Sawan Ganesh Chaturthi: सावन की विनायक चतुर्थी कब? जानें शुभ मुहूर्त और पूजन के पूर्ण विधि अथवा कथा

 

गणेश चतुर्थी का व्रत कब का है,गणेश जी का कब है

Sawan Vinayak Chaturthi 2022: सावन की विनायक चतुर्थी का उपवास 1 अगस्त 2022 को अबकी बार रखा जा रहा है. इस दिन गणपति भगवान्  की पूजा से सभी बाधाएं खत्म हो जाया करती है और जीवन खुशहाल हो जाता है. चलिए जानते हैं मुहूर्त और उसके महत्व



सावन विनायक चतुर्थी 2022 मुहूर्त अथवा पूजा विधि विधान 


गणेश चतुर्थी की पूजा कैसे की जाती है

Sawan 2022 ke Vinayak Chaturthi २०२२: सावन का हर दिन शिव जी को समर्पित होता है. इस महीने में महादेव के साथ-साथ देवी पार्वती की पूजा के लिए हर एक मंगलवार को मंगला गौरी का उपवास(vart) रखा जाता है ठीक उसी प्रकार से  शिव-पार्वती के पुत्र गजानन की भी दो ख़ास विशेष तिथियों पर आराधना याचना की जाती है. हर माह में दो चतुर्थी आया करती है. जैसे संकष्टी अथवा विनायक चतुर्थी.


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सावन महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी दिन को विनायक चतुर्थी मनाने की परम्परा चलती आ रही है. अबकी बार सावन की विनायक चतुर्थी का vart 1 अगस्त 2022 (Sawan Ganesh Chaturthi 2022 date) को रखा जा रहा है. इस दिन गणपति बप्पा की पूजा याचना  और vart करने से सारी बाधाएं दूर भाग जाती है और जीवन खुशिओ से भर जाता है. तो चलिए जानते हैं मुहूर्त और इसके महत्व



सावन गणेशा चतुर्थी व्रत 2022 मुहूर्त (Sawan ganesh chaturthi 2022 Date)




सावन गणेश चतुर्थी तिथि सुरु - 1 अगस्त 2022, सोमवार को सुबह 4 बजकर 18 मिनट पर होगी 



सावन की विनायक चतुर्थी तिथि समाप्त - 2 अगस्त 2022, मंगलवार को सुबह: 5 बजकर 13 मिनट तक रहेगा 



विनायक पूजा का शुभ मुहूर्त - 11.06 AM - 1.48 PM (1 August 2022)



अभिजित शुभ मुहूर्त - 12.00 PM - 12.54 PM



उदयातिथि के मूलसिद्धांत पर सावन का गणेश चतुर्थी का व्रत अबकी बार 1 अगस्त 2022को रखा जाएगा.




सावन विनायक चतुर्थी पूजा विधि (Sawan ganesha chaturthi puja vidhi)




सावन विनायक चतुर्थी व्रत वाले तिथि को प्रातः काल उठकर दैनिक कार्य से निवृत होकर स्नान कर लें. 



इसके बाद अब पूजा स्थल पर भगवान विनायक का स्मरण करते हुए उपवास का संकल्प लें.



पूजा की चौकी पर पीले रंग का कपड़ा बिछा लें और उस पर गणपति (Ganesh) की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित करें.



षोडोपचार से भगवान विघ्नहर्ता का पूजा करें, उन्हें जनेऊ, दूर्वा, चावल, मोदक, मोतीचूर के लड्‌डू,रोली, मौली, पुष्प, पंचमेवा, पंचामृत,  नारियल अर्पित करें.



भोग, धूप, दीप लगाकर Ganesha Chalisha का पाठ करे उसके बाद गणेश जी के बीज मंत्र का 108 बार जाप करेंगे.



विनायक (ganesha Chaturthi) की कथा का श्रवण करें फिर गणेश जी की आरती कर प्रसाद सभी को बांट दें. 


ध्यान रहें: गणेश चतुर्थी पर चंद्रमा देखना वर्जित होता है.मान्यता यह भी है कि इस दिन चंद्र दर्शन करने से जिंदगीं भर के लिए कोई ना कोई झूठा कलंक लगता रहता है.


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श्री गणेशाय नम:


यहां पाठकों के लिए प्रस्तुत करता हैं श्री गणेश की  कहानिया, आइए आप भी पढ़ें लें...

Ganesh Chaturthi ki Katha कथा :- 

गणेश चतुर्थी की कहानी क्या है

पौराणिक एवं प्रचलित श्री गणेश कहानी के अनुसार एक बार देवता कई विपदाओं में घिरे हुए थे। तब वह सभी के सभी मदद मांगने भगवान शिव के पास आए। उस वक्त शिव के साथ कार्तिकेय तथा गणेशजी भी बैठे हुए थे। देवताओं की बात सुनकर शिव जी ने कार्तिकेय अथवा गणेश जी से पूछा कि तुम दोनों में से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण करेगा। उस वक्त कार्तिकेय व गणेश जी दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम बता दिया। 


 

इस पर भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेते हुए बोले कि तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आ जाएगा वही देवताओं की मदद कर सकेगा ।


 

भगवान शिव के मुख से यह बात सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठ गए और पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल पड़े , परंतु गणेश जी सोच में पड़ जाते है कि वह चूहे के ऊपर चढ़कर पूरी पृथ्वी की परिक्रमा कैसे करेंगे अगर करेंगे तो इस कार्य में उन्हें बहुत अधिक वक्त  लग जा सकता है । तभी उन्हें एक उपाय सूझ गया। गणेश भगवन अपने स्थान से उठें और अपने माता-पिता की सात बार चक्कर लगा करके फिर वापस बैठ जाते है । परिक्रमा करके लौटने पर कार्तिकेय स्वयं को विजेता सबित करने लगते है । तब जाकर शिव जी ने श्री गणेश से पृथ्वी की परिक्रमा ना करने का वजह पूछा।



तब गणेश ने बोला - 'माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक बसा हुआ हैं।' यह सुनकर भगवान शिव ने गणेश जी को देवताओं की मद्द्त करने की आज्ञा दी। इस तरह उसी दिन भगवान शिव ने गणेश जी को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो भी ब्यक्ति तुम्हारा पूजन करेगा तथा रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देगा उसकी तीनों ताप यानी दैहिक ताप, दैविक ताप अथवा भौतिक ताप दूर हों जायेंगे । इस व्रत को करने से उपवासधारी के सभी प्रकार के दुख दूर हों जायेंगे और उसे जीवन के भौतिक सुखों की प्राप्ति हो जाएँगी । चारों ओर से ब्यक्ति की सुख-समृद्धि बढ़ने लगेंगी। पुत्र-पौत्रादि, धन-ऐश्वर्य की कभी कमी नहीं होंगी ।


इनकारी बयान: 


यह सुचना मुहैया केवल मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित हुई है. इसमें यह बताना जरूरी है कि Hindihotstory.in पर किसी भी प्रकार के मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करते है. कोई भी जानकारी या मान्यता को कार्यरूप में लाने से पहले इससे संबंधित विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें.

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