ और । जाको अर्थ लगाइदे , साधू उठाइये न कोर ॥ हे बुलाखी नाई ! वह साधू और पनिहारी दोनों जने तूने देखे हैं । बस तेरे देखे हुए अजूबा चरित्र का जवाब हो गया । 

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