International Nurse Day : कहानी उस नर्स की है जिसे बोला जाता था- सफेद कोट वाली फरिश्ता
आज हम आपको बताने जा रहे हैं एक नर्स की कहानी, जिसके जन्म तिथि के दिन मनाया जाता है international nurses day, आखिर उस नर्स ने ऐसा क्या कर दिया था? किस प्रकार से उसने दुनिया भर में नर्स के पेशे को लेकर एक बदलाव कर दिया था और यह एक ऐसा पेशा है जो पूरी दुनिया में सही नजर से देखा जाने लगा।
कोरोनाकाल के समय पूरी दुनिया को यह पता चल चुका था कि डॉक्टर्स और नर्सेज कितनी जोखिम के साथ काम कर रहे हैं, उन्होंने यह करके दिखा दिया कि लोगों की सेवा में इस पेशे से अपना ख्याल नहीं रख पा रही थी । महामारी के वक्त संकट का एक पहाड़ खड़ा हो गया था, जो चारों तरफ लोगों की अलग-अलग प्रकार की कहानियां सामने आ रही होती है । यहां तक कि अनेको डॉक्टर्स और नर्सें उस महामारी में सेवा करते-कराते दुनिया को छोड़कर चले भी गए। कहि-कहीं से डॉक्टर्स एवं नर्सेज की भी तस्वीरें सामने आ रही थी। परन्तु आज हम आपको बताने वाले हैं एक ऐसी नर्स की कथा । जिसने दुनिया भर के लोगों की मदद की और आज दुनिया उनके जन्मदिन के दिन International Nurse Day मनाती है।
अंतरराष्ट्रीय नर्सिंग दिवस का ये है इतिहास
इंटरनेशनल nurses day 2023
12 मई को फ्लोरेंस नाइटिंगेल (florence nightingale) का जन्म हुआ था। वो इटली के फ्लोरेंस सिटी में पैदा हुई थी। इटली में रह रहे एक समृद्ध अथवा उच्चवर्गीय ब्रिटिश परिवार से उनका ताल्लुकात हुआ करता था। उनका इंग्लैंड में पालन-पोषण हुआ था । इतना ही नहीं, उनको अनेको भाषाओं का ज्ञान हुआ करता था। जैसे अंग्रेजी, इटेलियन, लैटिन, जर्मनी, फ्रैंच, इतिहास और दर्शन शास्त्र में उनकी बहुत रूचि थी। वह अपनी बहन और माता-पिता के साथ कई देशों की यात्रा भी किया था । मात्र 16 वर्ष की आयु में ही उन्हें इस बात का अहसास हो चुका था कि उनका जन्म केवल सेवा कार्यों के लिए ही हुआ है। जिसके बाद उन्होंने खुद नर्स बनने का निर्णय अपने लेवल पर ले लिया ।
ऐसे चुना था नर्स बनना
1837 में उन्होंने अपने पुरे फैमिली के साथ यूरोप के सफर पर गई हुई थी। आपको बता दें कि उस दौरान इस तरह की यात्राओं को शिक्षा-दीक्षा के लिए जरूरी माना जाया करता था। एक तरह से यह इंसान के बौद्धिक विकास का हिस्सा भी हुआ करता था । इसी सफर के दौरान उन्हें इस बात का अहसास चुका था कि उन्होंने कुछ अलग करना चाहती ही थी हैं। उसने अपने माता-पिता से बोल रखा था कि ईश्वर ने उन्हें मानवता की सेवा का आदेश दे दिया है। माता-पिता उनके हालांकि इस बात को सुनकर कुछ परेशान जरूर हुए थे। उसके बाद उन्होंने नर्स बनने के बारे में उन्हें बताया। साथ ही साथ कहा कि वो अपने मरीजों की बेहतर तरीके से सेवा और देखभाल करने के लिए दिल लगाकर काम करना चाहती हैं।
धनी लड़कियां इस पेशे में नहीं जाती थी
इस बात पर उनके माता-पिता बहुत नाराज हो गए थे। ऐसा इस नाते हुआ क्योंकि उस समय ब्रिटेन में अमीर घरो की लड़किया कोई ऐसा काम नहीं किया करती थी। नर्सिंग को उस समय सम्मानित काम भी नहीं माना जा रहा था, इस नाते उनके माता-पिता का मानना था कि धनी परिवार वालो की लड़की के लिए ऐसा पेशा बिल्कुल ठीक नहीं है।
पर उन्होंने इस बात को गांठ मार ली थी
हालांकि उनका परिवार वालो ने इसमें उनका साथ नहीं दे रहे थे । काफी विरोध और गुस्से के बाद भी फ्लोरेंस अपने फैसले पर बिलकुल अड़ी रह गई । साल 1849 में उन्होंने विवाह करने से भी बिलकुल मना कर दिया था । 1850 में उन्होंने जर्मनी में करीबन दो सप्ताह की अवधि में एक नर्स के रूप में अपने प्रारंभिक प्रशिक्षण पूरा कर लिया । इसके बाद उनके परिवार वालो ने भी उनका साथ देने लग गए । सभी ने नर्सिंग की पढ़ाई करने की अनुमति दे दिया । वो इस काम को बारिकियां सीखती हुयी जा रही थी।
युद्ध के दौरान की लोगों की मदद
पहली बार उनका अहम योगदान वर्ष 1854 में क्रीमिया युद्ध के वक्त उन्हें देखा गया था । युद्ध के दौरान वहां सैनिकों की देखभाल करने के लिए और कोई नहीं था। फिर ब्रिटिश सरकार द्वारा फ्लोरेंस के नेतृत्व में अक्तूबर 1854 में 38 नर्सों का एक ग्रुप घायल सैनिकों की सेवा के लिए तुर्की भेजा गया था । अस्पताल घायलों सैनिकों से एकदम भरे हुए थे। परन्तु सबके हाल बहुत बुरे थे, सुविधाओं का कमी था। लेकिन वह सबके बावजूद इतने लोगों का ध्यान रख रही थी। वो रात में हाथ में एक लैंप लेकर लोगों का ट्रीटमेंट किया करती थी। जिसके वजह उन्हें ‘लेडी विद द लैंप’ भी कहा जाने लगा था ।
चारों ओर हुई उनकी तारीफ
प्रतीकात्मक तस्वीर: Toi
यहां तक कि इस युद्ध में ब्यक्तिओ के मुस्किलो में मदद करने के बाद महारानी विक्टोरिया ने एक पत्र लिखकर उन्हें धन्यवाद दिया । इसके बाद रानी विक्टोरिया से उनकी मुलाकात भी हुई । 1860 में लंदन के सेंट थॉमस हॉस्पिटल में ‘नाइटिंगेल ट्रेनिंग स्कूल फॉर नर्सेज’ खोल दिया गया था । इसमें नर्सों को बेहतर ट्रेनिंग दी जाती थी। फ्लोरेंस के सेवा करने के तरीके ने इस व्यवसाय में बहुत बदलाव हो गए । उनके सेवाभाव के वजह नर्सिंग में उन्हें कई उत्कृष्ट पुरस्कार भी मिले चुके थे ।
भारत सरकार ने भी उनके काम को सराहा
आपको बता दें कि आज भी सारी दुनिया उनके काम को लेकर सराहती है। भारत सरकार ने साल 1973 में नर्सों को सम्मानित करने के लिए उन्हीं के नाम से ‘फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार’ की स्थापना कर दिया था । यह नर्स दिवस के दिन दिया गया था, यह एक प्रकार से फ्लोरेंस को आधुनिक नर्सिंग की संस्थापक ही माना जाता रहा है। जनवरी 1974 में इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्स ने अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस उनके जन्मदिन के तिथि को मनाने की घोषणा कर दी । 90 वर्ष की आयु में 13 अगस्त 1910 को फ्लोरेंस नाइटिंगेल का देहांत हो गया था । आज के ज़माने में लोग उन्हें उनके काम के लिए याद किया करते हैं।