एक समय की बात है, बिल्ली और बंदर की कहानी एक जंगल के पास एक गांव में दो बिल्लियां रहती थीं। वे दोनों बहनें थीं और अक्सर साथ में खाना खातीं और खेलतीं। एक दिन, उन्हें रोटी का एक टुकड़ा मिला। दोनों बिल्लियां उसे देखकर बहुत खुश हुईं लेकिन फिर आपस में झगड़ने लगीं कि रोटी किसकी होगी।
पहली बिल्ली बोली, "यह रोटी मैंने पहले देखी, इसलिए यह मेरी है।"
दूसरी बिल्ली ने कहा, "नहीं! यह मेरी है क्योंकि मैंने इसे उठाया था।"
वे आपस में बहस करने लगीं और फैसला नहीं कर पाईं कि रोटी को कैसे बांटा जाए। तभी पास से एक चालाक बंदर गुजर रहा था। उसने बिल्लियों की बात सुनी और सोचा, "यह मेरे लिए एक अच्छा मौका है।"
बंदर ने बिल्लियों से कहा, "झगड़ो मत। मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं। मैं इस रोटी को बराबर-बराबर बांट दूंगा।"
बिल्लियों को यह विचार सही लगा और उन्होंने रोटी बंदर को दे दी।
बंदर ने रोटी के दो टुकड़े किए, लेकिन जान-बूझकर एक टुकड़ा बड़ा और दूसरा छोटा कर दिया। फिर उसने बड़े टुकड़े को देखा और कहा, "यह बड़ा है, इसे बराबर करने के लिए मुझे थोड़ा खाना पड़ेगा।" उसने बड़े टुकड़े से एक निवाला खा लिया। अब दूसरा टुकड़ा बड़ा हो गया।
लालची बंदर की कहानी (lalchi bandar ki kahani in hindi)
बंदर ने फिर कहा, "अब यह टुकड़ा बड़ा हो गया है। इसे भी बराबर करना होगा।" और उसने उससे भी एक निवाला खा लिया।
इसी तरह, बंदर दोनों टुकड़ों को बराबर करने के बहाने खाता रहा।
आखिर में, रोटी के दोनों टुकड़े बहुत छोटे हो गए। बंदर ने कहा, "अब रोटी बहुत छोटी हो गई है। इसे मैं ही खा लेता हूं।" और उसने बची हुई रोटी खा ली।
बिल्लियां बंदर की चालाकी समझ गईं, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। वे खाली हाथ रह गईं।
कहानी से सीख:
इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि झगड़े और स्वार्थ में फंसने के बजाय आपसी समझदारी से समस्या का हल निकालना चाहिए। नहीं तो कोई तीसरा व्यक्ति इसका फायदा उठा सकता है।