Skanda Shashti : स्कन्द षष्ठी अपने बाल बच्चो के के समृद्धि के लिए करे ऐ व्रत होगी भविष्य उज्वल

 

Skanda Sashti Kavacham  in hindi


स्कंद षष्ठी 2022 (skanda sashti) के व्रत में शिव पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय का पूजा अर्चना किया जाता है। कार्तिकेय के पूजन से रोग, राग, दुःख और दरिद्रता का निवारण के लिए माना जाता है।अनुयायीहिन्दू और प्रवासी भारतीयतिथिकार्तिक महीना, कृष्ण पक्ष की षष्ठी वाले दिन से ।संबंधित देवता कार्तिकेय पौराणिक उल्लेख स्कंद पुराण में नारद-नारायण संवाद में संतान प्राप्ति अथवा संतान की पीड़ाओं का शमन करने वाले इस व्रत का विधान होता है।संबंधित लेखशिव-पार्वती, तमिलनाडु अन्य जानकारी कार्तिकेय की पूजन मुख्यत: भारत के दक्षिणी राज्यों और विशेषकर तमिलनाडु में हुआ करती है। भगवान कार्तिकेय के बहुत प्रसिद्ध मंदिर तमिलनाडू राज्य में  स्थित हैं।


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स्कन्द षष्ठी का व्रत कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की षष्ठी दिन को किया जाता है। 'तिथितत्त्व' ने चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी को 'स्कन्द षष्ठी' बताया जाता है। यह व्रत 'संतान षष्ठी' नाम से भी जाना गया है। कुछ ब्यक्ति आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी वाले दिन को स्कन्द षष्ठी के रूप में मानते हैं। स्कंदपुराण के नारद-नारायण संवाद में संतान प्राप्ति एवं संतान की पीड़ाओं को समाधान करने वाले इस व्रत का विधान बताया जाता है। एक दिन पूर्व से उपवास करके षष्ठी को 'कुमार' अर्थात् कार्तिकेय की पूजा याचना करना बेहद जरुरी होता है । तमिल प्रदेश में स्कन्दषष्ठी खूब महत्त्वपूर्ण है और इसका सम्पादन मन्दिरों या फिर अनेको भवनों में हुआ करता है।


प्राचीनता एवं प्रमाणिकता


इस व्रत की प्राचीनता एवं प्रामाणिकता स्वयं परिलक्षित होती आ रही है। इस वजह यह व्रत श्रद्धाभाव से मनाया जाने वाले पर्व का रूप धारण किया करता है। स्कंद षष्ठी के संबंध में मान्यता यह भी है कि राजा शर्याति और भार्गव ऋषि च्यवन का भी ऐतिहासिक कथानक इससे जुड़ा करता है। बताते हैं कि स्कंद षष्ठी की उपासना से च्यवन ऋषि को आँखों की ज्योतियाँ प्राप्त हो गयी। ब्रह्मवैवर्तपुराण में कहा गया है कि स्कंद षष्ठी की कृपा से प्रियव्रत का मृत शिशु जीवित हो गया था । स्कन्द षष्ठी पूजा की पौरांणिक परम्परा होती है। भगवान शिव के तेज से उत्पन्न बालक स्कन्द की छह कृतिकाओं ने स्तनपान करा कर रक्षा किया था। जिनके छह मुख होते  हैं और उन्हें 'कार्तिकेय' नाम से पुकारा जाने लगा था । पुराण व उपनिषद में इनकी महिमा का उल्लेखित किया गया मिलता है।


निर्णयामृत में इतना और आया हुआ है कि भाद्रपद की षष्ठी को दक्षिणापथ में कार्तिकेय का दर्शन लेने मात्र से ब्रह्महत्या जैसे गम्भीर पापों से छुटकारा मिल जाती है। हेमाद्रि कृत्यरत्नाकर ने ब्रह्म पुराण से उद्धरण देकर इसे ख़ास तौर से बताया है कि स्कन्द की उत्पत्ति अमावास्या को ही अग्नि से हुई थी, वह चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी को प्रत्यक्ष से हुए थे, उसके बाद देवों के द्वारा सेनानायक बनाये गये थे और  तारकासुर का वध भी किया था, अत: उनकी पूजा,अलंकरणों, दीपों, वस्त्रों, मुर्गों खिलौनों के रूप में आदि से की जाने की जरूरत होती है अथवा उनकी पूजा बच्चों के स्वास्थ्य के लिए भी सभी शुक्ल षष्ठियों पर करने की जरूरत होती है । तिथितत्त्व  ने चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी को स्कन्दषष्ठी बताया जाता है।


कब करें


यह व्रत प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाया करता है। वर्ष के किसी भी मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह व्रत आरंभ कर सकते है। वैसे तो चैत्र अथवा आश्विन मास की षष्ठी को इस व्रत को आरंभ करने का प्रचलन बहुत अधिक होता है।


आवश्यक सामग्री


भगवान शालिग्राम जी का विग्रह कार्तिकेय भगवन का चित्र, (तुलसी का पौधा गमले में लगा हुआ)  नारियल,तांबे का लोटा, पूजा की सामग्री, जैसे- कुंकुम, अक्षत,अबीर, गुलाल, दीपक, हल्दी, चंदन, घी, इत्र, जल, मौसमी फल,पुष्प, दूध,  मेवा, मौली आसन इत्यादि। यह व्रत विधिपूर्वक करने से सुयोग्य संतान की प्राप्ति हो जाती है। संतान को किसी तरह का कष्ट या रोग हो इसके लिए यह व्रत संतान को इन सबसे बचाता रहता है।

पूजन


स्कंद षष्ठी के अवसर पर शिव-पार्वती को पूजा अर्चना किया जाता है। मंदिरों के अंदर में विशेष पूजा-का आयोजन की जाती है। इसमें स्कंद देव (कार्तिकेय) की स्थापना करके पूजा का आयोजन की जाती है तथा अखंड दीपक जलाए जाते हैं। और भक्तों द्वारा स्कंद षष्ठी महात्म्य का नित्य पाठ करना भी जरुरी हो जाता है। इसमें भगवान को स्नान कराया जाया करता है, उसके बाद नए वस्त्र पहनाए जाया करते हैं और फिर उनकी पूजा की जाने की परम्परा होती है। इस दिन भगवान को भोग लगाया करते हैं, विशेष कार्य की सिद्धि के लिए किये गए इस वक्त कि पूजा-अर्चना विशेष फलदायी माना जाता है। इसमें साधक तंत्र साधना भी किया करते हैं, इसमें मांस, शराब, प्याज, लहसुन का त्याग करने की जरूरत होती है और ब्रह्मचर्य का संयम रखना आवश्यक हुआ करती है जिससे आप सुरछित रहे आनंद में रहें ।

कथा


भगवान कार्तिकेय की जन्म कहानी के विषय में पुराणों से ज्ञात होता है कि जब दैत्यों का अत्याचार ओर आतंक कभी फैल जाता है तो देवताओं को पराजय का समाना करना पड़ जाता है। जिस वजह से  सारे देवता भगवान ब्रह्मा के सम्मुख पहुंचते हैं और अपनी रक्षार्थ के लिए उनसे प्रार्थना करने लगते हैं। ब्रह्मा उनके दु:ख को समझकर उनसे कहते हैं कि तारक का अंत भगवान शिव के पुत्रो के द्वारा ही संभव हो सकता है, परंतु सती के अंत के पश्चात् भगवान शिव गहन साधना में लीन हैं। इंद्र और अन्य देव भगवान शिव के पास पहुंच जाते हैं, तब भगवान शिव उनकी पुकार सुनकर पार्वती से विवाह करते हैं। शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त से शिव भगवान् और पार्वती का विवाह हो ही  जाता है। इस तरह कार्तिकेय का जन्म होता है और कार्तिकेय तारकासुर का वध कर देते है और देवों को उनका स्थान प्रदान कर देते हैं।


महत्त्व


भगवान स्कंद शक्ति के आदिदेव माने जाते हैं, देवताओं ने इन्हें अपना सेनापतित्व प्रदान कर दिया है । मयूर पर आसीन देवसेनापति कुमार कार्तिक की पूजा आराधना दक्षिण भारत जैसे तमिल नाडु और आंध्र प्रदेश मे सबसे अधिक की जाती है, यहाँ पर यह 'मुरुगन' नाम से खूब विख्यात हुए हैं। प्रतिष्ठा, विजय, व्यवस्था, अनुशासन सभी कुछ इनकी कृपा से सम्पन्न हुआ करते हैं। स्कन्दपुराण के मूल उपदेष्टा कुमार कार्तिकेय ही होते हैं तथा यह पुराण सभी पुराणों में सर्व अधिक विशाल माना जाता है। स्कंद भगवान हिंदू धर्म के प्रमुख देवों मे से एक माने जाते हैं। स्कंद को कार्तिकेय और मुरुगन नामों से अधिकतर पुकारा जाता है। इन्हे दक्षिण भारत में अधिक पूजे जाने वाले में से प्रमुख देवताओं में से एक माने जाते है जोकि भगवान कार्तिकेय शिव पार्वती के पुत्र माने जाते हैं। कार्तिकेय भगवान के अधिकतर भक्त तमिल हिन्दू हुआ करते हैं। इनकी पूजा मुख्यत: रूप से भारत के दक्षिणी राज्यों और विशेषकर तमिलनाडु में हुआ करती है। भगवान स्कंद के बेहद प्रसिद्ध मंदिर तमिलनाडू राज्य में ही स्थित हैं।


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