इन रातों में पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है कि महानिशा की रात सबसे शक्तिशाली रात होती है। इन रातों में देवताओं को प्रसन्न करने के लिए पूजा का विशेष महत्व है। इन रातों को पूजा, भजन, भगवान का ध्यान और ध्यान के लिए माना जाता है। तंत्र साधना भी महानिशा की रात को की जाती है। तंत्र शास्त्र के अनुसार तंत्र क्रिया करने का इससे अच्छा समय कोई नहीं हो सकता। इस रात्रि को साधना करने से ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों के द्वार खुलने लगते हैं और समस्त पापों का नाश हो जाता है। अगर आप भी अपने सोए हुए भाग्य को जगाना चाहते हैं तो आपको महानिशा की रात भगवान का ध्यान करना चाहिए और उपाय करना चाहिए। आइए जानते हैं किसे कहते हैं महानिशा की रात।
इन रातों में सोने से किस्मत सो जाती है, इन्हें कहा जाता है महानिशा की रात
दिवाली
दीपावली की रात को महानिशा की रात कहा जाता है। तात्रिकों के लिए यह रात बहुत मायने रखती है। इस रात सिद्धियों को प्रसन्न करने के लिए विशेष साधना की जाती है। दीपावली की रात को देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए उनका ध्यान करना चाहिए, जिससे उन्हें वैभव का आशीर्वाद मिलता है। साथ ही इससे आपकी सभी परेशानियां भी खत्म हो जाती हैं। इस रात महाकाली की भी विशेष पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस रात महाकाली 64,000 योगिनियों के साथ प्रकट हुई थीं। दीपावली की रात मां काली की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
नवरात्रि की अष्टमी तिथि
महानिशा काल में महागौरी की पूजा का विशेष महत्व है। इस तिथि को रात्रि में ध्यान और पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। महागौरी सौभाग्य की अधिष्ठात्री देवी हैं। महनिष में ही भवानी का जन्म होता है और माता अपने भक्तों को सिद्धि प्रदान करती हैं। आप इस रात जागरण या हवन करके भी मां भगवती से मनचाहा आशीर्वाद मांग सकते हैं। साथ ही घर से नकारात्मक ऊर्जा भी दूर रहती है। परिवार के सदस्यों के बीच प्रेम बना रहता है और आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं।
कृष्ण जन्माष्टमी
भगवान कृष्ण का जन्म आधी रात को होता है, इसलिए उनकी पूजा भी आधी रात को ही की जाती है। जो कोई भी भक्त इस रात को ध्यान करता है और साधना करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे विष्णु लोक में स्थान प्राप्त होता है। इस रात भगवान की पूजा और ध्यान करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है और घर में मां लक्ष्मी का आगमन होता है।
शिवरात्रि
चतुर्दशी की रात निशीथ काल में देवधिदेव महादेव शिव शंकर की पूजा की जाती है। तांत्रिक इस रात श्मशान घाट पर पूजा भी करते हैं। इस रात साधना करने पर भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और उनके स्मरण मात्र से ही अनिष्ट शक्तियां भय से दूर हो जाती हैं। साथ ही ग्रह बाधा भी दूर होती है। इस रात साधना करने से मन सहस्त्रार चक्र में स्थिर रहता है, जिससे भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
होली
होली की पूजा रात में भी की जाती है, इसलिए होली की रात को महानिशा की रात भी कहा जाता है। सिद्धि प्राप्त करने के लिए तांत्रिक आधी रात को अनुष्ठान करते हैं। होली की रात को महालक्ष्मी सहित सभी इष्ट देवताओं की पूजा करनी चाहिए। उनके मंत्रों का जाप और ध्यान करना चाहिए, जो आपकी बाधाओं को दूर करता है और कुंडली के दोषों को भी शांत करता है। साथ ही घर में सुख-शांति बनी रहती है और हर काम में सफलता मिलती है।
महानिशा पूजा की एक और भी मान्यता
जिस रात्रि को अष्टमी प्राप्त होती है उसे महानिशा पूजा कहते हैं।
इस दिन माता दुर्गा और माता काली की पूजा की जाती है, इनकी पूजा से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, आज हम महानिषा पूजा के बारे में विस्तार से जानेंगे।
क्या है महानिशा पूजा
भारत में दो प्रकार की नवरात्रि मनाई जाती है, जिसमें अश्विन में आने वाली नवरात्रि दूसरे चैत्र मास में आने वाली नवरात्रि है।
जिसमें सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली मां दुर्गा और माता काली की पूजा की जाती है, साथ ही मां को प्रसन्न करने के लिए स्नायु-पूजन भी किया जाता है और यज्ञ भी किया जाता है, यज्ञ पूर्ण रूप से सात्त्विक होता है, जो लोग रोग से पीड़ित होते हैं। वे इस रात नदी के किनारे स्थित शिव मंदिर में विशेष पूजा कर सकते हैं।
महानिशा पूजा की कुछ महत्वपूर्ण बातें
इस रात मुख्य रूप से मां दुर्गा और काली की पूजा की जाती है। मां को प्रसन्न करने के लिए कुछ खास विधि से तांत्रिक पूजा की जाती है। मां काली के स्थान पर हवन की पूजा की जाती है। नारियल की बलि दी जाती है। दुर्गा सप्तशती के कुछ विशेष पन्नों का पाठ किया जाता है। राजनेता भी अपनी जीत के लिए इस रात पीले कपड़ों में कुश की सीट पर बंगालमुखी अनुष्ठान कर सकते हैं और हल्दी की एक माला के साथ, तांत्रिक इस रात मां काली को प्रसन्न करने के लिए एक बड़ा अनुष्ठान करते हैं आप hindihotstory.in पर पढ़ रहे है
यह रात कुछ तांत्रिकों के लिए बहुत उपयुक्त है। वहीं मंदिर में ही मां का भोग प्रसाद पकाया जाता है। इस रात को सिद्धिकुंजिक स्तोत्र का 18 बार पाठ करने के बाद सप्तश्लोकी दुर्गा और बंगलामुखी मंत्र का जाप करके, माता को प्रसाद चढ़ाकर और प्रसाद चढ़ाकर उस रात को मां काली से कई सिद्धियां प्राप्त की जा सकती हैं। दुर्गा सप्तशती के पाठ के साथ-साथ श्री सूक्त का पाठ करने से ऋग्वैदिक श्री सूक्तम का पाठ करने से धन, पद और प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है और हवन करने से धन की प्राप्ति होती है। भरा कर लगाया जा सकता है
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इस प्रकार महानिशा में पूजा का लाभ उठाकर अपने जीवन को धन्य बनायें, मां काली को प्रसन्न करके आप भी कई तांत्रिक साधनाओं से माता से मनचाहा फल प्राप्त कर सकते हैं, बंगलामुखी अनुष्ठानों से विजय प्राप्त कर सकते हैं.
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महा निशा पूजा कैसे की जाती है (How is Maha Nisha Puja performed)
1.महा निशा पूजा हिंदू धर्म में एक प्रसिद्ध पूजा है जो मां दुर्गा के उत्सव के दौरान मनाई जाती है। यह पूजा अमावस्या के दिन मनाई जाती है और इसे तिथि और स्थान के अनुसार मनाया जाता है।
महा निशा पूजा के लिए आपको अपने घर को अलग-अलग तरीकों से सजाना होता है, जैसे चौकी रखना, रंगों से सजाना आदि। पूजा के दौरान, आपको एक शुद्ध आसन पर बैठकर मंत्रों का जाप करना होता है और मां दुर्गा की उपासना करनी होती है। इस पूजा में दीपक, धूप, फूल आदि का उपयोग किया जाता है।
पूजा के बाद, प्रसाद को बांटा जाता है और धन, समृद्धि, सौभाग्य और सफलता की कामनाएं की जाती हैं।
अगर आप महा निशा पूजा करना चाहते हैं, तो आपको इसके लिए विशेषज्ञ धार्मिक गुरुओं से संपर्क करना चाहिए जो आपको इस पूजा के विस्तृत विधान और मंत्रों के बारे में बता सकते हैं।
2.महा निशा पूजा हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पूजा है, जो रात्रि को की जाती है। यह पूजा मां दुर्गा के नौ रूपों के सम्मान में की जाती है और इसे नवरात्रि के दौरान भी मनाया जाता है।
महा निशा पूजा के लिए आपको निम्नलिखित चीजों की आवश्यकता होगी:
दुर्गा माता की मूर्ति
दीपक और घी
फूल, अक्षत, नारियल, लाल चूना आदि पूजा सामग्री
महानिशा पूजा कब है (When is Mahanisha Puja)
यह पूजा भारत के विभिन्न क्षेत्रों में भी अलग-अलग नामों से मनाई जाती है। उदाहरण के लिए, उत्तर भारत में इसे शरद पूर्णिमा या कोजागिरी पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है जबकि पश्चिम बंगाल में यह पूजा काली पूजा के नाम से जानी जाती है।
महानिशा पूजा क्या होती है (What is Mahanisha Puja)
महा निशा पूजा हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पूजा है जो अमावस्या के दिन मनाई जाती है। यह पूजा मां लक्ष्मी, मां काली और मां सरस्वती की पूजा की जाती है।
इस पूजा को मनाने के लिए विशेष तौर पर रात में पूजा का विधान किया जाता है जो कि लम्बे समय तक चलता है। इस पूजा में प्रार्थनाओं के साथ-साथ गीत, मंत्रों और आरती का पाठ भी किया जाता है।
इस पूजा के दौरान अनेक द्रव्यों का उपयोग किया जाता है जैसे दीपक, धूप, अगरबत्ती, फूल, फल और प्रसाद जो कि सभी देवताओं को चढ़ाया जाता है।
इस पूजा का महत्व है कि इसके द्वारा मां लक्ष्मी, मां काली और मां सरस्वती को प्रसन्न किया जाता है जो धन, समृद्धि, बुद्धि और शक्ति के स्रोत माने जाते हैं। इस दिन लोग मां लक्ष्मी के आशीर्वाद से धन की प्राप्ति करने की कामना करते हैं जो उन्हें समृद्धि और सुख-शांति प्रदान करता है।
निशा पूजा क्यों मनाया जाता है (Why is Nisha Puja celebrated)
निशा पूजा हिंदू धर्म में अमावस्या के दिन मनाई जाने वाली एक पूजा है। यह पूजा मां लक्ष्मी की पूजा होती है और इसे विभिन्न रूपों में मनाया जाता है, जैसे कि दीपावली, शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी, अमावस्या आदि।
निशा पूजा में धन, समृद्धि और सुख के लिए मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस दिन लोग मां लक्ष्मी की कृपा और आशीर्वाद से धन, समृद्धि, वैभव और शांति की प्राप्ति की कामना करते हैं। इस पूजा में दीपक, धूप, अगरबत्ती, फूल, फल आदि का उपयोग किया जाता है।
इस पूजा का महत्व है कि इसके द्वारा मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त की जा सकती है, जो धन, समृद्धि और सुख का स्रोत मानी जाती हैं। इस पूजा में पूजा करने वाले व्यक्ति को अपनी इच्छाओं को पूरा करने की शक्ति मिलती है और वह अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है।
नवरात्रि में निशा पूजा कब होता है (When does Nisha Puja take place in Navratri)
नवरात्रि में निशा पूजा विशेष रूप से नवमी तिथि को की जाती है। नवरात्रि चैत्र और शारदीय दोनों में मनाई जाती है। शारदीय नवरात्रि अक्टूबर या नवंबर महीने में मनाई जाती है जबकि चैत्र नवरात्रि मार्च या अप्रैल महीने में मनाई जाती है।
यदि हम शारदीय नवरात्रि की बात करें तो इसमें नवमी तिथि को निशा पूजा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मां दुर्गा के नौ रूपों में से नवमी रूप की पूजा की जाती है जो सबसे शक्तिशाली रूप माना जाता है। नवमी के दिन निशा पूजा का विशेष महत्व होता है और इस दिन लोग मां दुर्गा की भक्ति करते हैं और उनकी कृपा का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
एमएचए पूजा कौन मनाता है (Who celebrates MHA Puja)
एमएचए पूजा मनाने वाले लोग मेडिकल हेल्थ एंड आयुर्वेदिक फील्ड से जुड़े होते हैं। इस पूजा को भारतीय आयुर्वेद परंपरा में महामहोपाध्याय पूजा के नाम से भी जाना जाता है। इस पूजा को इंडियन मेडिकल असोसिएशन (आईएमएए) द्वारा आयोजित किया जाता है जो भारतीय चिकित्सा विज्ञान संस्थानों और डॉक्टरों के लिए एक महत्वपूर्ण आयोजन होता है।
इस पूजा में मेडिकल विज्ञान के दीर्घकालिक परंपराओं और धार्मिक विधियों को मिलाकर एक महानुभव बनाया जाता है। इस पूजा के दौरान, चिकित्सक और चिकित्सा संबंधी कर्मचारी भगवान धन्वंतरि की पूजा करते हुए अपने उत्तम स्वास्थ्य और चिकित्सा सेवा के लिए बच्चों, बूढ़ों, अस्पतालों और स्वास्थ्य संस्थानों के लिए आशीर्वाद और शुभकामनाएं मांगते हैं।
महानिशा पूजा मंत्र (mahanisha puja mantra)
महानिशा पूजा के दौरान निम्नलिखित मंत्रों का जाप किया जाता है:
असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मा अमृतं गमय। (Asato ma sadgamaya, tamaso ma jyotirgamaya, mrityorma amritam gamaya) - यह मंत्र शुभ कार्यों की शुरुआत में जपा जाता है। इसका अर्थ है - मुझे असत्य से सत्य की और, अंधेरे से प्रकाश की और और मृत्यु से अमृत की और ले चलो।
या देवी सर्वभूतेषु माँ निशा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ (Ya Devi Sarvabhuteshu Ma Nisha Rupena Samsthita, Namastasyai Namastasyai Namastasyai Namo Namah) - इस मंत्र का जप माँ निशा की पूजा के दौरान किया जाता है। इसका अर्थ है - हे देवी! आप हर भूत में निशा के रूप में स्थित हैं। हम आपको नमस्कार करते हैं।
शं नो मित्रः शं वरुणः। शं नो भवत्वर्यमा। शं न इन्द्रो बृहस्पतिः। शं नः सूर्यः प्रजाभाकरः॥ (Sham No Mitrah Sham Varunah, Sham No Bhavatvaryama, Sham Na Indro Brihaspatih, Sham Nah Surya Prabhakarah) - यह मंत्र निशा की शांति और आराम के लिए जपा जाता है। इसका अर्थ है - हमें मित्र की जरूरत होती हैं .
निशा पूजा विधि (nisha puja method)
निशा पूजा को मनाने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन किया जाता है:
सबसे पहले अपने आसन को साफ करें और उस पर एक चौकोर आसन बिछा दें।
अपने शुद्ध मन और हृदय के साथ ध्यान करें और मां निशा की पूजा के लिए समर्पित हों।
पूजा के लिए एक लोटा पानी, एक कलश, एक लम्बे कपड़े का टुकड़ा, एक दीपक, घी, कपूर, सुगंध और पुष्प लें।
कलश में पानी भरें और उसमें नींबू का रस, घी और कपूर डालें।
अब दीपक का जल लेकर निशा माँ की मूर्ति के समक्ष लिटा दें।
उसके बाद निशा माँ को फूलों से सजाएं और मंत्रों का जप करें। निम्नलिखित मंत्रों का जप करें:
या देवी सर्वभूतेषु माँ निशा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
ॐ नमो भगवती निशायै नमः॥
अब कलश में लम्बे कपड़े का टुकड़ा डालें और उसके ऊपर सुगंध चढ़ा दें।
अब कलश को अपने दाहिने हाथ से उठाएं और मंदिर के चारों ओर घूमकर चक्कर लगाए.
महानिशा काल (mahanisha kaal)
महानिशा काल हिंदू धर्म में एक भयंकर समय को दर्शाता है जब भगवान शिव क्रोधित हो जाते हैं और उनकी तांडव नृत्य शुरू होता है। इस समय में भगवान शिव को त्रिपुंड्र धारण करते हुए दिखाया जाता है और उनकी आँखें लाल हो जाती हैं। महानिशा काल के दौरान भगवान शिव को उसके सारे रूपों में दर्शाया जाता है जैसे कि महाकाल, रुद्र, भैरव और कालभैरव आदि। महानिशा काल का महत्व हिंदू धर्म में बहुत अधिक होता है और इस अवसर पर भगवान शिव की पूजा और विधिवत रूप से किये जाने वाले अनुष्ठानों से अधिक ध्यान दिया जाता है।