मुंशी प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियां | Story of the story related to Munshi Premchand

 

  मुंशी प्रेमचंद की अधिकांश कहानियाँ निम्न और मध्यम वर्ग का चित्रण करती हैं।  डॉ. कमलकिशोर गोयनका ने प्रेमचंद की संपूर्ण हिन्दी-उर्दू कहानी को प्रेमचंद कहानी रचनावली के नाम से प्रकाशित किया है।  उनके अनुसार प्रेमचंद ने कुल 301 कहानियाँ लिखी हैं जिनमें से 3 अभी भी अप्राप्य हैं। 


प्रेमचंद जी की सबसे पहले वर्ष 1907 में प्रकाशित होने वाली लघु कथा short story संग्रह कौन सा था?

 प्रेमचंद का पहला लघुकथा संग्रह जून 1908 में सोजे वतन नाम से प्रकाशित हुआ था।  दुनिया के सबसे बेशकीमती रत्न इस संग्रह की पहली कहानी को आम तौर पर उनकी पहली प्रकाशित कहानी माना जाता है।  डॉ. गोयनका के अनुसार कानपुर स्थित उर्दू मासिक पत्रिका ज़माना के अप्रैल अंक में प्रकाशित सांसारिक प्रेम और देश-प्रेम (इश्के दुनिया और हुब्बे वतन) वास्तव में उनकी पहली प्रकाशित कहानी है।


  उनके जीवनकाल में कुल नौ कहानी संग्रह प्रकाशित हुए- सोजे वतन, 'सप्त सरोज', 'नवनिधि', 'प्रेमपूर्णिमा', 'प्रेम-पच्चीसी', 'प्रेम-प्रतिमा', 'प्रेम-द्वादशी', 'सामरात्रा',  'मानसरोवर': भाग एक और दो और 'कफन'।  उनकी मृत्यु के बाद उनकी कहानियाँ 8 भागों में 'मानसरोवर' शीर्षक से प्रकाशित हुईं।  जैसे ही प्रेमचंद को साहित्य के कॉपीराइट से मुक्त किया गया, विभिन्न संपादकों और प्रकाशकों ने प्रेमचंद की कहानियों का संकलन तैयार और प्रकाशित किया।  उनकी कहानियों में विषय और शिल्प की विविधता है।  

उन्होंने अपनी कहानियों में मनुष्य से लेकर पशु-पक्षियों तक सभी वर्गों को मुख्य पात्र बनाया है।  उनकी कहानियों में किसानों, मजदूरों, महिलाओं, दलितों आदि की समस्याओं को गंभीरता से चित्रित किया गया है।  उन्होंने समाज सुधार, देशभक्ति, स्वतंत्रता संग्राम आदि से जुड़ी कहानियां लिखी हैं। उनकी ऐतिहासिक कहानियां और प्रेम कहानियां भी काफी लोकप्रिय साबित हुईं।  प्रेमचंद की प्रमुख कहानियों में ये नाम लिए जा सकते हैं-

प्रेमचंद की प्रमुख रचनाएं

  'पंच परमेश्वर', 'गली डंडा', 'दो बैलों की कहानी', 'ईदगाह', 'बड़े भाई साहिब', 'पूस की रात', 'कफन', 'ठाकुर का कुआं', 'सद्गति', 'बुढ़ी'  काकी', 'तावन', 'विध्वंस', 'दूध का भाव', 'मंत्र' आदि।


 प्रेमचंद ने नाटकों की रचना की। (Premchand composed plays.)

  प्रेमचंद ने संग्राम (1923), कर्बला (1924) और प्रेम की वेदी (1933) नाटकों की रचना की।  शिल्प और संवेदनशीलता के स्तर पर ये नाटक अच्छे हैं, लेकिन इनकी कहानियों और उपन्यासों ने इतनी ऊंचाई हासिल की थी कि प्रेमचंद को नाटक के क्षेत्र में कोई खास सफलता नहीं मिली।  ये नाटक वास्तव में संवादात्मक उपन्यास बन गए हैं।


 मुंशी प्रेमचंद के लेख / निबंध (Articles / Essays)


  प्रेमचंद संवेदनशील कहानीकार ही नहीं, जागरूक नागरिक और संपादक भी थे।  अमृतराय द्वारा संपादित 'प्रेमचंद: विविध प्रसंग' (तीन भाग) से व्यक्त 'हंस', 'माधुरी', 'जागरण' आदि पत्रिकाओं का संपादन करते हुए उन्होंने अपने साहित्यिक और सामाजिक सरोकारों को लेखों या निबंधों के माध्यम से व्यक्त किया, जो वास्तव में प्रेमचंद की रचनाओं का संकलन है।  .  प्रकाशन संस्थान से प्रेमचंद के लेख भी 'कुछ विचार' शीर्षक से प्रकाशित होते रहे हैं।  प्रेमचंद के प्रसिद्ध लेखों में निम्नलिखित लेख शामिल हैं - साहित्य का उद्देश्य, वृद्धावस्था, नवयुग, स्वराज के लाभ, कहानी कला (1,2,3), राष्ट्रभाषा के बारे में कुछ विचार, हिंदी-उर्दू की एकता, महाजनी सभ्यता, उपन्यास  जीवन में साहित्य का स्थान आदि।

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मुंशी प्रेमचंद ने रचनाओं का अनुवाद किया  (Translated by Premchand)


  प्रेमचंद एक सफल अनुवादक भी थे।  उन्होंने अन्य भाषाओं के लेखकों की रचनाओं का भी अनुवाद किया, जिन्हें उन्होंने पढ़ा और प्रभावित किया।  'स्टोरीज़ ऑफ़ टॉल्स्टॉय' (1923), गाल्सवर्दी के तीन नाटकों स्ट्राइक (1930), चंडी की दिबिया (1931) और जस्टिस (1931) का अनुवाद किया।  आज़ाद-कथा (उर्दू से, रतननाथ सरशार), बेटी के नाम पिता का पत्र (अंग्रेज़ी से, जवाहरलाल नेहरू) रतननाथ सरशार के उर्दू उपन्यास फ़सान-ए-आज़ाद का हिंदी अनुवाद आज़ाद कथा, उनके द्वारा बहुत प्रसिद्ध हुआ।


  प्रेमचंद के विभिन्न विचार (Premchand ke vichaar tin khand)


  बाल साहित्य : रामकथा, कुत्ते की कहानी, जंगल की कहानी, दुर्गादास

  विचार प्रेमचंद विविध प्रसंग, Premchand ke vichaar tin khand me hai )

  संपादन: मर्यादा, माधुरी, हंस, जागरण


प्रेमचंद की आलोचना (Premchand came to Hindi with the culture of Urdu)


  प्रेमचंद उर्दू की संस्कृति के साथ हिंदी में आए और एक महान हिंदी लेखक बने।  हिन्दी को उसका विशेष मुहावरा और खुलापन दिया।  कहानी और उपन्यास दोनों में युगांतरकारी परिवर्तन किए।  उन्होंने साहित्य में समकालीनता पर प्रबल बल दिया।  उन्होंने आम आदमी को अपनी रचनाओं का विषय बनाया और उनकी समस्याओं को खुलकर कलमबद्ध कर उन्हें साहित्य के नायकों के पद पर बिठाया।  

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हिंदी साहित्य में प्रेमचंद को क्या कहा जाता है?

प्रेमचंद से पहले हिन्दी साहित्य राजा-रानियों, रहस्यों और साहसिक कारनामों में डूबा हुआ था।  प्रेमचंद साहित्य को सत्य के धरातल पर ले आए।  उन्होंने जीवन और काल की सच्चाई को पन्ने पर उतारा।  वे जीवन भर साम्प्रदायिकता, भ्रष्टाचार, जमींदारी, ऋणग्रस्तता, गरीबी, उपनिवेशवाद पर लिखते रहे।  प्रेमचंद की अधिकांश रचनाएँ उनकी अपनी गरीबी और बदहाली की कहानी कहती हैं।  यह भी गलत नहीं है कि वे आम भारतीय के निर्माता थे।  अपनी रचनाओं में वे नायक बन गए, जिन्हें भारतीय समाज अछूत और घिनौना मानता था। 

 उन्होंने सरल, सहज और बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया और सशक्त तर्क देकर अपने प्रगतिशील विचारों को समाज के सामने प्रस्तुत किया।  1936 में प्रगतिशील लेखक संघ के पहले अधिवेशन की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने कहा कि एक लेखक स्वभाव से प्रगतिशील होता है और जो ऐसा नहीं है वह लेखक नहीं है।  प्रेमचंद हिन्दी साहित्य के युग प्रवर्तक हैं।  उन्होंने हिंदी कहानी में आदर्शवादी यथार्थवाद की एक नई परंपरा की शुरुआत की हुयी थी।

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